हाउसफुल रहा कॉमेडी नाटक तुक्के पे तुक्का का मंचन


कहावत है कि ‘खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान’ यानी जब योग्यता नहीं हो और किस्मत की सीढ़ी आपको मंजिल तक पहुंचा दे। बंसी कौल द्वारा निर्देशित नाटक ‘तुक्के पे तुक्का’ रंगमंच पर 30 सालों से ऐसी ही एक कहानी प्रस्तुत कर रहा है। राजेश जोशी द्वारा लिखित इस नाटक का 150वां मंचन रविवार को शहीद भवन में हुआ। हास्य-व्यंग्य रस की करीब एक घंटे की नाट्य प्रस्तुति में दर्शक जमकर लोटपोट हो गए। 1993 में नाटक का पहला मंचन हुआ था। नाटक का मंचन हाउसफुल रहा।

हाजिरजवाबी से प्रसन्न हुआ नवाब

अनपढ़ बेटा तुक्कू अपना बचपन पतंग उड़ाने में ही बर्बाद कर देता है। उसे देख एक ज्योतिष बताता है कि वह अधिकारी बन सकता है। तुक्कू उसकी बातों पर विश्वास कर तैयारी करने राजधानी पहुंच जाता है। यहां वह रात को भेष बदलकर गश्त पर निकले नवाब खामखां से मिलता है। नवाब तुक्कू की हाजिर जवाबी से काफी खुश होता है, और उसे अफसरों की परीक्षा में शामिल करा देता है। इधर अधिकारी ये समझते हैं कि तुक्कू नवाब का खास है। इसलिए उसे पास कर दिया जाता है।


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