खानेपीने की कहानियां: ब्राह्णण रसोइया चावल से बना रहा था शराब, बन गया पहला डोसा


हाइलाइट्स

तमिल संगम साहित्य में छठी शताब्दी में डोसा का तो जिक्र हुआ लेकिन इडली का नहीं
उडुपी का ब्राह्मण रसोइया ने शराब बनाने के लिए चावल को किण्वित करने के लिए रखा, फिर क्या हुआ
इंडिया रोज खाता है 1.2 अरब डोसा, हर राज्य के डोसे का अपना अलग अंदाज

कुरकुरा, अंदर आलू के मसालेदार मिश्रण से भरा मसाला डोसा देश के सुपरहिट व्यंजनों में एक है. पेट भरने वाला और संतुष्टिदायक. कहा जाता है कि एक अच्छा डोसा नाश्ते में आत्मा को तृप्ति से भर देता है. ये पूरे देश में सबसे ज्यादा खाया जाने वाला लोकप्रिय व्यंजन है. गरीब से लेकर अमीर तक की पसंद. हां, ये कुछ सवाल भी खड़ा करता है – कहां से आया? इसकी उत्पत्ति का राज क्या है? पहली बार मसाल डोसा जब बना तो गलती से ही.

डोसे की भारत में फैलने की कहानी तो जायकेदार है. तो पैदा होने की भी. उत्तर भारत के कुछ चुनिंदा शहर हैं, जहां साउथ इंडियन फूड सबसे पहले पहुंचे और लोकप्रिय हुए. इसमें एक शहर बनारस है. इस शहर का प्राचीन समय से दक्षिण भारत से खास कनेक्शन रहा. वैसे भी बनारस में पूरा भारत अपने तरीकों से अलग मोहल्लों में रहता आया है. इसी में एक मोहल्ला साउथ इंडियंस का भी है.

वाराणसी में हनुमान घाट के आस-पास का इलाका, पांडेय हवेली, दक्षिण भारत से आए लोगों का बसेरा है. हनुमान घाट पर ही शंकराचार्य कांची कमाकोटी मठ है. इस मठ के कांची कमाकोटी मंदिर को देखकर यह एहसास ही नहीं होता कि यह काशी है. इसकी खूबसूरत डिजाइन बिल्कुल दक्षिण भारतीय मंदिरों के तर्ज पर बनाई गई है. अब तो खैर बनारस में हर साल काशी तमिल संगमम का आयोजन होता है.

बनारस में दावा किया जाता है दो खाने यहां देश में सबसे पहले आए – एक इतालवी पिज्जा और दूसरा मसाला डोसा. चौंकिए मत, ये सही है. जब नार्थ इंडिया के लोग डोसे के बारे में जानते तक नहीं रहे होंगे, तब बनारस इसका स्वाद लेने लगा था.

पहली बार मैने अपनी जिंदगी का मसाला डोसा 70 के दशक यहीं खाया. गौदोलिया के एक रेस्टोरेंट में. शायद 50 पैसे या और भी कम में. खासा स्वादिष्ट. 90 के दशक में बाजारवाद का दरवाजा खुलने के साथ अच्छी बात ये हुई कि साउथ के अच्छे रेस्टोरेंट्स की चैन पूरे देश में फैलने लगी तो दक्षिण के व्यंजनों की बहार आने लगी.

चटपटी चटनी, जायकेदार सांभर और मसाला डोसा हो तो तृष्ति हो जाए. news18gfx

साउथ इंडिया की सबसे हिट डिश है मसाला डोसा. जो कंपलीट खाना माना जाता है. हालांकि अब पूरी दुनिया में फैल चुके डोसा के इतने अलग अलग स्वाद आ चुके हैं कि हैरानी हो सकती है. अपने ही देश में डोसा 100 से कहीं अधिक तरह का मिल जाता है. डोसा एक ऐसा व्यंजन है जिसमें अनाज है दालें भी, सब्जियां और स्वाद भी.

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वैसे मूल डोसा का पेस्ट जिसे बैटर भी कहते हैं जिसे चावल और उड़द दाल को भिगोकर और पीसकर बनाया जाता है. इस पीसे हुए पेस्ट को दही के साथ आमतौर पर रातभर के लिए छोड़ दिया जाता है, ताकि उसका फर्मेंटेशन हो सके.

रसोइया बना रहा था चावल की शराब और बन गया डोसा
बहुत से लोग मानते हैं कि डोसा का असली तौर पर जन्म उडुपी में हुआ. दुनिया के ज्यादातर आविष्कार जिस तरह अनायास या कुछ और करते हुए हुए, वैसा ही हाल डोसे का भी है. कहा जाता है कि एक ब्राह्मण रसोइए ने चावल की शराब बनाने की कोशिश में डोसा बना डाला. दरअसल पुराने समय में ब्राह्मणों के लिए मदिरा सेवन प्रतिबंधित था. बाजार में तो खरीदकर पीने का सवाल ही नहीं उठता था.

लिहाजा ब्राह्मण रसोइए ने खुद चावल का किण्वन करके उसे बनाने की कोशिश की. लेकिन इसने काम नहीं किया. लिहाजा उसने इसको गुस्से में गर्म पैन पर उडेल दिया. ये फैलकर कुरकुरी सी पपड़ी में बदला. ब्राह्मण ने इसे चखा तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा, उसने तो खाने का एक स्वादिष्ट व्यंजन बना डाला था. डोशा या डोसा का कन्नड़ में मतलब होता है गुनाह, चूंकि ब्राह्मण ने शराब बनाने की कोशिश का गुनाह करते हुए इसे बनाया था तो इसे डोशा कहा गया, बाद में ये डोसा हो गया.

पहले ये प्लेन डोसा था और चटनी के साथ खाते थे
मूल रूप से इसे पहले चटनी के साथ खाया जाता था. सांभर और तरह तरह की चटनियों का संग तो इसके साथ बाद में आया. डोसा क्रिस्पी भी होता है, स्पंजी और खाने में साफ्ट भी. शुरू में डोसा प्लेन ही होता था, जो चटनी और फिर कुछ समय बाद सांभर के साथ खाया जाने लगा. इसके बाद जब इसके अंदर आलू और प्याज का मिक्सचर भरा गया तो ये मसाला डोसा हो गया. लेकिन शुरुआती सदियों में डोसा प्लेन ही था. बहुत चाव से खाया जाता था. असली डोसा असल में वही था.

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पुर्तगाली लेकर आलू, जो डोसे में भी पहुंचा
जब पुर्तगाली भारत में आलू लेकर आए और ये देखते ही देखते गोवा से निकलकर पूरे भारत में लोकप्रिय होने लगा तो ये आलू डोसे के अंदर आकर मसाला डोसा बन गया. हालांकि अब तो डोसे के बाहरी और अंदरुनी स्टफ में बहुत से प्रयोग हो रहे हैं. देश के अलग अलग हिस्सों में तमाम तरह के डोसों के स्वाद मिल जाएंगे.

साउथ में कई मशहूर डोसे हैं
आमतौर पर मसाला डोसा सांभर, नारियल, टमाटर, पुदीना और कई तरह की चटनी के साथ परोसा जाता है. वैसे आपको बताऊं कि दक्षिण भारत में अलग शहरों के अलग तरह के डोसों ने पहचान बनाई. अब पूरे देश में उनकी डिमांड है, मसलन मैसूर के मसाला डोसा में अंदर आलू के मसाले के साथ पुदीने या नारियल की चटनी भी मिलाई जाती है.

बेने मसाला डोसा कर्नाटक के दावणगेरे से आता है, जिसे पर्याप्त बटर और आलू के मिक्सर के साथ बनाया जाता है. अब तो मसाला डोसा में अंदर आलू के साथ तमाम सब्जियों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें मटर, गोभी, पत्ता गोभी, प्याज और गाजर भी शामिल किया जाता है. सूजी से भी मसाला डोसा बनाया जाता है, जिसे रवा डोसा के नाम से जाना जाता है. मसाला डोसा का असली मजा तभी है जब बाहरी और अंदरूनी स्टफ दोनों काफी समृद्ध हों.

मैसूर की राजसी पाकशाला से जुड़ी है मसाला डोसा की कहानी
डोसा के बनने की एक कहानी मैसूर के राजा से भी जुड़ी है, जिनकी पाकशाला ने देश को कई तरह के पकवान दिए. मैसूर महाराजा ने एक दिन जबरदस्त पार्टी दी. इस पार्टी के बाद बहुत सा खाना बच गया. राजा नहीं चाहते थे कि इतना खाना बर्बाद हो इसलिए उन्होंने किचन स्टाफ और शेफ टीम से कहा कि वो इस बचे खाने से कुछ नया करें यानि अपनी क्रिएटिविटी दिखाएं.

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तब बचे फूड स्टफ को मसालों के साथ भूनकर प्लेन डोसे के अंदर भरकर इसे फोल्ड कर दिया. इस तरह कर्नाटक के उडुपी में ब्राह्मण रसोइए के जरिए बनाए गए डोसे के बाद मसाला डोसा की शुरुआत हुई.

दिल्ली में एक पंजाबी ने मद्रासी होटल खोलकर दिया था मसाला डोसा
कहा जाता है कि भारत में डोसा की लोकप्रियता देश की आजादी के बाद बढी. दिल्ली में पहली बार डोसे की शुरुआत कनाट प्लेस स्थित मद्रास होटल ने की. हालांकि इस होटल को दिल्ली में 1930 में किसी साउथ इंडियन ने नहीं बल्कि दिल्ली में बसे गए एक प्रवासी पंजाबी ने खोला था. आजादी के बाद मुंबई में कई उडुपी रेस्टोरेंट खुले. वैसे जो मसाला डोसा हमें होटलों में मिलता है, उसे उस रूप में होटलों में लाने का श्रेय 1930 में के कृष्णा राव द्वारा खोले गए उडुपी रेस्तरां का था. डोसे की लोकप्रियता के बाद दक्षिण भारत के दूसरे व्यंजन भी जाहिर तौर पर देश में लोकप्रिय होने लगे.

कैसे बनाते हैं
इसमें चावल और उड़द आमतौर पर 2:1 के अनुपात में मिलाकर भिगोया जाता है. फिर पीसकर पेस्ट बनाकर फर्मेंटेशन के लिए छोड़ दिया जाता है. आमतौर पर इडली, डोसा, उत्पम में एक ही बैटर का इस्तेमाल होता है.

वैसे देश के अलग राज्यों में डोसा की परत भी अलग तरह की होती है. ये तमिलनाडु में मोटी परत वाला और आकार में छोटा होता है तो कर्नाटक में डोसे की परत पतली, लंबी और क्रिस्प होती है. आमतौर पर मसाला डोसा में उबालकर पीसे आलू, प्याज और मिर्च के मसालों को मिलाकर उसके अंदर भरा है.

हालांकि अब इसके अंदर भरे मसालों की विविधता भी अलग हो चुकी है. कहीं आलू के इस मिश्रण को कढाई में तेल के साथ फ्राई करके डोसा में भरा जाता है तो कहीं बिना फ्राई मसाला. आमतौर पर ये सांभर और नारियल चटनी के साथ ही सर्व किया जाता है.

छठी शताब्दी के साहित्य में डोसा का जिक्र हुआ है
तमिल संगम साहित्य में छठी शताब्दी में इसके उल्लेख की बात कही जाती है, जिसमें डोसा का तो जिक्र हुआ लेकिन इडली का नहीं. कर्नाटक के साहित्य में इसका जिक्र चार सदी बाद जाकर हुआ. मनसोलास संस्कृत में 12वीं सदी में लिखी गई, जिसमें डोसे को डोसाका कहा गया, जिसमें चावल नहीं बल्कि दालों का ही इस्तेमाल होता था. आयुर्वेद कहता है कि डोसा कंपलीट आहार है, जो हेल्दी है.

इंडिया रोज खाता है 1.2 अरब डोसा
हालांकि इन आंकड़ों पर भरोसा नहीं किया जा सकता लेकिन मनीकंट्रोल (संदर्भ: Moneycontrol.com 03 अक्टूबर 2013) का एक पूराना अध्ययन कहता है पूरे देश में भारतीय रोज 1.2 अरब खा जाते हैं. ये आंकड़ें तो दस साल पहले के हैं. निश्चित तौर पर अब ये संख्या बढ़ चुकी होगी. अगर इसकी औसत कीमत 35 रुपये प्रति डोसा भी मानी जाए तो संयुक्त रोजाना कारोबार लगभग 4,200 करोड़ रुपये प्रति दिन का होना चाहिए. सालाना टर्न ओवर 15,33,000 करोड़ रुपये. है ना चकरा देने वाली बात.
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