क्रिकेट और कूटनीति: पाक टीम का भारत में गर्मजोशी से स्वागत, सियासत से परे सद्भाव की उम्मीद


पाकिस्तान में पुलाव और बिरयानी को लेकर बहस काफी पुरानी है और हर कोई अपनी-अपनी पसंद के व्यंजन की तारीफ करता है। पारंपरिक रूप से बिरयानी प्रांतीय राजधानी कराची जैसे पाकिस्तान के दक्षिणी इलाकों में लोगों का पसंदीदा और आम व्यंजन है। यह सिंधी व्यंजन नहीं है, लेकिन उर्दू भाषी लोगों के बीच बेहद आम है, खासकर उन लोगों के बीच, जिनके पूर्वज विभाजन के बाद भारत से पाकिस्तान आ गए थे। सिंधियों की अपनी खास झींगा बिरयानी है। पाकिस्तान के उत्तरी इलाकों के लोग हमेशा कराची वासियों को चिढ़ाते हैं, क्योंकि वे चावल के व्यंजन के साथ आलू मिलाते हैं, जबकि उत्तर के लोग चावल के साथ मांस पकाते हैं।

पख्तून होने के नाते मैं यखनी पुलाव खाकर बड़ी हुई हूं, लेकिन पंजाबी लोग मटन पुलाव पसंद करते हैं। महंगाई के चलते रेड मीट (लाल मांस) के खर्चीले होने के कारण लोग इन दिनों चिकन पुलाव पकाते हैं, जिसमें वह स्वाद नहीं होता है। इस कॉलम में मैंने बिरयानी का जिक्र इसलिए किया है, क्योंकि अमर उजाला के पाठकों को पता होना चाहिए कि हैदराबादी बिरयानी इन दिनों पाकिस्तान में चर्चा में है, जिसे हैदराबाद में विश्व कप खेलने गई पाकिस्तानी क्रिकेट टीम ने मशहूर किया है। वास्तव में यह हरी जर्सी वाले कैप्टन बाबर आजम का अब पसंदीदा व्यंजन बन गया है, जो कहते हैं कि भारत में रहने के दौरान वह हर दूसरे दिन हैदराबादी बिरयानी खाते हैं। पाकिस्तान में उनके प्रशंसक थोड़े चिंतित भी हैं कि स्वादिष्ट हैदराबादी बिरयानी विश्व कप मैच के बीच में सेहत की तंदुरुस्ती के लिए ठीक नहीं है।

हालांकि कुछ पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने पाकिस्तानी व्यंजन की तुलना में इसे मसालेदार बताया है, जबकि बाबर आजम इसे उम्दा बताते हैं। यहां के लोग उम्मीद कर रहे हैं कि कोई दयालु भारतीय बाबर आजम से हैदराबादी बिरयानी बनाने की प्रामाणिक विधि साझा करेगा, ताकि वह उसे अपनी बेगम को दे सकें। यह सर्वोत्तम खाद्य कूटनीति या बिरयानी कूटनीति होगी। पाक क्रिकेट टीम का विभिन्न हवाई अड्डों, और खासकर हैदराबाद हवाई अड्डे पर जिस तरह से आम लोगों द्वारा गर्मजोशी से स्वागत किया गया, उससे पाकिस्तानियों के प्रति आम भारतीयों की वास्तविक गर्मजोशी और सद्भावना का पता चलता है। मेरे लिए यह क्रिकेट कूटनीति बेहद सुखद है, जिसने पाकिस्तान और भारत की सरकारों के बीच की सियासी बाधा खासकर ऐेसे वक्त में ध्वस्त कर दी है, जब द्विपक्षीय रिश्ते तनावपूर्ण एवं बेहद निचले स्तर पर हैं। लोगों ने जता दिया कि खेल तो खेल है और इन पाकिस्तानी खिलाड़ियों का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। वास्तव में जब पाकिस्तानी खिलाड़ी श्रीलंका के खिलाफ क्रिकेट मैच खेल रहे थे, तब स्टेडियम में मौजूद जनसमूह पाकिस्तान के पक्ष में नारे लगा रहा था।

पिछले कई वर्षों से मैदान पर या मैदान से बाहर भारत और पाकिस्तान के खिलाड़ी एक-दूसरे के प्रति सद्भावना प्रदर्शित करते हैं, जिसे दुनिया देखती है। भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट नायक दोनों मुल्कों में लोकप्रिय रहे हैं और  खेल में ग्लैमर के प्रवेश के बाद तो ये क्रिकेटर फिल्मी सितारों की तरह हैं!

इस विश्व कप में भी हालांकि राजनीति आड़े आ ही गई, जब पाक क्रिकेट टीम के लिए वीजा देर से जारी किया गया। इसके अलावा जिन क्रिकेट प्रेमियों और पत्रकारों ने हवाई टिकट बुक कराए हैं, उन्हें भी अपने वीजा का लंबा इंतजार करना पड़ा। मंगलवार को इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग से यह खबर आई कि वे वीजा जारी कर रहे हैं, लेकिन कितने लोगों को वीजा मिलेगा, यह किसी को पता नहीं है। कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवार उल हक ने भी वीजा में सख्ती पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर मैच पाकिस्तान में खेला जा रहा होता, तो वह सुनिश्चित करते कि यहां आने के इच्छुक सभी भारतीयों को वीजा दिया जाए।

अलबत्ता इस विश्व कप ने हमें यह भी दिखाया है कि किसी भी परिस्थिति में सोशल मीडिया पर किसी दूसरे धर्म का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए, और यदि किसी को अपनी गलती का एहसास हो, तो आपत्तिजनक टिप्पणी तुरंत हटा देनी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद की डिजिटल टीम का हिस्सा रहीं पाकिस्तानी प्रस्तोता जैनब अब्बास का सोशल मीडिया पर हिंदू आस्था से संबंधित आपत्तिजनक टिप्पणी करना बिल्कुल गलत था। किसी को भी दूसरे धर्म का मजाक उड़ाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि इससे स्वाभाविक रूप से भावनाएं आहत होती हैं। इस्लाम दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णुता का पाठ पढ़ाता है। उनकी घृणित टिप्पणी के विरोध में एक भारतीय द्वारा अदालत का रुख करने पर जैनब को भारत छोड़ना पड़ा। जब वह भारत से दुबई के लिए निकलीं, तब पाकिस्तान में भी उनके प्रति ज्यादा समर्थन नहीं था, क्योंकि वह गलत थीं।

मुझे 2008 का एशिया कप याद है, जब भारतीय टीम पेशावर और रावलपिंडी सहित पाकिस्तान के कई शहरों में मैच खेलने आई थी। पाकिस्तान ने वीजा जारी करते वक्त बहुत उदारता बरती, नतीजतन सैकड़ों भारतीय पाकिस्तान आए। मेरे दोस्तों ने मुझे बताया कि मैच देखने के अलावा यह उनके लिए कई पाकिस्तानी शहरों का दौरा करने का एक सुनहरा मौका था, क्योंकि भारतीयों के लिए वीजा पाना बहुत मुश्किल होता है। रावलपिंडी स्थित मेरा घर माशाल्लाह, भारतीय दोस्तों, उनके रिश्तेदारों व मित्रों तथा पत्रकारों से भरा हुआ था। किसी भी भारतीय के लिए इस शहर का वीजा प्राप्त करना मुश्किल होता है। मेरे घर में ईद जैसा माहौल था, क्योंकि हम जश्न मना रहे थे और लंबे समय बाद भारतीय दोस्तों से मिल रहे थे। घर पर नाश्ता कराने के बाद मैं उन सबको दोपहर का भोजन कराने होटल में ले गई। उन्हें पाकिस्तानी भोजन बहुत पसंद आया, खासकर उन्हें, जो पहली बार पाकिस्तान आए थे। होटल में खाना खाने वाले लोगों ने हाथ हिलाकर भारतीय मेहमानों का स्वागत किया और सबसे हैरानी तो तब हुई, जब हर कोई उनके बिल का भुगतान करना चाहता था। होटल के मैनेजर ने, जो यह सुनिश्चित कर रहा था कि सभी  मेहमान उनकी सेवा से संतुष्ट हों, मेरे पास आकर कहा, ‘मैडम, ये सब हमारे सम्मानित मेहमान हैं। हम मेहमानों से पैसे नहीं लेते। दुनिया क्या कहेगी!’ मैं प्रार्थना करती हूं कि हम फिर से उन दिनों में लौट सकें, जब दोनों देशों के नागरिक मिल सकें और दोनों सरकारों के रिश्ते स्वाभाविक हों।


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