गोरखनाथ मंदिर में आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो ए के सिंह।
गोरखपुर। ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ व महंत अवेद्यनाथ की पुण्यतिथि के अवसर पर साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत ”आयुर्वेद-संपूण आरोग्यता” संगोष्ठी का आयोजन हुआ। संगोष्ठी के तीसरे दिन आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति एके सिंह ने कहा कि भारत में हजारों वर्षों पूर्व से आयुष चिकित्सा पद्धति सफलतापूर्वक चलाई जा रही है। आयुर्वेद स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य का रक्षण करने के साथ ही रोगी के उपचार की विधि बताता है।
उन्होंने कहा कि एक अध्ययन में पूरे विश्व में भारतीय थाली सर्वश्रेष्ठ और पौष्टिकता युक्त बताई गई है। आज हम फास्ट फूड के अभ्यस्त हो रहे हैं। यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होता है। हमें पुनः अपनी भारतीय थाली पर निर्भर होना पड़ेगा, तभी हमारा स्वस्थ भारत का संकल्प सिद्ध होगा।
सवाई आगरा से पधारे ब्रह्मचारी दासलाल ने कहा कि आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है। माना जाता है कि ब्रह्मा ने सृष्टि करने के पश्चात जीवों को स्वस्थ रखने के लिए आयुर्वेद का ज्ञान प्रदान किया था। हमारे शरीर में वात, पित्त और कफ त्रिदोष होते हैं। इनको अपने आहार-विहार से समान रखने से रोग नहीं होते हैं।
कटक उड़ीसा से पधारे महंत शिवनाथ ने कहा कि आसन, प्राणायाम और संतुलित दिनचर्या स्वस्थ रहने के सबसे उपयोगी साधन हैं। आयुर्वेद से शरीर स्वस्थ होता है तो योग से मन स्वस्थ और शांत होता है। गुरु गोरक्षनाथ आयुर्विज्ञान संस्थान सोनबरसा के प्रधानाचार्य डॉ. मंजूनाथ ने कहा कि स्वास्थ्य का स्वस्थ रक्षण करना ही आयुर्वेद है। आयुर्वेद में पंचकर्म का वर्णन है। इससे विभिन्न रोगों का इलाज किया जाता है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अध्यक्ष व पूर्व कुलपति प्रो. उदय प्रताप सिंह ने कहा कि आयुर्वेद विश्व की सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा पद्धति है। यह पूर्णतया प्राकृतिक और आध्यात्मिक है।