लिवर को इस तरह सड़ा रहें हैं पिज्‍जा-चाऊमीन, तुरंत करें तौबा वरना सेहत का होगा कबाड़ा


हमारे मूड की तरह जीभ का स्‍वाद भी बदलता रहता है। हमारी टेस्‍ट बड़स को कभी नमकीन, तो कभी मीठा, तो कभी अचानक से कुछ स्‍पाइसी खाने की क्रेविंग होने लगती है। यही वजह है कि इस इच्‍छा को पूरा करने के लिए हम फास्‍ट फूड खाते हैं। फास्‍ट फूड से हमारा मतलब डोसा, नूडल्‍स, बर्गर, पिज्‍जा, छोले बटूरे, पाव भाजी या सैंडविच से है। ये सभी फूड आपकी क्रेविंग को बहुत जल्‍दी पूरा कर देते हैं। कई लोग तो आए दिन फास्‍ट फूड का सेवन करते हैं।

अगर आप भी इन्‍हीं में से एक हैं, तो भाई, जरा अपनी सेहत के बारे में सोच लें। क्‍योंकि इस तरह के फूड न केवल आपका वजन बढ़ाते हैं, बल्कि इनकी वजह से इंसुलिन रजिस्‍टेंस होता है , जो आगे चलकर मेटाबॉलिक सिंड्रोम डिजीज का कारण बन सकता है। आइए जानते हैं आखिर क्‍या है यह बीमारी और किस अंग को करती है प्रभावित।

​क्‍या है मेटाबोलिक सिंड्रोम डिजीज-

​क्‍या है मेटाबोलिक सिंड्रोम डिजीज-

मैक्‍स स्‍मार्ट सुपर स्‍पेशलिनटी हॉस्‍पीटल की क्‍लीनिकल न्‍यूट्रिशनिस्‍ट कल्‍पना गुप्‍ता के अनुसार, मेटाबोलिक सिंड्रोम विकारों का संग्रह है, जो हृदय रोग, स्ट्रोक और डायबिटीज का खतरा बढ़ाता है। हाई बॉडी मास इंडेक्स (30 किग्रा से ज्‍यादा), हाई ब्‍लड प्रेशर, हाई ब्‍लड ट्राइग्लिसराइड्स, लो एचडीएल लेवल मेटाबॉलिक सिंड्रोम डिजीज के मुख्‍य लक्षण हैं।

​फास्‍ट फूड का आपके लीवर पर प्रभाव-

​फास्‍ट फूड का आपके लीवर पर प्रभाव-

फास्‍ट फूड के सेवन को आपके लिवर डैमेज से जोड़कर देखा गया है। लीवर का काम चयापचय को डिटॉक्‍सीफाई करना और पाचन के लिए जरूरी बायोकेमिकल बनाना है। विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने के लिए यह जरूरी अंग है।

हम सभी जानते हैं कि फास्ट फूड में अन सैचुरेटेड और ट्रांस फैट की मात्रा ज्‍यादा होती है, जिससे लीवर मोटा हो सकता है और नॉन अल्कोहोलिक फैटी लिवर डिजीज का खतरा बढ़ सकता है।

सिरोसिस और नॉन-अल्कोहल स्टीटोहेपेटाइटिस का कारण

सिरोसिस और नॉन-अल्कोहल स्टीटोहेपेटाइटिस का कारण

जब NAFLD बिगड़ता है, तो यह दो और गंभीर लीवर डिजीज जैसे सिरोसिस और नॉन -अल्कोहल स्टीटोहेपेटाइटिस (NASH) का कारण बन सकता है। सेचुरेटेड शुगर और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर फास्‍ट फूड खाने से लीवर में सूजन और इंसुलिन रेजिस्टेंस की संभावना बढ़ती है।

फास्ट फूड में ज्‍यादा मात्रा में नमक होता है, जो सूजन बढ़ाने के साथ लिवर के ब्लड फ्लो को बदल सकता है। तो कैसे चुनें हेल्‍दी लाइफस्‍टाइल और डाइट?

​5-6 छोटे-छोटे मील्‍स खाएं

​5-6 छोटे-छोटे मील्‍स खाएं

एक दिन में 3 मील लेने के बजाय 5-6 छोटे-छोटे मील्‍स लें। यह तरीका आपको अनहेल्‍दी स्‍नैकिंग से बचाता है। इसक अलावा लंबे वक्‍त तक पेट भरा रहता है जिससे वजन नहीं बढ़ पाता।

​खूब सारे फल खाएं

​खूब सारे फल खाएं

इसके अलावा आप अपनी थाली में कई रंगों के फल और सब्जियों को शामिल कर सकते हैं। इनमें कैलोरी कम और फाइबर, विटामिन और मिनरल्‍स ज्‍यादा होते हैं। गैप फिलर के रूप में आप फलों का उपयोग कर सकते हैं।

अपने आहार में ज्यादा से ज्‍यादा सब्जियों का सेवन करने की कोशिश करें। अगर आपको सब्जियां पसंद नहीं हैं, तो आप चुकंदर की रोटी, मूली की रोटी, कम तेल वाला गोभी का पराठा, सब्‍जी, रायता, दाल पालक और सलाद खा सकते हैं।

भूख और प्‍यास के बीच न हो भ्रमित-

भूख और प्‍यास के बीच न हो भ्रमित-

कई बार लोग भूख और प्‍यास के बीच कंफ्यूज हो जाते हैं। प्‍यास लगने पर उन्‍हें लगता है कि वे भूखे हैं। इसलिए एक गिलास पानी पीकर प्‍यास बुझाने के बजाय वे ज्‍यादा कैलोरी का सेवन कर लेते हैं। बता दे कि पानी पाचन में मदद करता है और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है। इतना ही नहीं पानी भूख को भी दबा देता है।

​तरल पदार्थ का चुनाव ठीक से करें

​तरल पदार्थ का चुनाव ठीक से करें

हेल्‍दी लाइफस्‍टाइल के लिए तरल पदार्थ के रूप में हमें क्‍या पीना है, इसका चुनाव करना भी बहुत जरूरी है। कोला और शुगर फ्रूट जूस के बजाय नींबू पानी, नारियल पानी, घर का बना सूप, छाछ, बादाम और सोया दूध का सेवन करना चाहिए।

​30 मिनट की फिजिकल एक्टिविटी जरूरी-

​30 मिनट की फिजिकल एक्टिविटी जरूरी-

स्वस्थ वजन बनाए रखने और ब्‍लड शुगर को नियंत्रित करने के लिए हर दिन कम से कम 30 मिनट तक एक्सरसाइज करने से बहुत फायदा होता है। नियमित तौर पर वर्कआउट करके गुड कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में भी मदद मिलती है।

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डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।


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