विश्व रेडियो दिवस : पहले चिट्ठियां भेज सुनते थे फरमाइश के गाने, अब लोग लाइव कार्यक्रम के हैं दीवाने


धर्मशाला। रेडियो देश-विदेश में मनोरंजन और सूचना का महत्वपूर्ण साधन रहा है। बेशक बदलते परिवेश और आधुनिकीकरण के कारण इसमें बदलाव हुए, लेकिन आज भी जब कानों पर यह सुनाई देता है कि 103.4 मेगाहर्ट्स पर यह आकाशवाणी का धर्मशाला केंद्र है तो रेडियो की पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं। आकाशवाणी धर्मशाला की स्थापना 23 फरवरी 1994 में हुई थी। पिछले 30 साल में इस रेडियो स्टेशन ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। धर्मशाला आकाशवाणी के इस केंद्र ने हिमाचल के अलावा पंजाब और जम्मू-कश्मीर तक अपनी पहुंच बनाई है। हालांकि बदलाव की बात करें तो पूर्व में श्रोता चिट्ठियां भेजकर अपनी फरमाइश के गाने सुनते थे।

चिट्ठियों की जगह अब लाइव-फोन-इन कार्यक्रम ने ले रही है। अब श्रोता सीधे रेडियो स्टेशन पर फोन करते हैं और अपनी फरमाइश का गाना सुनते हैं। धर्मशाला आकाशवाणी के प्रोग्राम विंग के प्रोग्राम एग्जिक्यूटिव सुमित शर्मा और सहायक निदेशक (अभियंत्रिकी) मुख्तयार सिंह बताते हैं कि छह दशक पहले रेडियो के लिए लाइसेंस लेना पड़ता था। तब डाक विभाग में प्रतिवर्ष 10 रुपये और बाद में 15 रुपये शुल्क देना पड़ता था, लेकिन बाद में इस शुल्क को खत्म कर दिया गया। वर्तमान में रेडियो सुनना बिलकुल निशुल्क है। सहायक निदेशक (अभियंत्रिकी) मुख्तयार सिंह ने बताया कि धर्मशाला आकाशवाणी की पहुंच हिमाचल के अलावा पंजाब और जम्मू-कश्मीर तक है। बाहरी राज्यों के श्रोताओं के जब फोन आते हैं तो इसके बारे में पता चलता है। इस केंद्र के अधीन जिला चंबा के चुवाड़ी, भरमौर और चंबा सदर का रेडियो स्टेशन भी आता है।

आकाशवाणी ने समाचार, विचार, शिक्षा, सामाजिक सरोकारों, संगीत, मनोरंजन आदि सभी स्तरों पर अपने प्रसारण के माध्यम से देश के कोने-कोने तक पहुंच बनाई है। धर्मशाला केंद्र के माध्यम से मनोरंजन के अलावा कृषि-बागवानी, डॉक्टरी, महिला, युवा और शिक्षा से संबंधित कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।

सुमित शर्मा, प्रोग्राम एग्जिक्यूटिव


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