पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कोच मिकी आर्थर ने अहमदाबाद में खेले गए भारत-पाकिस्तान वर्ल्ड कप मैच के बाद कहा कि ये मैच वर्ल्ड कप के बदले द्विपक्षीय सिरीज़ या कहें बीसीसीआई इवेंट लग रहा है.
उनके इस बयान पर जब इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल के चेयरमैन ग्रेग बार्कले से प्रतिक्रिया मांगी गई, तो बार्कले ने कहा, “हम जो भी आयोजन करें, हमेशा आलोचनाएँ होती हैं. देखते हैं कि पूरा टूर्नामेंट किस तरह गुज़रता है, हमलोग इसके बाद समीक्षा करेंगे कि क्या बदलाव हो सकता था.”
हालाँकि क्रिकेट की दुनिया को पूरे टूर्नामेंट के आयोजन को देखने की ज़रूरत नहीं है. क्रिकेट वर्ल्ड कप के आयोजन के पहले दो सप्ताह बीतने के दौरान जो संकेत मिले हैं, वो पर्याप्त हैं.
दरअसल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) पूरी तरह भारतीय क्रिकेट के पैसों के दबाव में है और उसने 50 ओवरों के वर्ल्ड कप क्रिकेट टूनार्मेंट का आयोजन पूरी तरह से बीसीसीआई के हवाले कर दिया है.
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“हम जो भी आयोजन करें, हमेशा आलोचनाएँ होती हैं. देखते हैं कि पूरा टूर्नामेंट किस तरह गुज़रता है, हमलोग इसके बाद समीक्षा करेंगे कि क्या बदलाव हो सकता था.”
कई लोगों की नज़रों में ये स्वभाविक बात लगेगी कि मेज़बान देश के तौर पर भारत का प्रभुत्व दिख रहा है. हालाँकि सच्चाई यह है कि विश्व क्रिकेट में पैसा भारत से आ रहा है और इसके चलते बीसीसीआई का दबदबा दिखता है.
हालाँकि ये समझना होगा कि 50 ओवरों के वर्ल्ड कप के आयोजन की ज़िम्मेदारी बीसीसीआई के आम रवैए से थोड़ा अलग मामला है.
यह आयोजन ज़्यादा पैसा कमाने के चलते आईसीसी की बैठक में धौंस जमाने जैसा नहीं हो सकता.
भारत को क्रिकेट वर्ल्ड कप की चौथी बार मेज़बानी
ये किसी दूसरे देश के साथ भारतीय क्रिकेट टीम का कैलेंडर आयोजन भी नहीं है, जिसमें टीवी प्रसारण अधिकार से होने वाली आमदनी का कुछ हिस्सा दूसरे क्रिकेट बोर्डों को भी मिलता है.
यह कोई आईपीएल मैचों के आयोजन जैसा भी नहीं है, जिसमें हर क्रिकेट ज़्यादा कमाई करने के मौक़े उपलब्ध कराता है.
दरअसल वर्ल्ड कप क्रिकेट का आयोजन, दुनिया भर के क्रिकेट समुदाय के एकजुट होकर इस खेल का उत्सव मनाने जैसा आयोजन है.
लेकिन इस वर्ल्ड कप के दौरान ऐसा लग रहा है कि भारतीय क्रिकेट टीम, दुनिया की दूसरी नौ टीमों के ख़िलाफ़ द्विपक्षीय सिरीज़ खेल रही है.
जहाँ दूसरे देशों के बीच होने वाले मैचों की अहमियत कमतर या साइड इवेंट जैसी हो गई है.
आईसीसी की ओर से कोई दबाव नहीं होने के चलते भी, वर्ल्ड कप का आयोजन मौजूदा बीसीसीआई व्यवस्था के बुरे पहलुओं मसलन सत्ता का केंद्रीकरण, संकीर्ण दृष्टिकोण, कुप्रबंधन और अहंकार का शिकार बन गया है.
इसके नतीजे हमें वॉर्म अप मैचों और पहले दो सप्ताह के आयोजन के दौरान देख चुके हैं.
भारत चौथी बार वर्ल्ड कप का आयोजन कर रहा है, हालाँकि यह पहला मौक़ा है, जब वो अकेला मेज़बान देश है.
2011 का वर्ल्ड कप और मेज़बानी में वो उलट-फेर
2011 क्रिकेट वर्ल्ड कप की मेज़बानी का अधिकार पाकिस्तान से, 2009 में लाहौर में श्रीलंकाई टीम बस पर हुए हमले के बाद छीन लिया गया था. तब भारत को पूरे आयोजन का प्रभार दिया गया.
अगस्त, 2009 के बाद से टूर्नामेंट के नव नियुक्त डायरेक्टर रत्नाकर शेट्टी को प्रत्येक 15 दिनों पर आईसीसी को प्रगति के बारे में बताना होता था.
टूर्नामेंट के शिड्यूल, टिकट, मैच आयोजन के अलावा इस मुद्दे पर भी चर्चा होती थी कि कि मुंबई में होने वाले फ़ाइनल मुक़ाबले में अगर पाकिस्तान की टीम पहुँची, तो क्या होगा.
2011 में होने वाले वर्ल्ड कप के तारीख़ों की घोषणा नवंबर, 2009 में हो गई थी और टिकटों की पहली बिक्री जून, 2010 में शुरू हो गई थी.
इसके उलट 2023 में देखिए, किसी भी शख़्स को टूर्नामेंट डायरेक्टर के तौर पर आधिकारिक तौर पर नियुक्त नहीं किया गया.
भारत में मौजूदा समय में चल रहे क्रिकेट वर्ल्ड कप का रंग-ढंग, आईसीसी और बीसीसीआई में आए बदलावों के चलते भी बदला हुआ है.
ख़ासकर आईसीसी और बीसीसीआई के लीडरशिप में काफ़ी बदलाव आया है.
आईसीसी की निगरानी में कहां है कमी?
ऐसा ज़ाहिर होता है कि चेयरमैन बार्कले और सीईओ ज्यॉफ़ एलार्डिस के नेतृत्व में आईसीसी ने इस बार शेड्यूल बनाने, मैदान निरीक्षण करने और टिकटों की बिक्री की समय सीमा, सब बीसीसीआई के भरोसे छोड़ रखा है.
2011 में कोलकाता के ईडन गार्डेंस में वर्ल्ड कप की शुरुआत से महज एक महीना पहले, भारत और इंग्लैंड के मैच का आयोजन छीन गया था.
आईसीसी ने स्टेडियम की निरीक्षण के बाद माना था कि स्टेडियम एक महीने के अंदर पूरी तरह से तैयार नहीं पाएगा और ये मैच बेंगलुरु में कराने का फ़ैसला किया गया था.
2023 में सभी मैदान को पूरी तरह से तैयार बताया गया है, जबकि धर्मशाला की आउटफ़ील्ड क्षेत्ररक्षकों के लिए ख़तरनाक हो सकती है.
इतना ही नहीं लखनऊ के इकाना स्टेडियम के नए तैयार हुए विकेट पर पहला मैच वर्ल्ड कप का मैच था.
आईसीसी के मूकदर्शक बने रहने से 2023 का वर्ल्ड कप आयोजन बीसीसीआई की क्षमताओं के अनुरूप रह गए हैं, जिसमें ना तो पारदर्शिता है और ना ही किसी की कोई जबावदेही.
इसके चलते कई तरह की लॉजिस्टिकल ग़लतियाँ देखने को मिल रही हैं, जिसकी सार्वजनिक तौर पर चर्चा भी नहीं हो रही है.
टिकटों की कम बिक्री के पीछे आयोजन में ख़ामी?
क्रिकेट का बुद्धिजीवी जमात वर्तमान दौर में कमेंट्री के दौरान भी कुछ नहीं कहना चाहता, क्योंकि वे नहीं चाहते कि बीसीसीआई के साथ भविष्य में होने वाले रोज़गार के अवसरों मसलन आकर्षक आईपीएल कमेंट्री के मौक़ों को गँवा दिया जाए या फिर नई नियुक्तियों में उनकी उपेक्षा हो या फिर उनके पेंशन भुगतान को अचानक रोक दिया जाए.
जब विश्व कप के कार्यक्रम की कोई घोषणा नहीं हुई थी, जबकि छह महीने ही बचे थे तो आलोचना की तो बात ही छोड़िए, इसे ख़बर के तौर पर भी नहीं देखा गया.
विशेष रूप से भारत में, शेड्यूल अंततः 100 दिन शेष रहते जारी किया गया और इसके बाद इसे नए सिरे से जारी किया गया.
इसके बाद पहले मैच से 45 दिन पहले और बदलावों के साथ इसे फिर से जारी किया गया.
इस देरी से क्रिकेट टीमों, यात्रा करने वाले प्रशंसकों और दर्शकों के लिए कितनी मुश्किलें हुई होंगी, इस पर बोलने के लिए आईसीसी के पास कुछ नहीं है.
टिकट वितरण और बिक्री में गड़बड़ी एक स्थायी समस्या है और इसने प्रशंसकों को नाराज़ कर दिया और जिन मैचों में भारत नहीं खेल रहा है, उन खेलों में स्टेडियम ख़ाली हो गए.
लेकिन इसे कामकाजी दिनों में दर्शकों की व्यस्तता और अन्य देशों के मैचों में भारतीयों की कोई दिलचस्पी नहीं होने जैसी बातों से समझाया गया.
मेरे शहर बेंगलुरु में, जिन दो मैचों में भारत नहीं खेल रहा है, उन मैचों की टिकट की क़ीमत एक हज़ार से 25 हज़ार रुपए के बीच है.
आयोजन में ‘मेंटेनेंस’ को लेकर बुनियादी सवाल
हैदराबाद और अहमदाबाद में गंदी सीटों के वीडियो सामने आए हैं वहीं कुछ मैदानों में मुफ़्त मिलने वाले पानी की बिक्री होने के विजुअल्स भी सामने आए हैं.
इकाना स्टेडियम की छत से गिरते बैनर और वर्ल्ड कप के दौरान कुछ मैदानों की उपेक्षा के अन्य दृश्य भी सामने आए हैं.
वहीं धर्मशाला के शौचालय की फ़ेसबुक क्लिप भी सामने आई है, जिसमें एक बांग्लादेशी प्रशंसक हाथ धोते समय अपनी पतलून ऊपर चढ़ाए हुए है, क्योंकि फ़र्श पानी से भरा हुआ था.
लेकिन ये वे दृश्य नहीं हैं, जिनके लिए आईसीसी के 2023 विश्व कप को याद किया जाएगा, यह वर्ल्ड कप एक सतही और उत्साह बढ़ाने वाले साउंड ट्रैक के लिए याद किया जाएगा.
बीसीसीआई ने अपनी शक्ति का प्रयोग किया है क्योंकि वह कर सकता है.
आईसीसी के शीर्ष अधिकारियों ने अपने ख़ुद के आयोजन पर नियंत्रण छोड़ दिया है.
इसकी पहली वजह ये हो सकती है कि उनके पास धौंस जमाने वाले को चुनौती देने का विकल्प नहीं है. या फिर उन्हें धौंस जमाने वाले से भविष्य में कुछ ऐसा देने का वादा किया है, जिसे हासिल करने से वे चूकना नहीं चाहते.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)