क्रिकेट विश्वकप 2023
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ऑस्ट्रेलिया आईसीसी वनडे विश्वकप टूर्नामेंट में छठी बार चैम्पियन बनी। फाइनल में बीस साल पुरानी हार का बदला लेना तो दूर भारतीय टीम अपना वो स्वाभाविक खेल भी नहीं दिखा पाई, जिसके लिए सेमीफाइनल तक अपनी अजेयता के लिए वह जानी जा रही थी। लेकिन फाइनल में जो मुकाबला टूर्नामेंट की तब तक नंबर वन और नंबर टू टीमों में होने जा रहा था, वह नतीजे आने तक रिवर्स में बदल गया।
भारतीय टीम के हार के कारणों का विश्लेषण शुरू हो गया है, आगे भी होता रहेगा। लेकिन इस समूचे विश्वकप टूर्नामेंट में और खासकर फाइनल के पहले भारत की जीत को लेकर मीडिया और खासकर इलेक्ट्राॅनिक-सोशल मीडिया में जिस तरह का भयंकर हाइप और उन्माद भड़काने कोशिश की गई, उससे उनकी टीआरपी और हिट्स भले बढ़े हों, भारतीय क्रिकेट टीम पर इतना नकारात्मक दबाव बन गया कि वो फाइनल में ठीक से खेल ही नहीं सके।
यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि फाइनल मैच में भारत की हार मात्र दो-चार रन अथवा एक-दो विकेट से नहीं, पूरे छह विकेट से हुई। पूरे मैच के दौरान कहीं महसूस नहीं हुआ कि भारतीय टीम ने विश्वकप ट्राॅफी कब्जाने के लिए जी जान लगा दी हो। पूरा मैच लगभग एकतरफा ही लगा। टाॅस हारने के बाद मैच जीतने को लेकर भारत की वैकल्पिक रणनीति क्या थी, वह भी नजर नहीं आई।
ऐसा महसूस हो रहा था मानो टूर्नामेंट के अंतिम निर्णायक मैच में बल्लेबाज गेंदबाजों के और गेंदबाज, बल्लेबाजों के भरोसे बैठे थे तथा फील्डिंग के मामले में खिलाडि़यों को उनकी मर्जी पर छोड़ दिया गया था।
बेशक लगभग हाथ आई विश्वकप ट्रॉफी के यूं अचानक छिन जाने का गम भारतीय क्रिकेट टीम और क्रिकेट प्रेमियों को बरसों सताता रहेगा। इस हार के बाद टीम रोहित के सदस्यों की आंखों से आंसू छलक पड़े तो यह स्वाभाविक ही था, क्योंकि इस अकेले मैच ने टीम के अब तक के किए कराए पर पानी फेर दिया था। लेकिन असली सवाल तो यह है कि क्या इस वनडे क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारत की जीत को लेकर देशभर में चार दिनों से जो मीडिया हाइप बनाया जा रहा था, वह कितना वास्तविक और जायज था?
बाजारवादी दबाव का दिखा असर
यह सही है कि बाजारवाद के जमाने में आज हर इंवेट का बाजार पक्ष पहले देखा जाता है, लेकिन इससे इंवेट से जुड़े मूल कारकों पर कितना नकारात्मक असर होता है, इस बारे में शायद ही कोई सोचता है। इसमें मीडिया भी शामिल है। बेशक भारतीय क्रिकेट टीम ने फाइनल में कुछ रणनीतिक गलतियां कीं, इसीलिए हारे, लेकिन टीम नेतृत्व के सही निर्णय और खिलाड़ियों के अपने स्वाभाविक खेल से भटकने के पीछे वजह हर हाल में जीत हासिल करने का वह कृत्रिम दबाव भी है, जिसकी कतई जरूरत नहीं थी। जीत के नगाड़े सचमुच जीत हासिल करने के बाद भी बजाए जा सकते थे।
पता नहीं सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड पर धमाकेदार जीत के बाद भारतीय वनडे क्रिकेट टीम के सदस्यों ने टीवी चैनलों को कितनी बार देखा होगा, सोशल मीडिया पर कितनी बार क्लिक किया होगा, किया भी होगा या नहीं। इस दौरान क्या- क्या नहीं हुआ? खिलाड़ियों के घर परिवार वालों को खंगाला गया, पूजा, हवन, दुआएं करवाई गई।
नरेन्द्र मोदी स्टेडियम के गेट से लेकर जहां खिलाड़ी ठहरे थे, उस होटल से निकलने वाली गाड़ियों के लाइव कवरेज से लेकर नीली जर्सी पहने हर शख्स को भारतीय टीम के हरकारे के रूप में पेश करने की कोशिशें हुई। पूरे कवरेज में टीवी एंकरों की अदा यूं थी कि मानो विश्व कप की ट्राॅफी का पार्सल भारतीय कप्तान के नाम आ चुका है, बस ऑनलाइन पेंमेंट की जरूरत है।
पुराने दिग्गज खिलाड़ियों से बार-बार एक ही सवाल किया जा रहा था कि कौन जीतेगा, जिसका उत्तर भी लगभग प्रायोजित था।