हाइलाइट्स
एक जमाने में लड्डू का इस्तेमाल दवा के रूप में होता था लेकिन फिर ये पसंदीदा मिठाई बन गई
तिरुपति बालाजी में रोज बनाए जाते हैं 05 लाख टन लड्डू
देश का पहला लड्डू चोला साम्राज्य में नारियल से बनाया गया था
अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद प्रसाद के तौर पर भोग लगाने के लिए तिरुपति बालाजी से 03 टन लड्डू मंदिर में भेजे जा रहे हैं.देश के कोने कोने से भारी मात्रा में लड्डू को तैयार करके अयोध्या भेजा जा रहा है तो कई जगहों पर भारी मात्रा में ये मिष्ठान तैयार कराकर लोगों में बांटने की तैयारी चल रही है. धार्मिक आयोजन हो या खुशी का कोई मौका – सबसे पहले बात लड्डुओं की ही होती है. हम भारतीय अपना किसी भी सेलेब्रेशन का एजहार लड्डुओं के जरिए ही करते हैं. कहा जाता है कि लड्डू हमारी संस्कृति इतने भरपूर तरीके से रचा-बसा है कि हम सोच भी नहीं सकते. जब हमने अपनी सभ्यता की शुरुआत की होगी, शायद लड्डू भी तभी से है.
इतिहासकार और प्राचीन ग्रंथ कहते हैं एक जमाने में लड्डू का इस्तेमाल दवा के रूप में किया जाता था. बाद में ये हमारी सबसे प्रिय मिठाई होती चली गई. अगर भारत को कोई राष्ट्रीय मिठाई चुननी हो तो सबसे तगड़ा दावेदार लड्डू ही होगा. हमारे हर पूजा रीतिरिवाजों, शुभकामों और त्योहारों अगर किसी मिठाई के बगैर कुछ पूरा नहीं माना जाता तो ये लड्डू है.
भारत में लड्डू उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक सामान्य रूप से फैला हुआ है. देशभर में लड्डू के आकार प्रकार में कई तरह के हैं. तिरुपति से लड्डू काफी बड़े होते हैं और रोज प्रसाद के लिए 5 लाख लड्डू बनाए जाते हैं. इस लड्डू वितरण के लिए वहां एक पूरा विशाल हाल है, जहां कई काउंटर्स पर ये मिलता है. और तो और खास आकार वाला और अलग तरह से बनाया जाने वाला लड्डू पेटेंट है. इस पर डाक टिकट तक निकल चुका है.
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शिरडी में भी प्रसाद के तौर पर लड्डू के वितरण के लिए खास व्यवस्था है. भारत के ज्यादातर मंदिरों में लड्डुओं का भोग लगाया जाता है. कुछ लड्डू सामान्य होते हैं. बूंदी के बनाए जाते हैं. कुछ मोतीचूर के मोतियों जैसे चूरों से मिलाकर बनाए जाते हैं. इनके स्वाद और खास मिठास के कहने ही क्या. दक्षिण भारत में लोगों ने नारियल और खोवा से खास लड्डू बनाए, जो पूरे देश में फैल गए.
अलग अलग स्वाद वाले
तिल के लड्डू, लाई के लड्डू, रामदाना, बेसन, चावल के आटे, ड्राईफ्रूट्स के लड्डू, मेथी, मूंगफली, आटे, बाजरे के लड्डू, बीजों से लेकर खोए के लड्डू, गुड के लड्डू…ना जाने कितनी तरह के लाजवाब अलग स्वाद वाले लड्डू.
नारायल नाकरू
देश का सबसे पुराना लड्डू नारायल नाकरू नाम से जाना जाता है. ये दक्षिण के चोल साम्राज्य के समय का है. ये एक ऐसी मिठाई थी, जिसे प्रतीक रूप में यात्रियों और योद्धाओं के लिए पैक किया जाता था. इसके जरिए उनके अभियानों के लिए शुभकामना जाहिर की जाती है. एक और बहुत पुराना लड्डू था, जो बाजरे का बनता था, जो भगवान मुरुगन मंदिर का प्रसाद है.
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उत्पत्ति औषधीय गुणों के कारण
दिलचस्प बात यह है कि इस लड्डू की उत्पत्ति औषधीय गुणों के कारण अधिक हुई. ऐसा कहा जाता है कि ये लड्डू कम उम्र की लड़कियों को उनके उग्र हार्मोन को नियंत्रण में रखने के लिए दिए जाते थे. वास्तव में, मेथी, मखाना और सोंठ सहित कुछ लोकप्रिय लड्डुओं की खोज उपचार के कारण हुई न कि मिष्ठान के तौर पर धार्मिक भोग लगाने के लिए.
कैसे बना ये गोल
हालांकि जिस तरह भारत में कई व्यंजन अचानक बन गए, वैसी ही कहानी पूर्वी लोककथाओं लड्डू को लेकर भी कही जाती है. कहा जाता है कि पहले लड्डू का आकार गोल नहीं था. एक बार जब इसे बनाया जा रहा था तो कुछ घी बच गया तो लड्डू बनाने वाले सहायक ने इसे अतिरिक्त घी से गोल गोल बना दिया. इसके अंडाकार गोले की जगह ले ली. बाद में ये और गोल हो गया. तो ये एक कहानी है जो बताती है कि गोल लड्डू का आविष्कार कैसे हुआ. हालांकि इस कहानी के समर्थन के दस्तावेज़ बहुत कम हैं. हालांकि आयुर्वेदिक लिपियां ऐसे व्यंजनों से भरी पड़ी हैं, जो लड्डु की तरह माने जाते थे.
सुश्रुत ने इस्तेमाल किया
ऐसा कहा जाता है कि 04 ईसा पूर्व प्रसिद्ध सर्जन सुश्रुत ने अपने सर्जिकल रोगियों के इलाज के लिए इसे एंटीसेप्टिक के रूप में उपयोग करना शुरू किया. आसानी से खाने के लिए, तिलों को गुड़ या शहद के साथ लेपित किया गया. एक गेंद का आकार दिया गया.
वैसे लड्डू हमारी जिंदगी में खुशियों और धार्मिकता के साथ कैसे जुड़ गए, ऐसा लगता है कि ये यात्रा मंदिरों से ही शुरू हुई होगी, क्योंकि वहां प्रसाद के तौर पर बांटने का आसान तरीका पाया गया होगा. लड्डू के साथ अच्छी बात ये होती थी कि प्रचुर मात्रा में घी और चीनी या गुड़ होने के कारण वो जल्दी खराब नहीं होते थे और उन्हें आसानी से लंबी दूरी तक ले जाया जा सकता था.
लड्डू की जिंदगी में असली मोड़ आया चीनी के आने के बाद
जब विदेशी व्यापारी और आक्रमणकारी यहां आए तो उन्होंने लड्डू में अपनी अपनी सामग्री को जोड़ दिया. मसलन खजूर, अंजीर, फलों और सब्जियों के बीजों का उपयोग. लड्डू की कहानी में असली मोड़ तब आया जब चीनी का इस्तेमाल शुरू हुआ होगा. ब्रिटिश शासन काल में आई चीनी ने कई मिठाइयों को नए तेवर दे दिए.
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बिहार के मोकामा लड्डू में चीनी पहली बार मिलाई गई. जब रामदाना के बीज, खोवा और चीनी के साथ पहली बार लड्डू बना तो इसकी मिठास ने लोगों को दीवाना बना दिया. ये जीभ पर ऐसी भायी कि फिर लोग इसे बार बार खाने के लिए मचल उठे. तो चीनी के आयात के साथ लड्डू ने जो टर्न लिया, वो गजब का था.
ठग्गू के लड्डू की भी एक कहानी है
कानपुर के मशहूर ठग्गू के लड्डू के बारे में कहा जाता है कि ये जब मुंह में आता है तो इसका मीठापन और सामग्री मुंह में घुल जाती है, ये भी चीनी से ही तैयार किया गया. ठग्गू के लड्डू को बनाने वाले मत्था पांडे उर्फ रामअवतार उन लोगों में थे, जिन्होंने देसी लड्डू में चीनी का इस्तेमाल किया.हालांकि उन्होंने इसका नाम ठग्गू के लड्डू क्यों रखा, इसकी भी कहानी तो होगी ही.
कहा जाता है रामावतार पांडेय गांधी जी के आदर्शों पर चलने वाले थे. उनको गांधी जी की बात याद थी कि शक्कर मीठा जहर है. तो जब दुकान खोली तो उन्होंने धंधे में इसे बेईमानी माना और अपने आपको ‘ठग्गू’ कहना शुरू कर दिया.
2600 ईसा पूर्व सिंधू घाटी सभ्यता में भी खाया जाता था
वैसे पुरातत्व उत्खनन से पता चला है कि जौ, गेहूं, चना और मूंग जैसे फलियों और अनाजों से बने “खाद्य गोले” लगभग 2600 ईसा पूर्व से सिंधु घाटी सभ्यता में खाए जाते थे.
केटी अचाया की किताब “ए हिस्टोरिकल डिक्शनरी ऑफ इंडियन फूड” कहती है, लड्डू कई दालों के बनाए जाते हैं. महाभारत में इसका लड्डूका के तौर पर हुआ है. मिठाई के रूप में लड्डू का पहला उल्लेख 11वीं शताब्दी की भारतीय रसोई की किताब लोकोपकारा में है. ये लड्डू चावल सेंवई, घी और चीनी की चाशनी के साथ लड्डू बनाने की विधि बताता है. जिन्हें गोले बनाकर घी में तला जाता है. 15वीं सदी की भारतीय रसोई की किताब निमतनामा-ए-नसीरुद्दीन-शाही में सफेद आटे, सूखे मेवे, गुलाब जल, कपूर और कस्तूरी से बने लड्डुओं की कई रेसिपी दी गई हैं.
बेसन से लेकर मोतीचूर लड्डू
वैसे बेसन के लड्डू सबसे लोकप्रिय इस व्यंजन की किस्म है. इसे बनाने के लिए बेसन को गर्म घी में भूना जाता है. फिर इसमें चीनी और इलायची पाउडर मिलाया जाता है. इसके बाद मिश्रण को गोले के रूप में बनाया जाता है. ठंडा होने और जमने दिया जाता है. तो मोतीचूर लड्डू मोती की तरह की बूंदियों से बनाया जाता है, फिर इसे चीनी की चाशनी में भिगोकर हाथ से गोल लड्डू की शक्ल दी जाती है. तो शाही लड्डू खोवा, इलायची, सूखे मेवे को मिलाकर बनाया जाता है.
वैसे लड्डू की स्वाद यात्रा दुनिया के सभी देशों में किसी ना किसी रूप में जुड़ी ही है. लड्डू देखकर किसका मन नहीं करेगा इसको खाने का. अगर आपकी जीभ में पानी आ रहा हो तो फिर एक लड्डू हो ही जाए. वैसे तो आप चाहें इसको बना भी सकते हैं.
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FIRST PUBLISHED : January 22, 2024, 09:42 IST