यूपी का ‘खांड’ कैसे बन गया अमेरिका का ‘कैंडी’, जानें शक्कर के टाइम जोन की ये दिलचस्प कहानी


History Facts: खाने-पीने का इतिहास सभ्यता और संस्कृति से जुड़ा हुआ है. पुराने समय से ही लोगों लोग जहां-जहां गए, अपने साथ अपना कल्चर, अपनी वेशभूषा, और जायका साथ ले गए. तभी तो बिहार का लोक-डिश “लिट्टी-चोखा” देश-विदेश में भी पसंद किया जाता है. चाइना से आया नूडल्स/ चाऊमीन आज हर चौक-चौराहे पर खूब बिकता है, तो वहीं नेटफ्लिकस और चिल के साथ इटली का पिज्जा आज युवाओं की अव्वल पसंद है.   

ठीक ऐसे ही चीनी, जिसका ओरिजिन भारत से है. इससे जुड़े हुए कई किस्से हैं, इसमें एक दिलचस्प किस्सा है कि कैसे मिठास के एक लोकप्रिय रूप कैंडी ने कच्चा शूगर खांड से कैंडी तक का सफर तय किया. 

गन्ने का खांड कैसे बना कैंडी

प्रसिद्ध इतिहास और फिल्म निर्माता सोहेल हाशमी बताते हैं कि खांड का ट्रैवल जब सेंट्रल एशिया और अफगानिस्तान की तरफ हुआ तो ये बोलचाल में खांड से कंद बन गई, जिस से ताशकंद बना, गुलकंद बना. गुलकंद पान में प्रयोग के रूप में भारत वापस लौट आया. खांड जब सफर के जरिए यूरोप, अमेरिका पहुंचा तो कंद से ‘कैंडी’ बन गया और कैंडी हिंदुस्तान भी आ गई और तब से लेकर अब तक ये हर उम्र, हर वर्ग के लोगों में खासा लोकप्रिय होती चली गई. 

मिश्री का इतिहास 

चीनी, जब ट्रैवलर लोगों के संग को भारत से अरब गया और अरब से इजिप्ट ( मिस्र ). वहां लोगों ने चीनी के घोल बनाकर मिट्टी के बड़े ग्लास में धागा लगाकर उसको महीनों रखा जब उसपर क्रिस्टल आने आने लगे तो उसको छोटे टुकड़ों में तोड़ कर उसको माउथ फ्रेशनर के तौर पर प्रयोग करने लगे. जब ये भारत लौटी तो लोग उसे मिश्री कहने लगे क्योंकि ये मिस्त्र से आई थी. 

नारियल , जिसके बिना भारत के बहुमत में कोई पूजा पाठ पूरा नहीं होता. वो नारियल भरता में साउथ अमेरिका से आया.

खानपान का जायका, इससे जुड़े हुए तथ्य ,रोचक जानकारी और उसके पीछे का इतिहास अलग अलग संस्कृति को एक करता है, मिलाता जुलाता है. इतिहास से लेकर वर्तमान तक खाने पीने की चीज़ों से जो अलग अलग टाइम जोन का संबंध रहा है वो रोचक है. 

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