बॉलीवुड की राह पर चल पड़ा है OTT, ऐसे तो बर्बादी तय है!


सिनेमा को मनोरंजन का सबसे बड़ा जरिया माना जाता है. अपने देश में फिल्म इंडस्ट्री का तेजी से विकास इस बात का गवाह है. कोरोना के बाद जिस तरह भारतीय फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर कमाई की है, उससे पता चलता है कि लोग कितने बड़े पैमाने पर फिल्में देख रहे हैं. केवल इसी साल की बात करें तो बीते 9 महीनों में हिंदी फिल्मों ने 3500 करोड़ रुपए से अधिका का कारोबार किया है. लेकिन कोरोना काल ने मनोरंजन के एक नए माध्यम से लोगों का परिचय कराया, जिसने महज कुछ वर्षों में तेजी से विकास किया. जी हां, हम ओवर द टॉप यानी ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की बात कर रहे हैं. नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम वीडियो, डिज्नी प्लस हॉटस्टार, जी5 और सोनी लिव जैसे प्लेटफॉर्म्स के सब्सक्राईबर्स की संख्या करोड़ों में है. इसकी सबसे बड़ी वजह ये रही है कि ओटीटी ने यूनिक और इंटरेस्टिंग कंटेंट को अपना यूएसपी बनाया. 

ओटीटी प्लेटफॉर्म्स अब अपनी यूएसपी छोड़ते दिख रहे हैं. एक वक्त था जब ओटीटी बॉक्स ऑफिस पर भारी पड़ गया था. लोग सिनेमाघरों में जाकर फिल्म देखने की बजाए ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर वेब सीरीज या सिनेमा देखना ज्यादा पसंद कर रहे थे. दर्शकों की संख्या देखते हुए नई फिल्में भी सीधे ओटीटी पर स्ट्रीम की जा रही थी. लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है. ओटीटी का कंटेंट लगातार कमजोर हो रहा है. नई फिल्में तो नाम मात्र रिलीज हो रही हैं. इनमें ज्यादातर वो होती हैं, जिनको कोई डिस्ट्रीब्यूटर नहीं मिलता है. फिल्म रिलीज के दो महीने बाद उन्हें ओटीटी पर स्ट्रीम किया जाता है. तब तक लोग या तो फिल्म देख हो चुके होते हैं या फिर उनके प्रति रुचि खत्म हो चुकी होती है. दूसरी तरफ वेब सीरीज के विषय उठाकर देख लीजिए, उनमें अब बॉलीवुड की झलक दिखने लगी है. बॉलीवुड फिल्मों का फॉर्मूला नजर आने लगा है. 

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बॉलीवुड के मेकर्स जैसे फॉर्मूला बेस्ड फिल्में बनाने में यकीन करते रहे हैं. ज्यादातर बायोपिक या रीमेक फिल्मों का निर्माण किया गया है. उसी तरह अब ओटीटी के मेकर्स ज्यादातर क्राइम थ्रिलर बना रहे हैं. केवल इसी साल रिलीज हुई कुछ वेब सीरीज को उठाकर देख लीजिए उनके विषय टेररिज्म, अंडरवर्ल्ड, ऑर्गनाइज्ड क्राइम, रेप, मर्डर आदि के ईर्द-गिर्द बुने गए हैं. डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर स्ट्रीम हो रही सीरीज ‘सास बहू और फ्लेमिंगो’ (ऑर्गनाइज्ड क्राइम), ‘द नाइट मैनेजर’ (ड्रग्स, आर्म्स डिलिंग), ‘द फ्रीलॉन्सर’ (टेररिज्म), ‘आखिरी सच’ (मर्डर), ‘द ट्रायल’ (मर्डर); नेटफ्लिक्स की सीरीज ‘चूना’ (क्राइम, पॉलिटिक्स), ‘ट्रायल बाय फ़ायर’ (उपहार कांड); सोनी लिव की सीरीज ‘चार्ली चोपड़ा’ (मर्डर मिस्ट्री), ‘स्कैम 2003’ (करप्शन); अमेजन प्राइम वीडियो की सीरीज ‘बंबई मेरी जान’ (अंडरवर्ल्ड), ‘दहाड़’ (रेप) को इस नजरिए से देखा जा सकता है. 

ओटीटी को मशहूर बनाने में विविध विषयों पर आधारित वेब सीरीज का सबसे बड़ा योगदान रहा है. कुछ समय पहले तक ये विविधता दिखती थी. एक तरफ ‘पंचायत’ और ‘गुल्लक’ जैसी फैमिली सीरीज थी, तो दूसरी तरफ ‘मिर्जापुर’ और ‘सेक्रेड गेम्स’ जैसी क्राइम सीरीज. लेकिन अब एक पैटर्न एक फॉर्मूला दिखता है, जिस पर ज्यादातर मेकर्स सीरीज का निर्माण कर रहे हैं. ओटीटी को बॉलीवुड के उस दौर से सीख लेनी चाहिए, जब लोगों ने हिंदी फिल्में देखना ही बंद कर दिया था. लोग फॉर्मूला फिल्मों से ऊब गए थे. बॉलीवुड के मठाधीशों की मनमानी से तंग आ गए थे. इसकी परिणति बॉलीवुड बहिष्कार के रूप में देखने को मिली. साल 2020 से 2022 के बीच हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के अरबों रुपए डूब गए. आमिर खान जैसे कई बड़े सुपरस्टार घर बैठ गए. वो तो शुक्रिया कीजिए साउथ सिनेमा का जिसने लोगों को सिनेमाघरों तक लाने का काम किया.

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डेटा सोर्स- statista.com
 
ओटीटी अभी भी तेजी से विस्तार कर रहा है. इंटरनेट के बढ़ते दायरे के साथ ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की संख्या भी बढ़ रही है. साल 2020 में 40 से भी कम ओटीटी प्लेटफॉर्म्स थे, जिनकी संख्या अब 100 से अधिक है. ओटीटी का मार्केट भी तेजी से बढ़ रहा है, जो वर्तमान में 1.5 अरब डॉलर का है, लेकिन साल 2030 तक 12.5 अरब डॉलर को पार कर जाएगा. ओटीटी यूजर्स की संख्या में भी तेजी से इजाफा हो रहा है. वर्तमान में 350 मिलियन ओटीटी यूजर्स हैं, जिनकी संख्या 500 मिलियन तक पहुंच जाएगी. इसमें सबसे ज्यादा यूजर्स डिज्नी प्लस हॉटस्टार के हैं, जिनकी संख्या 43 मिलियन है. इसके साथ ही अमेजन प्राइम वीडियो के 17 मिलियन, नेटफ्लिक्स के 5 मिलियन यूजर्स हैं. ओटीटी मार्केट पर डिज्नी प्लस हॉटस्टार का कब्जा है. कुल व्यूअरशिप का करीब 30 फीसदी केवल उसके पास है. साल 2020 में इसने 16 बिलियन रुपए कमाई की थी.

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ओटीटी से जुड़े उपरोक्त आंकड़े उत्साहजनक हैं. इसका फायदा ओटीटी के मेकर्स उठाना चाहिए. उनको अपनी यूएसपी बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए. विदित है कि कंटेंट ही प्रमुख है. कंटेंट की वजह से ही ओटीटी ने ये मुकाम हासिल किया है. ऐसे में सब्सक्राईर्ब्स को कचरा परोसने की बजाए कंटेंट पर मेहनत करनी चाहिए. वरना हर महीने पैसे देकर कोई बासी फिल्में या ऊबाऊ वेब सीरीज देखने नहीं आएगा. डिजिटल मीडियम में यूजर्स को जोड़े रखना बहुत मुश्किल काम है. उनके पास ऑप्शन की कमी नहीं है. यूट्यूब, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे मीडियम फ्री में मनोरंजन कर रहे हैं. यहां वीडियो देखने के लिए पैसा नहीं देना पड़ता, लेकिन मनोरंजन पर्याप्त होता है. ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के कर्णधारों के लिए मंथन का समय है. उन्हें तय करना होगा कि किस तरह का कंटेंट वो अपने प्लेटफॉर्म्स पर दे रहे हैं. उनको अब अपनी कंटेंट पॉलिसी मजबूत करनी होगी. 


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