नई दिल्ली: जी20 शिखर सम्मेलन में कई बड़े मसलों पर चर्चा हुई। इनमें क्रिप्टो करेंसी, क्लाइमेंट चेंज और यूक्रेन संकट जैसे मसले शामिल थे। इन पर कई उच्च स्तरीय बैठकें हुईं। इस बीच अंतरराष्ट्रीय मेहमानों को यहां भारतीय आतिथ्य का स्वाद चखने को मिला। इसने मिलेट फूड को ग्लोब मंच तक पहुंचाया। सेलिब्रिटी खानसामों ने मिलेट्स के इर्द-गिर्द मेनू तैयार करने में कड़ी मेहनत की। इसे कभी गरीबों का भोजन माना जाता था। यह ग्लूटेन-मुक्त आहार के तौर पर भी जाना जाता है। लेकिन, अब मिलेट शानदार मेनू में शामिल है। इतिहासकार पुष्पेश पंत का कहना है कि सरकार की ‘फूड डिप्लोमेसी’ की रणनीति सही है। वह कहते हैं, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन देशों के लिए स्वीकार्य वैकल्पिक फूडग्रेन की पेशकश कर रहे हैं जो यूक्रेन युद्ध के कारण गेहूं की कमी से जूझ रहे हैं।’ पंत के अनुसार, मिलेट पर जलवायु का असर नहीं होता है। इसे ग्लोबल मंच पर रखकर भारत के आर्थिक और कृषि संसाधनों को भी दिखाया गया है।
फूड आउटरीच एक रणनीति है। लंबे समय से नेता इसका इस्तेमाल करते रहे हैं। चाहे अपनी छवि चमकाने के लिए हो या नए गठबंधनों और मित्रता को दिखाने के लिए। हाल ही में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के साथ कांग्रेस नेता राहुल गांधी चंपारण मीट खाने का लुत्फ उठा रहे थे। राहुल ने कहा था, ‘इसमें और राजनीति में क्या अंतर है? आप इसमें सब कुछ मिला देते हैं और आप राजनीति में सब कुछ मिला देते हैं।’ लालू जवाब देते हैं, ‘बिना मिलावट के राजनीति हो ही नहीं सकती।’ (बिना मिलावट के कोई राजनीति नहीं होती।)
दो सहयोगियों (दोनों I.N.D.I.A गठबंधन का हिस्सा हैं) के बीच बातचीत का वीडियो वायरल हो गया। वीडियो को छह दिनों में 33 लाख बार देखा गया। लेकिन, यह राहुल का पहला फूड रोडियो नहीं है। कुछ महीने पहले वह कुणाल विजयकर के साथ दिल्ली के एक पसंदीदा स्थान से दूसरे में गए। उससे पहले उन्होंने मछुआरों के साथ भोजन किया। फूड राइटर विक्रम डॉक्टर कहते हैं, ‘राहुल वर्किंग-क्लास इमेज बनाने और भोजन के जरिये लोगों से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं।’
नेताओं की रणनीति साफ है
अप्रैल में कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रियंका गांधी वाड्रा को मैसूर के होटल में गर्म तवे पर डोसा खाते हुए पाया गया था। 2014 में अमेठी में अपने भाई के लिए प्रचार करते समय ‘सोनिया: ए बायोग्राफी’ के लेखक रशीद किदवई याद करते हैं कि कैसे प्रियंका ने एक बूढ़े व्यक्ति को कुछ जलेबियां परोसने के लिए मना लिया था, जिसे वह तल रहा था। ‘मिठाई पर मक्खियां आ रही थीं। लेकिन उन्होंने हलवाई से पूछा, ‘चाचा हमें जलेबी नहीं खिलाओगे?’ वह बहुत खुश थे। यह जनसंपर्क का जोरदार नमूना था।’ किदवई कहते हैं कि यह गांधी परिवार के लिए एक ज्यादा स्वीकार्य छवि पेश करने का प्रयास था।
हाइपर मैसेजिंग वाले इस युग में माध्यम अक्सर मैसेज ही होता है। फरवरी 2020 में पीएम मोदी ने बिहार विधानसभा चुनाव के लिए बिगुल बजाने के लिए लिट्टी-चोखा खाया। फिर मुस्लिम कारीगरों के साथ तस्वीर खिंचवाई।
बापू का भोजन और राजनीति
विक्रम डॉक्टर महात्मा गांधी को जीवनशैली, खान-पान और अपने सार्वजनिक व्यवहार के जरिये प्रतीकवाद की कला को आगे बढ़ाने का श्रेय देते हैं। 1931 में कैदियों की रिहाई पर चर्चा के लिए लॉर्ड इरविन के साथ एक बैठक में मीराबेन (गांधी की अंग्रेजी सहायक मेडेलीन स्लेड) ने उन्हें भोजन परोसने की अनुमति मांगी। यह उनके दोपहर के भोजन का समय था। गांधी जी खजूर और बकरी के दूध का दही खाते थे। जब इरविन ने उनसे पूछा कि वह क्या खा रहे हैं, तो बापू बोले कि यह ‘पैगंबर का भोजन’ है। इरविन कट्टर ईसाई थे। बैठक के परिणामस्वरूप गांधी-इरविन समझौता हुआ था।
भोजन ने जब जोड़ने का किया काम
भोजन मतभेदों को दूर करने का एक तरीका हो सकता है। जैसा पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी अच्छी तरह जानते थे। वह प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को सिंधी कढ़ी खाने के लिए आमंत्रित करते थे। वे इस व्यंजन के प्रति उनके शौक को जानते थे। किदवई कहते हैं, ‘कढ़ी दो लोगों को अपने मतभेद दूर करने का एक बहाना मात्र थी।’
राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल हुआ भोजन
महाराष्ट्र में शिव सेना-बीजेपी ने भोजन की ताकत का बड़े सलीके से इस्तेमाल किया। बात उस समय की है जब बाला साहेब ठाकरे ने 1995 में झुनका-भाकर योजना शुरू की थी। बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही थी। इसका उद्देश्य फूड स्टॉल खोलने के लिए युवाओं को प्रोत्साहन देकर आय का स्रोत प्रदान करना था। इसे 2009 में वड़ा पाव स्टालों की भरमार हो गई। इससे शिव सेना महाराष्ट्रीयन भोजन बेच मराठी मानूस के मुद्दे पर आगे बढ़ी। अन्नाद्रमुक नेता जे जयललिता ने 2013 में तमिलनाडु में अम्मा कैंटीन के जरिये सब्सिडी वाला भोजन प्रदान करके इसे एक कदम आगे बढ़ाया। विक्रम डॉक्टर कहते हैं, ‘लेकिन, यह पहल जल्द ही बंद हो गई क्योंकि वह आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं थीं।’
खाने के कारण जब उलटे पड़ गए संबंध
फूड बॉन्डिंग कभी-कभी उलटा भी पड़ सकती है। 1976 में राष्ट्रपति गेराल्ड फोर्ड को मकई के पत्ते से बनी डिश परोसी गई थी। पत्तों से लिपटी इस डिश को खोलने की जरूरत पड़ती थी। उसे खोलने के बजाय तत्कालीन राष्ट्रपति ने पत्ते को चबा लिया था। इससे उनका दम घुटने लगा था। फिर टीवी पर इसे लेकर तरह-तरह की कहानियां चलने लगीं। अमेरिकी राष्ट्रपति अभियान के इतिहास में इसे ‘द ग्रेट टैमले इंसीडेंट’ के रूप में जाना जाता है। अंत में फोर्ड चुनाव हार गए।