पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, जब सरकार कहती है आम तो विपक्ष कहता है इमली! सरकार करती इकरार तो विपक्ष करता इनकार! अब देखिए ना, एक राष्ट्र-एक चुनाव की संभावना पर विचार करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में जो समिति बनी, उसमें शामिल होने से लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने इनकार कर दिया.’’
हमने कहा, ‘‘अधीर रंजन को इतना अधीर या बेचैन होने की क्या आवश्यकता थी? उन्हें धीर-गंभीर रहकर समिति की चर्चाओं में हिस्सा लेना चाहिए था. इससे उन्हें पता चलता कि क्या खिचड़ी पक रही है. अधीर को धैर्य रखने की आदत डालने के लिए भजन सुनना चाहिए- मन रे, तू काहे न धीर धरे! उन्हें अपने मन में श्रद्धा और सबूरी का भाव पैदा करना चाहिए.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, अधीर रंजन का पक्ष भी जान लीजिए. उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर कहा कि मुझे इस समिति में काम करने से इनकार करने में कोई झिझक नहीं है. मुझे डर है कि यह पूरी तरह से धोखा है. वे सरकार के इरादों पर सहजता से विश्वास नहीं कर सकते. सरकार भी तो पारदर्शी रवैया नहीं अपनाती. वह संसद का 4 दिवसीय विशेष सत्र बुला रही है जिसमें न प्रश्नकाल होगा, न शून्यकाल! इस सत्र का प्रयोजन, विषय या एजेंडा भी सरकार ने गुप्त रखा है. वैसे केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने स्पष्ट किया कि लोकसभा चुनाव समय से पहले कराने की सरकार की कोई योजना नहीं है.’’
हमने कहा, ‘‘सरकार पहले से बताकर कुछ नहीं करती. आपको समझना चाहिए कि जिस तरह नोटबंदी की घोषणा अचानक हुई थी और जिस प्रकार जीएसटी लागू करने के लिए अचानक रात में संसद की बैठक बुलाई गई थी, वैसा ही सरप्राइज यह सरकार देती है. वह विपक्ष को संभलने या रणनीति बनाने का मौका ही नहीं देती. विशेष सत्र के पीछे भी कोई राज छिपा होगा. इसे लेकर सरकार अपने कार्ड ओपन नहीं कर रही है. तब तक आप जो चाहे वह अनुमान लगाने के लिए स्वतंत्र हैं. आप इतना मान कर चलिए कि विपक्ष लाख चाहे तो क्या होता है, वही होता है जो मंजूरे ‘सत्ता’ होता है!’’