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- Chetan Bhagat’s Column India’s Dominance In Cricket Is A Lesson For Us Too
एक घंटा पहले
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चेतन भगत अंग्रेजी के उपन्यासकार
मुझे बचपन में देखी गई भारत-वेस्टइंडीज सीरीज की याद है। साल था 1983 (उफ्फ, मैं कितना उम्रदराज हूं!) मेरे और कुछ दोस्तों के पास एक मैग्नेटिक लेटर्स वाला स्कोरबोर्ड था, जिस पर हम टीवी पर मैच देखते समय स्कोर चालू रखते थे। पहले टेस्ट में ही वेस्टइंडीज ने हमें कुचल दिया।
उन्होंने पहली पारी में 454 रन बनाए। जब भारत बल्लेबाजी करने आया तो हमने बिना कोई रन बनाए दो विकेट खो दिए। वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाज इतने विकराल थे कि वे हमारे सज्जन बल्लेबाजों की तुलना में किसी दूसरे ग्रह के प्राणी लग रहे थे। भारत वह मैच पारी से हारा। टेस्ट सीरीज में 3-0 और वनडे सीरीज में 5-0 से शिकस्त मिली।
वेस्टइंडीज ने इसे बदला लेने वाली सीरीज कहा था, क्योंकि इसके कुछ ही महीने पहले भारत ने विश्वकप फाइनल में वेस्टइंडीज को हराया था। उस सीरीज के बाद ऐसा लगा मानो हमें फिर से हमारी औकात दिखा दी गई हो। मानो हमारी विश्व विजय हमारी क्षमता से अधिक थी और उसमें बड़ी भूमिका भाग्य की रही होगी।
एक या दो पीढ़ी पहले बड़े हुए लोगों ने ऐसी ही भारतीय टीम को देखा था। तब भारत कभी-कभार ही जीतता था, इसलिए वे क्षण आज भी हमारे मन में अंकित हैं। जैसे कि 1985 में ऑस्ट्रेलिया में बेंसन एंड हेजेस कप में जीत के बाद रवि शास्त्री को उपहार बतौर ऑडी मिलना और कार की छत पर टीम के द्वारा बैठकर उत्सव मनाना। यह विशेष था, क्योंकि यह दुर्लभ था।
हालांकि, भारत को उसके बाद भी बहुत हार का सामना करना पड़ा। ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां कुछ विकेट गिरते ही टीम बिखर जाती थी। तब माना जाता था कि कपिल देव आउट हो गए तो उसके बाद सब आयाराम-गयाराम हैं।
और अब, हम उन दिनों से कितना दूर चले आए हैं! आज की भारतीय टीम को देखें। मौजूदा विश्व कप में तो वह नई ऊंचाई पर चली गई है। उसने एक भी मैच नहीं हारा है। वह न केवल जीत रही है, बल्कि आराम से जीत रही है। कुछ मैचों में तो उसने प्रतिद्वंद्वी को रौंद दिया है।
पहले जैसे दर्दनाक क्षण अब नहीं आते और खेल में किसी भी समय आपको ऐसा नहीं लगता कि भारत यह मैच हार जाएगा। किसी अंतरराष्ट्रीय खेल में इस तरह का प्रभुत्व हमारे लिए दुर्लभ है। यह इस बात के लिए एक टेम्पलेट भी है कि हम किस तरह से खेलों के साथ ही उद्योग, व्यवसाय या बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में दुनिया में अपना वर्चस्व स्थापित कर सकते हैं। एक व्यक्ति के रूप में भी इससे तीन सबक सीख सकते हैं।
पहला सबक, मानसिकता में बदलाव। ‘हां, हम अच्छे हैं और कभी-कभी जीतते हैं’ की मानसिकता से ‘हम सर्वश्रेष्ठ हैं और बार-बार जीतते हैं’ तक। अक्सर हम अपने छोटे मानक तय करके संतुष्ट हो जाते हैं। ‘चलता है,’ ‘ठीक है,’ ‘यह इतना बुरा भी नहीं’- ये तमाम इस बात के उदाहरण हैं कि हम समझौता कर लेते हैं। लेकिन ऊंचा लक्ष्य क्यों न रखें? ऐसा क्यों मानें कि हम दुनिया से कमतर हैं?
हम कुछ जगहों पर पिछड़ सकते हैं, लेकिन बेहतर या सर्वोत्तम बनने का लक्ष्य क्यों न रखें? ऐसे हवाई अड्डे, सड़कें, महानगर क्यों न बनाएं, जो केवल कामचलाऊ नहीं, बल्कि बेहतरीन हों? हमारे निर्माण उद्योग की तुलना फिलीपींस और वियतनाम से क्यों हो, हम दुनिया के किसी भी देश से बेहतर मैन्युफैक्चरिंग क्यों नहीं कर सकते?
यह क्यों मान लें कि हम फुटबॉल में कभी अच्छे नहीं होंगे, आने वाले बीस वर्षों में विश्व कप फुटबॉल खेलने का लक्ष्य क्यों नहीं रखें? हम एक औसत करियर से ही संतुष्ट क्यों हों? उच्च मानक स्थापित करना सर्वश्रेष्ठ बनने की यात्रा का पहला कदम है। अगर हमने क्रिकेट में यह किया है तो कहीं और क्यों नहीं कर सकते?
दूसरे, लक्ष्य तय करने के बाद कड़ी मेहनत करना भी जरूरी है, क्योंकि भारतीय टीम संयोग से ही इतनी अच्छी नहीं बन गई है। इसके लिए उसने निरंतर अभ्यास किया है और पसीना बहाया है। आईपीएल ने भी इसमें योगदान दिया है। आज टीम में पर्सनल फिटनेस पर बहुत जोर दिया जाने लगा है।
हमारे आज के क्रिकेटर जितने बलिष्ठ हैं, वैसे पहले नहीं हुआ करते थे। तीसरी बात है मेरिट को सबसे ज्यादा महत्व देना। भारतीय क्रिकेट में भले थोड़ी-बहुत राजनीति हो, लेकिन वह ऐसी जगह भी है, जहां प्रतिभाओं की कद्र की जाती है। भारत में टैलेंट की कमी नहीं, लेकिन वो तभी उभरकर सामने आएंगे, जब हम एक मेरिट-आधारित समाज बनाएंगे।
यह लेख विश्वकप फाइनल की पूर्व-संध्या पर लिखा जा रहा है। लेकिन एक अर्थ में हम पहले ही जीत चुके हैं, क्योंकि तमाम विशेषज्ञों का मत है कि भारत इस टूर्नामेंट की सर्वश्रेष्ठ टीम है। मेरा तो यही मानना है कि विश्वकप एक बार फिर घर लौटकर आ रहा है!
‘चलता है,’ ‘ठीक है,’ ‘यह इतना बुरा भी नहीं’- ये तमाम इसके उदाहरण हैं कि हम समझौता कर लेते हैं। पर ऊंचा लक्ष्य क्यों न रखें? ऐसा क्यों मानें कि हम कमतर हैं? यदि हमने क्रिकेट में यह किया है तो कहीं और क्यों नहीं कर सकते?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)