हर देश की अपनी गाइडलाइंस होती हैं. दुनिया के कुछ देशों में चीनी का कम मात्रा का इस्तेमाल करना होता है, तो कहीं ज्यादा मात्रा का. नेस्ले इंडिया लिमिटेड (Nestle India Ltd.) के मैनेजिंग डायरेक्टर सुरेश नारायणन (Suresh Narayanan) का ये जवाब उस विवाद पर था, जिसमें कंपनी पर विकासशील देशों में ज्यादा चीनी का इस्तेमाल करने पर लोगों की हेल्थ से खिलवाड़ करने का आरोप लगा था.
देश की दिग्गज FMCG कंपनी नेस्ले इंडिया (Nestle India Ltd.) को इस महीने तमाम आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, जिसमें स्विट्जरलैंड की इन्वेस्टिगेशन एजेंसी पब्लिक आई (Pubic Eye) ने कंपनी पर विकासशील देशों जैसे भारत में प्रोडक्ट बनाने में US और यूरोप के मुकाबले ज्यादा चीनी का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था. एजेंसी ने दावा किया कि नेस्ले भारत जैसे विकासशील देशों में यूरोप और अमेरिका के मुकाबले हर सर्विंग पर औसतन 3 ग्राम ज्यादा शुगर डालती है.
नेस्ले इंडिया की भारत के फूड मार्केट में जबरदस्त पकड़ है. कंपनी ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा है कि वो फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) की ओर से तय की गई सीमा के अंदर प्रोडक्ट का निर्माण कर रही है. समस्या तब होगी जब जरूरी कंटेंट यूरोप में ऑफर किए जाने वाले कंटेंट से कम होगा.
नारायणन ने कहा, ‘अगर यहां के प्रोडक्ट में यूरोप में शुगर की तय की गई सीमा से कम क्वांटिटी दी जा रही होती, तो कहा जा सकता है आप यहां के बच्चों के साथ भेदभाव कर रहे हैं. लेकिन यहां पर ऐसी कोई स्थिति नहीं है’.
इससे जुड़ी कई ग्लोबल गाइडलाइंस हैं और आप मान सकते हैं कि पूरी दुनिया में सभी बच्चों के लिए एकसमान न्यूट्रिएंट्स की जरूरत है. शिशुओं को ग्रोथ बढ़ाने के लिए ज्यादा एनर्जी वाले फूड प्रोडक्ट की जरूरत होती है और ये प्रोडक्ट क्वांटिटी तय की गई सीमा के अंदर है.
बीते कुछ समय में, कंपनी ने शुगर की मात्रा में 30% तक की कमी की है और आने वाले वक्त में इसे घटाने पर विचार कर रही है.
कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर ने कहा, ‘प्रोडक्ट की न्यूट्रीशन कंटेंट डिलीवरी बहुत ज्यादा जरूरी है’.
नारायणन ने कहा, ‘ईट राइट (Eat Right) कैंपेन का सदस्य होते हुए कंपनी सुनिश्चित करती है कि वो अच्छा और बैलेंस्ड फूड दे सके’.
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