खानेपीने की कहानियां: कहां से आई इडली, अरब व्यापारी लाए या आई इंडोनेशिया से


हाइलाइट्स

इडली ठेठ तौर पर दक्षिण भारत की देन नहीं है इसकी ऐतिहासिकता को लेकर बड़े तर्क वितर्क हैं
फूड हिस्टोरियन कहते हैं कि ये इंडोनेशिया के उस इलाके बाली से आई, जहां खाने को फर्मेंटेट करने का रिवाज रहा है
काहिरा के अल अजहर यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी में रखे दस्तावेज कहते हैं दक्षिण भारत में इडली अरब सौदागरों के जरिए लाई गई

आप इडली के कितने जायकों से वाकिफ हैं. चकरा जाएंगे अगर ये कहा जाए कि इडली के रूप रंग, मसाले, स्वाद और बनाने की सामग्रियां इतनी अलग तरह से इस्तेमाल होती हैं कि 50-100 तरह की इडलियां देश से विदेश तक में खाने को मिल जाएंगी. इडली अब अलग-अलग जायकों में भी बनने लगी है. डीप फ्रायड से लेकर इडली चाट और ग्रेवी इडली तक…फूड फ्यूजन के दौर में इडली के साथ खूब प्रयोग हो रहे हैं.

कभी इडली को टुकड़ों में काटकर डीप फ्राई करके मसालेदार ग्रेवी में इसका जायका चखें. डीप फ्राई इडली को शिमला मिर्च, गाजर और सोया सॉस के साथ नूडल्स  वाले अंदाज में तैयार करें. मजा आ जाएगा. सफेद, गोल, स्पंजी, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन से भरी इडली के साथ रसोई में बहुत फ्यूजन हो रहे हैं.

हैरानी की बात ये है कि इडली दक्षिण भारत की देन नहीं है, हां कह सकते हैं कि साउथ इंडिया ने इसे सजाया संवारा जरूर है. इसकी ऐतिहासिकता को लेकर बड़े तर्क वितर्क हैं. खानपान इतिहासकारों के अनुसार इडली सदियों पहले साउथ इंडिया की ओर आने वाले अरब व्यापारियों की देन है या फिर ये इंडोनेशिया से यहां आई. उसके बाद हमारे रंग में ढलती चली गई.

कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के छोटे गांव कस्बों से लेकर बड़े शहरों में मौजूद छोटे आउटलेट से लेकर बड़े होटलों तक में इडली के बगैर ब्रेकफास्ट पूरा ही नहीं होता. साउथ इंडिया में इडली जीवन के हिस्से की तरह है.

नार्थ इंडिया में इडली की लोकप्रियता की कहानी 04-05 दशकों से कुछ ज्यादा की है. साउथ इंडियन लोगों के दिल्ली और नार्थ में आने के बहुत समय बाद भी कम लोग इडली के बारे में जानते थे. साउथ इंडियन खाने आमतौर पर 70-80 के दशक में नार्थ की जुबान पर चढ़ने शुरू हुए. शुरू में दिल्ली के सरकारी आफिसों की कैंटीन और कैफे हाउस में दक्षिण भारतीय खाने जरूर उपलब्ध थे लेकिन उत्तर भारत की खानपान की हिट लिस्ट में बाद में शुमार हुए.

खानपान इतिहासकार क्या कहते हैं
इडली के साथ दशकों से जो प्रयोग हुए, वो बताते हैं कि हम भारतीय अपने अंचल, सुविधा, पसंद और मसालों के अनुसार खानपान या व्यंजनों में खूब इनोवेशन करते रहे हैं. कुछ खानपान इतिहासकारों का कहना है दक्षिण भारत में सबसे पहले इडली लाने का श्रेय अरब व्यापारियों को जाता है. वैसे इडली के रूप रंग से हम परिचित हैं, वो कर्नाटक में 1250 ईंस्वी में नमूदार हुई.

इंडोनेशिया के उस इलाके से आई जहां किण्वन का रिवाज था
खानपान इतिहासकार केटी अचाया का मानना है कि इडली असल में इंडोनेशिया के उस इलाके बाली से आई, जहां खाने को फर्मेंटेट करने का लंबा रिवाज रहा है. तब बाली में हिंदू राजाओं का राज था. दक्षिण भारत से अक्सर रसोइए वहां जाकर काम करते थे.

वहां के राजाओं की रसोई में सबसे पहले स्टीम्ड इडली का आविष्कार हुआ. फिर रसोइए जब वहां से यहां लौटे तो इस रेसिपी को 800-1200 ईंस्वी के बीच भारत ले आए. इस थ्योरी पर कुछ खानपान इतिहासकार सवाल उठाते हैं.

काहिरा के अल अजहर यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी में रखे दस्तावेज बताते हैं कि दक्षिण भारत में इडली अरब सौदागरों के जरिए लाई गई. खासकर उन अरब सौदागरों के जरिए जिन्होंने यहीं शादियां कीं, फिर बस गए. अब सवाल ये है कि ऐसा कैसे हुआ होगा.

ये तो सबको मालूम है कि अरब व्यापारी देश के दक्षिणी हिस्से की ओर समुद्र मार्ग से आते थे. ये भारत में इस्लाम के उदय से पहले की बात भी हो सकती है. ये अरबी अपने खानपान को लेकर काफी सजग थे. उनमें से बहुत से तो तब आए जबकि पैगंबर मुहम्मद जिंदा थे. इन सबने इस्लाम को स्वीकार कर लिया था.  वो हलाल खाना खाते थे.

वो राइस बॉल बनाकर उसको चपटा कर देते थे
ये व्यापारी जब भारत में आकर खानपान करते थे तो खानपान की शुचिता का ध्यान रखते थे. इसलिए वो राइस बॉल बनाते थे जो उन्हें तब अपने  खाने का सबसे उम्दा विकल्प लगता था. इस बॉल को बनाने के बाद उसे दबाकर चपटा कर देते थे.

कोलिंघम और गार्डन रेमसे की “एनसाइक्लोपीडिया ऑफ फूड हिस्ट्री” कहती है कि वो इसे नारियल की चटनी के साथ खाते थे. साउथ में नारियल बहुतायत में थे. हावर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित हेसर चार्ल्स की किताब “सीड टू सिविलाइजेशन, द स्टोरी ऑफ फूड” में भी इसी तरह इडली के भारत में शुरू होने का जिक्र है. हालांकि इस इडली में लगातार बदलाव होता रहा.

कन्नड़ में इसे इडालीग कहते थे और काले चने से बनाते थे
कन्नड़ में 920 ईंस्वी में लिखी गई किताब “वडेराधाने” में इडली का जिक्र “इडालीग” के तौर पर किया गया, जिसे काले चने को पीसकर बनाया जाता था.  1025 ईंस्वी में चावुंदार्या दि्वतीय की लिखी कन्नड़ एनसाइक्लोपीडिया “लोकपकरा” में इडली के बारे में लिखा गया कि कैसे इसे काले चने को पीसकर और मट्ठे के साथ पेस्ट बनाकर रख दिया जाता था, साथ में मसाले भी मिलाए जाते थे.

“मनोसोलास” 1130 ईंस्वी में लिखी गई, जिसमें इडली को संस्कृत नाम “इडारिका” के तौर पर संबोधित किया गया. साफ है भारत में पहले जो इडली जैसे व्यंजन बने, उसमें कई में चावल को बेस के तौर पर इस्तेमाल ही नहीं किया गया.

क्या ये सौराष्ट्र की देन 
हालांकि गुजराती इतिहासकार मानते हैं कि इडली सौराष्ट्र की देन है. वहां के कपड़ा व्यापारियों के जरिए इडली 10 से 12वीं शताब्दी में दक्षिण भारत गई. उनका दावा ये है कि ये प्राचीन इडली चावल और काला चना के आटे को मिक्स करके बनाई जाती थी. बाद में इसको भाप में पकाते थे. गुजरात में 1520 ईंस्वी में लिखे ग्रंथ “वरनाका सामुसाया” में इडली का जिक्र “इदरी” के तौर पर हुआ है. इसे ढोकले का ही एक संस्करण “इदादा” बताया गया.

चावल और उड़द दाल के पेस्ट से बनी इडली
हम अब जिस सर्वमान्य इडली की रेसिपी को जानते हैं, उसमें चावल और उड़द की दाल भिगो और पीसकर इसे बनाया जाता है. पीसने के बाद दोनों को मिलाकर जो मिश्रण तैयार होता है, उसको किंण्वन के लिए रातभर छोड़ दिया जाता है. जब इसके पेस्ट में किण्वन हो जाता है तो ये फूलने लगता है. बस अब इस पेस्ट को अच्छी तरह फेंटकर इडली बनाना शुरू कर देते हैं.

खाना बनाने और पकाने की कई विधियां हैं, जिसमें एक विधि भाप द्वारा खाना पकाना है तो इडली इसी तरह तैयार होती है. इडली के पेस्ट को सांचों में डालकर स्टीम किया जाता है. करीब 15-20 मिनट स्टीम होने के बाद ये आमतौर पर पक जाती है. फिर इसे नारियल की चटनी और सांभर के साथ गर्मागर्म सर्व किया जाता है.

साउथ से लेकर नार्थ तक कई ऐसे भी रेस्टोरेंट हैं जो इडली के साथ एक नहीं कई-कई चटनियां परोसते हैं तो इसके जायके को चार चांद लग जाते हैं.

सूजी और इनो से बनाइए फटाफट इडली
फटाफट इडली बनाने के लिए अब इसे सूजी से बनाया जाना लगा है. उसमें सूजी के घोल में “इनो” डालकर उसका तुरंत फर्मेंटेशन किया जाता है. ये गर्मागर्म रवा इडली काफी लज्जत वाली होती है. स्वाद में लाजवाब. स्पंजी, साफ्ट और खाने में स्मूद.

इडली की स्वाददार जगहें
दिल्ली में कभी बाराखंबा मेट्रो स्टेशन पर उतरकर बाहर आइए तो स्टेट्समैन से सटी स्ट्रीट पर दो साउथ इंडियन ठेले वालों से गर्मागर्म इडली, वड़ा, डोसा का स्वाद जरूर चखिए. बनारस में दशाश्वमेघ घाट और विश्वनाथ जी गली के अंदर बहुत सस्ती और स्वादिष्ट गर्मागर्म इडली परोसने वाले छोटे छोटे स्टाल्स हैं. चेन्नई में इडली आमतौर पर पारंपरिक तरह की मिलती है. बड़ी-बड़ी. कांचीपुरम की इडली खासतौर पर प्रसिद्ध है. यहां कई मंदिरों में सुबह इडली का भोग भगवान को लगता है. फिर इसे लोगों में बांट दिया जाता है. लंबी लाइन में लगाकर लोग ये प्रसाद लेने को उतावले रहते हैं. बेंगलुरु से लेकर मैसूर तक इडली हर जगह खाने के आउटलेट्स से लेकर रेस्टोरेंट में मिलेगी और काफी सस्ती भी.

रंगारंग इडली भी
दिल्ली के सूरजकुंड का ताज विवांता लाल रंग की इडली परोसता है. शायद इसमें चुकंदर का पानी मिलाकर इसे ये रंग दिया जाता है. उसी तरह पालक को पीसकर इसके पेस्ट में मिलाकर इसे हरा रंग दिया जाता है. वैसे इडली कई रंगों में मिल जाएगी. इन्हें अलग दालों या खाद्यान्न से बनाने का काम भी होता ही है. इडली के साथ बहुत इनोवेशन या प्रयोग हुए हैं.

गोवा में जो इडली मिलती है , वो अलग आकार की होती है, इसे गोवन साना कहते हैं. कुर्ग के इलाकों में अब भी राइस बाउल खूब मजे से ग्रेवी के साथ खाया जाता है. इसे खास तरीके से चावल के आटे से बनाते हैं. मुंबई में कभी जुहू इलाके में इस्कान के मुख्य मंदिर के साप्ताहिक बुफे का आनंद लीजिए तो वहां इडली और चटनी का स्वाद जीभ को खूब भाएगा.

थाटे इडली भी चखिए
वैसे एक इडली थाली के साइज सरीखी बड़ी भी होती है, वो थाटे इडली कहलाती है, ये बेंगलुरू में मिल ही जाती है. साउथ इंडिया में भी कॉमन है. मिनी इडली का भी रिवाज शुरू हो चुका है. इसे शुद्ध घी और गनपाउडर में मिक्स करके खाइए तो निराला स्वाद मिलेगा.

कुल मिलाकर इडली अब देश में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक खूब प्रचलित है. साउथ में ये बहुत सस्ती है. सुबह का नाश्ता आमतौर पर इसी के साथ होता है. वहां के छोटे उडुपी से लेकर बडे़ रेस्टोरेंट में जाइए और गर्मागर्म इडली का स्वाद लीजिए.

न्यूट्रीशन के हिसाब आइडियल खाना
न्यूट्रीशन के हिसाब से इडली बहुत आदर्श खाना है. कैलोरी से लेकर उचित मात्रा में कार्बोहाइड्रेट मिलेंगे. एनर्जी फील करेंगे. डायटेरी फाइबर और बहुत नाममात्र की वसा. प्रोटीन तो इसे खाने से मिलता ही है तो पोटेशियम और सोडियम जैसे आवश्यक तत्व भी.

भारत के डिफेंस फूड रिसर्च लेबोरेटरी ने तो चटनी के साथ स्पेस इडली विकसित की है कि जब भारत को कोई अंतरिक्षयात्री स्पेस में जाएगा तो इसे खाएगा. 30 मार्च के दिन इडली खास सलामी दी जाती है, उस दिन को अंतरराष्ट्रीय इडली दिवस के तौर पर मनाकर.

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