1983 में कपिल देव की अगुवाई में भारतीय टीम ने वेस्टइंडीज को हराकर वर्ल्ड कप अपने नाम किया था।
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बैंक नोट प्रेस, देवास से रिटायर हुए जयंती प्रसाद आज भी याद करते हैं कि कैसे क्रिकेट वर्ल्ड कप 1983 के मैच वो अपने कम्युनिटी सेंटर में टेलीविजन पर देखा करते थे। वर्ष 1982 में भारत में एशियन गेम्स हुए थे और ब्लैक एंड व्हाइट के अलावा कलर टेलीविजन भी आ चुके थे। हालांकि, टेलीविजन की सुविधा बेहद सीमित लोगों तक थी। जयंती प्रसाद बताते हैं कि अधिकांश लोग रेडियो पर मैच की कमेंटरी सुनकर अपडेट्स लिया करते थे। उस समय क्रिकेट को लेकर फैन्स में वैसा ही जुनून होता था, जैसा इन दिनों है। क्रिकेट प्रेमी कहीं ना कहीं से मैच के हाल जानने के जुगाड़ ढूंढ लेते थे।
कुछ ऐसा था 1975 और 1979 में क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारत का प्रदर्शन
दरअसल, 1975 और 1979 में क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारत का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा था, लेकिन क्रिकेट को लेकर देश में माहौल जरूर बन गया था। भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को 1983 की टीम से ज्यादा उम्मीद नहीं थी कि भारत कोई बड़ा करिश्मा करेगा, लेकिन मैचों पर उनकी नजर बनी रहती थी।
उस दौर में बीबीसी मैचों का प्रसारण किया करता था और भारत में दूरदर्शन पर मैच देखे जाते थे। जयंती प्रसाद बताते हैं कि कपिल देव, सुनील गावस्कर, चेतन चौहान, महेंद्र अमरनाथ, मदनलाल जैसे खिलाड़ियों को लेकर लोगों में काफी क्रेज हुआ करता था। कप्तान कपिल देव को भारतीय क्रिकेट प्रेमी खेलते हुए देखना चाहते थे।
आज की तरह हर घर नहीं होते थे टीवी
1983 के वर्ल्ड कप में सबसे धुरंधर टीमों में वेस्टइंडीज, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान की गिनती होती थी। भारत की स्थिति कुछ वैसी ही थी, जैसी इन दिनों बांग्लादेश और अफगानिस्तान की है। भारत टेस्ट प्लेइंग देश था और यहां तेजी से क्रिकेट बढ़ रहा था। डिफेंस अकाउंट्स सर्विस से रिटायर हुए अनिल शर्मा बताते हैं कि उनके घर पर ब्लैक एंड व्हाइट टीवी आ चुका था। वो, उनके बड़े भाई के अलावा मोहल्ले के कई लोग भी मैच देखने के लिए घर पर जमा हो जाते थे।
उस दौर में ब्लैक एंड व्हाइट टीवी देखना भी किसी संघर्ष से कम नहीं था, क्योंकि ऊंचे-ऊंचे एंटीना लगे होते थे और बीच-बीच में एंटीना हिल गया तो मैच का प्रसारण कट जाता था। एक व्यक्ति एंटीना सही करने के लिए छत पर खड़ा रहता था।
अनिल शर्मा याद करते हैं कि जिस दिन फाइनल मुकाबला था, उस दिन वो महू (मप्र) से दिल्ली आ रहे थे। स्कोर जानने को लेकर उनमें एक अजीब सी बेचैनी थी। काफी ढूंढने के बाद ट्रेन में एक व्यक्ति के पास रेडियो मिला था। जब उन्हें पता चला कि भारतीय टीम मात्र 183 पर आउट हो गई है तो उन्हें निराशा हुई थी, क्योंकि वेस्टइंडीज के आगे 183 का स्कोर कुछ भी नहीं था, लेकिन जैसे ही वेस्टइंडीज के विकेट गिरना शुरू हुए तो उन्हें भरोसा हो गया कि भारत कप जीत सकता है। दिल्ली पहुंचने से पहले ही भारत ने वर्ल्ड कप अपने नाम कर लिया था।
अनिल शर्मा बताते हैं कि जो लोग उस दौर में क्रिकेट में रुचि रखते थे, वो मैच के स्कोर को लेकर बेचैन रहते थे, क्योंकि संसाधनों का अभाव था। चंद घरों में टेलीविजन थे। वहीं पूरे मोहल्ले के लोग जमा हो जाया करते थे। रेडियो से भी लोग चिपके रहते थे। कई बार तो भारत की जीत या हार का लंबे समय बाद ही पता चलता था। 1983 के वर्ल्ड कप के फाइनल की झलकियां बाद में दूरदर्शन ने दिखाईं तो उन्हें ही देखकर वो और उन जैसे क्रिकेट प्रेमी रोमांचित हो जाया करते थे।