नई दिल्ली: अगली बार पोटैटो चिप्स या चॉकलेट खाने का जी करे तो फिर से सोचिएगा। ऐसा न हो कि आप स्वाद के चक्कर में सेहत से समझौता कर बैठें। आप जो भी खाते हैं, उसका असर आपके शरीर पर ही नहीं, मनोस्थिति पर भी होता है। शुगर से भरी डाइट और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड डिप्रेशन दे सकते हैं। JAMA नेटवर्क ओपन की 20 सितंबर को प्रकाशित एक स्टडी में मेंटल हेल्थ और लोगों के खानपान का तगड़ा कनेक्शन मिला है। रिसर्च में पता चला कि पोषण से कई तरह के मानसिक सुधार आते हैं। हालांकि, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड ज्यादा मात्रा में खाने वालों में डिप्रेशन का खतरा सबसे ज्यादा पाया गया। हमारे सहयोगी ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने डॉक्टरों से बात की तो उन्होंने संपूर्ण डाइट पर जोर दिया। खाना ऐसा हो जो आपके मूड को रेगुलेट करे, मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर्स के खतरे को कम करे और दिमागी ताकत बढ़ाए।
जो खाते है, उसका होता है मेंटल हेल्थ पर असर
श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट में मनोचिकित्सा के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. प्रशांत गोयल ने कहा, ‘हम मेंटल हेल्थ इश्यूज में इजाफा देख रहे हैं। मेंटल हेल्थ में न्यूट्रिशन को एक अहम एलिमेंट के रूप में तेजी से पहचाना जा रहा है। गट-ब्रेन एक्सिस दिखाता है कि हमारी आंत में मौजूद माइक्रोब्स मूड और अनुभूति को कैसे प्रभावित कर सकते हैं। इसे साइकोबायोटिक्स भी कहा जाता है। पोषक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर्स के इलाज में काम आ सकता है, शायद एंटी-डिप्रेशन दवाओं के असर में सुधार कर सकता है और मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर्स के जोखिम को कम कर सकता है।‘
क्लिनिकल और पब्लिक हेल्थ न्यूट्रीशनिस्ट डॉ. इशी खोसला के अनुसार, ‘हमारी बहुत सारी मेंटल फंक्शनैलिटी आंत में रहने वाली माइक्रो वनस्पतियां कंट्रोल करती हैं। उनकी संरचना का संतुलन और विविधता यह तय करती है कि वे पक्ष में काम करते हैं या विपक्ष में। यदि संतुलन सकारात्मक है, तो वे हमें स्वस्थ और खुश बनाने की दिशा में काम करते हैं, लेकिन अगर वे कुछ पर्यावरणीय कारकों के कारण परेशान होते हैं, तो डिस्बिओसिस की स्थिति पैदा होती है।‘
सर गंगा राम अस्पताल में न्यूट्रिशन और डायटिक्स में सीनियर डायटीशियन डॉ. मुक्ता वशिष्ठ ने कहा कि हेल्दी खाना मानसिक बीमारी से पीड़ित रोगियों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा, ‘आंत माइक्रोबायोम का हमारे मूड पर सीधा प्रभाव पड़ता है।‘ आंत के बैक्टीरिया सेरोटोनिन, डोपामाइन और मेलाटोनिन जैसे न्यूरोकेमिकल बनाते हैं, और यह हमारे मूड और अनुभूति को रेगुलेट करते हैं। उन्होंने कहा, ताजे फल, सब्जियां, गुड फैट्स और उचित मात्रा में तरल पदार्थ और प्रोबायोटिक्स का कॉम्बिनेशन न्यूरोट्रांसमीटर का उत्पादन करने में मदद करता है जिसका मस्तिष्क पर शांत प्रभाव पड़ता है और अच्छे इम्युनोमोड्यूलेटर होते हैं।
खाना ट्रिगर कर सकता है डिप्रेशन
एम्स के पोषण और आहार विज्ञान विभाग में वरिष्ठ आहार विशेषज्ञ डॉ. स्वप्ना चतुर्वेदी के अनुसार, आंत में माइक्रो-ऑर्गनिज्म ब्रेन में न्यूरोट्रांसमीटर का उत्पादन करते हैं जो स्मृति, सीखने और भावनात्मक नियमों जैसी प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकते हैं। उन्होंने कहा, एक परेशान आंत मस्तिष्क को संकेत भेज सकती है, जैसे एक परेशान मस्तिष्क आंत को संकेत भेज सकता है, और एक व्यक्ति की आंतों की परेशानी अवसाद का कारण बन सकती है। उन्होंने कहा कि आहार बदलने से आंत माइक्रोबायोटा संरचना प्रभावित हो सकती है, सूजन को कम करके और न्यूरोट्रांसमीटर उत्पादन को बढ़ाकर मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘फाइबर और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स से भरपूर स्वस्थ आहार आंत की माइक्रोबियल संरचना पर सकारात्मक प्रभाव डालता है, मेटाबोलिक एंडोटॉक्सिमिया और न्यूरोइन्फ्लेमेशन को कम करता है और इसलिए, मानसिक स्वास्थ्य में सुधार से जुड़ा होता है।‘
नारायण अस्पताल के कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट और साइकोथेरेपिस्ट डॉ. राहुल कक्कड़ ने कहा कि पोषण दिमाग के पूरी क्षमता से काम करने के लिए जरूरी पोषक तत्व प्रदान करके मानसिक स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। उन्होंने कहा, ‘जो भोजन हम खाते हैं वह न केवल हमारे शरीर को ईंधन देता है, बल्कि हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालता है।‘ उन्होंने कहा कि प्रोसेस्ड या हाई शुगर और ट्रांस फैट वाले खाद्य पदार्थ मूड स्विंग और डिप्रेशन में योगदान कर सकते हैं। इसके उलट, ओमेगा-3 फैटी एसिड और एंटीऑक्सीडेंट जैसे मस्तिष्क-वर्धक पोषक तत्वों से भरा आहार मानसिक लचीलापन और भावनात्मक स्थिरता को बढ़ावा दे सकता है। मैक्स हॉस्पिटल साकेत में मुख्य क्लिनिकल न्यूट्रीशनिस्ट डॉ. रितिका समद्दर ने कहा कि स्वस्थ जीवनशैली, व्यायाम और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों का कम सेवन सूजन को कम कर सकता है और मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकता है।