आम आदमी के अधिकारों की कहानी है अनुपम खेर-सतीश कौशिक की ‘कागज 2’


Kaagaz 2 Movie Review: आम आदमी हर दिन की भाग दौड़ में फंसा रहता है. आम आदमी और पावर वालों के बीच का अंतर बहुत लम्बा है जिसे कभी नहीं भरा जा सकता. लेकिन जब जब कोई अपने हक के लिए आवाज उठाता है तो क्या देश का क़ानून उसके साथ खड़ा होता है? इसी तरह के आईडिया पर आजतक कई फिल्में आई हैं, कुछ हमें सोचने पर मजबूर कर देती हैं तो कुछ हमें जिंदगी में कुछ करने के लिए प्रेरित कर जाती हैं. ऐसी ही एक कहानी है कागज 2 की. 2021 में सतीश कौशिक और पंकज त्रिपाठी की एक फिल्म आई थी कागज़, जिन्होंने देखि उन्हें बहुत पसंद आई, अब उसी का दूसरा पार्ट रिलीज हुआ जिसमे फिर से सतीश कौशिक हमे एक दमदार रोल में नजर आए और याद दिला गए कि इंडियन सिनेमा ने कितना अच्छा एक्टर खो दिया.

ये है फिल्म की कहानी

Kaagaz 2 की कहानी है आम आदमी की और उसके हक की. फिल्म ‘कागज 2’ की कहानी दो परिवारों की कहानी है. उदय के पिता उसे और उसकी मां को बचपन में ही छोड़ गए थे. उदय के मन में इस बात का बहुत मलाल भी होता है, इंडियन आर्मी में जाता तो है पर वहां रुक नहीं पाता. वहीं दूसरी तरफ कहानी है एक पिता और उनकी UPSC टॉपर बेटी की जो पोलिटिकल रैली के चलते अपनी बेटी को टाइम पर हॉस्पिटल नहीं पंहुचा पाते और वो पिता उसे खो देते हैं.

यहीं शुरू होती है प्रशासन से और पावर वाले लोगों से एक लम्बी लड़ाई. अब क्या ये लड़ाई वो पिता जीत पाता है, क्या उदय सालों बाद अपने पिता से मिलने पर उन्हें माफ कर पाता है, क्या उदय कभी आर्मी अफसर बन पाता है, इन सभी के सवाल देती है ये फिल्म जिसे आप सिनेमा हॉल में जाकर देख सकते हैं.सतीश कौशिक की ये आखिरी फिल्म है और उनका काम उनके आजतक के सबसे अच्छे कामों में से एक भी है.

कैसी है फिल्म

फिल्म को वी के प्रकाश ने डायरेक्ट किया है और फिल्म की कहानी और कास्ट ही उसकी जान है. फिल्म की कहानी आपके दिल को भी छूती है और आपको कई बार रुला भी देती है. एक पिता का अपनी बेटी को खोने का दर्द आप महसूस कर पाते हो. फिल्म में अच्छे से दिखाया गया कि कागज़ पर लिखे क़ानून और व्यवस्था सिर्फ कागज़ तक ही रह जाते हैं, उन्हें कितना फॉलो किया जाता है इस पर कोई ध्यान नहीं देता. वैसे फिल्म जब शुरू होती है तो लगता है कि ये उदय के आर्मी अफसर बनने की कहानी है लेकिन फिल्म इस तरह का मोड़ लेगी ये आपने सोचा नहीं होगा. फिल्म की कहानी को काफी रियल तरह से दिखाने की कोशिश की गई और अनुपम खेर और सतीश कौशिक ने फिल्म को काफी हद तक संभाला भी लेकिन नीना गुप्ता जैसी कमाल की एक्ट्रेस पर इस तरह का रोल समझ नहीं आता. ऐसा लगता है इस फिल्म में उनके करने के लिए कुछ था ही नहीं. वहीं, एक पावर वाला आदमी या कहें पॉलिटिशियन किस हद तक जाता है अपनी इमेज बचाने के लिए, यहां भी ये फिल्म फेल होती दिखी क्योंकि उनके करने के लिए भी कुछ खास नहीं था. ऐसा लगा जैसे सिर्फ पिता बेटे और पिता बेटी के इमोशंस दिखाने में मेकर्स भूल गए की जिससे लड़ाई दिखाई जा रही है उन्हें भी उतना ताकतवर दिखाना जरुरी है. पर भी, फिल्म के कई सीन इतनी अच्छी तरह लिखे गए हैं और कई डायलॉग आपके दिल को छू जाते हैं कि आप ये कमियां भूल जाते हो.

एक्टिंग

अनुपम खेर, दर्शन कुमार और सतीश कौशिक तीनों का काम जबरदस्त है. फिल्म में दो जगह अनुपम खेर और सतीश कौशिक के मोनोलोग हैं जहां आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे. कोर्ट के सीन में दोनों ने कमाल का काम किया है. दर्शन कुमार फिल्म की शुरुवात में थोड़े फीके जरूर लग सकते हैं लेकिन जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है उनकी परफॉर्मेंस खिलकर बाहर आती है. नीना गुप्ता को जिस तरह का रोल और जितना कम टाइम दिया गया उसमे उन्होंने ठीक ठाक ही काम किया. फिल्म के विलेन्स में वो बात और डर नहीं दिखता जो दिखना चाहिए था.

डायरेक्शन और सिनेमाटोग्राफी

फिल्म की डायरेक्शन अच्छी है, सिनेमाटोग्राफी की ठीक है. पर असल मूड जो सेट करता है वो फिल्म का लाजवाब म्यूजिक. फिल्म का BGM हो या फिल्म के गाने, दोनों पर ही काफी फोकस किया गया और वो सुनकर आपको अच्छे लगता हैं.

ये एक इमोशनल फिल्म है जिसे आप अपने परिवार के साथ, दोस्तों के साथ जरूर देख सकते हैं. देखें तो अपने व्यूज हमें कमेंट्स में जरूर बताएं।

3 Stars out of 5

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