पोषण के नाम पर धोखा! थिंक टैंक की सिफारिश- बिस्किट से लेकर इंस्टेंट नूडल्स तक, सब पर लगे ‘सिन टैक्‍स’


पोषण पर काम करने वाले एक थिंक टैंक के मुताबिक पैक्ड बिस्किट, इंस्टेंट नूडल्स और आइसक्रीम जैसे फूड प्रोडक्ट पर ज्यादा टैक्स लगाना चाहिए. ये टैक्स कार्बोनेटेड ड्रिंक्स पर लगने वाले ‘सिन टैक्स (Sin Tax)’ की तरह हो. थिंक टैंक ने इसके पीछे इन प्रोडक्ट्स में ज्यादा नमक, चीनी और फैट के शामिल होने को वजह बताया है. ऊपर से इन अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड या जंक फूड का आक्रामक तौर पर प्रचार किया जाता है.

‘न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट (NAPI)’ ने शुक्रवार को एक रिपोर्ट में कहा, ‘प्री-पैकेज्ड फूड प्रोडक्ट्स और उनके कंपोजिशन के क्‍वालिटेटिव एनालिसिस से पता चला है कि वे किसी जंक फूड (Junk Food) से कम नहीं हैं क्योंकि उनमें शुगर, सॉल्‍ट या सैचुरेटेड फैट की उच्‍च मात्रा थी, जो कि चिंताजनक है.’

43 प्रोडक्ट का एनालिसिस

NAPI ने प्री-पैकेज्ड शुगर वाले बेवरेजेज, जूस, बेकरी, कुकीज, चॉकलेट, कंफेक्शनरी, हेल्‍थ ड्रिंक्‍स, चिप्स, आइसक्रीम, इंस्टेंट नूडल्स और पिज्जा के कुल 43 प्रोडक्ट्स का एनालि‍सिस किया है.

  • कुल 43 में से 31 चीजों में शुगर अधिक पाया गया, 29 में टोटल फैट ज्‍यादा था, जबक‍ि 19 चीजों में सोडियम अधिक पाया गया.

  • थिंक टैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि कम से कम 8 प्रोडक्‍ट ऐसे थे, जिनमें ये तीनों तय सीमा से ज्‍यादा पाए गए.

न्‍यूट्रिशन कंटेंट या शुगर लेवल के बावजूद सभी कार्बोनेटेड ड्रिंक्‍स, पहले से ही शराब और तंबाकू के साथ हानिकारक वस्तुओं की श्रेणी में रखे गए हैं. इन पर 28% की अधिकतम GST दर और 12% सेस (Cess) लगता है.

कौन-सी कंपनियों के प्रोडक्‍ट्स घेरे में?

‘द जंक पुश’ टाइटल से जारी 116 पेज की रिपोर्ट के अनुसार, विश्लेषण किए गए 43 प्रोडक्‍ट्स का सैंपल टॉप कंज्‍यूमर गुड्स कंपनियों से लिए गए थे.

इनमें डाबर, ITC, नेस्ले इंडिया, हर्षे इंडिया, इटली के फेरेरो SPA, मोंडेलेज इंडिया, पतंजलि फूड्स, पारले, ब्रिटानिया, बॉन ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज, टाटा कंज्यूमर, बीकानेरवाला फूड्स, पेप्सिको, बीकाजी फूड्स, पारले एग्रो और कोका-कोला इंडिया जैसे नाम शामिल हैं.

फैट, शुगर, साल्‍ट का झोल!

रिपोर्ट के अनुसार, ये कंपनियां अपने प्रोडक्‍ट्स को ‘स्वास्थ्यवर्धक’ दिखाने की कोशिश करती हैं और इसके लिए वो जानकारी छिपाने के लिए नमक, चीनी या सैचुरेटेड फैट को अलग-अलग नाम देकर छापती हैं.

थिंक टैंक ने कहा कि ये भ्रामक विज्ञापन बच्चों को टारगेट करने के लिए बनाए जाते हैं. इसके लिए कंपनियां सेलिब्रिटी के सपोर्ट, इमोशनल अपील, अप्रमाणित स्वास्थ्य दावों का सहारा लेते हैं.

भ्रामक विज्ञापन

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2 (28) किसी भी उत्पाद या सेवा के संबंध में ‘भ्रामक विज्ञापन’ को परिभाषित करती है:

  • ऐसे विज्ञापन, जिनमें प्रोडक्‍ट या सर्विस का गलत वर्णन किया जाता हो.

  • ऐसे विज्ञापन, जिनमें जानबूझकर महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई जाती हों.

  • प्रोडक्‍ट या सर्विस की प्रकृति, पदार्थ, मात्रा या गुणवत्ता के बारे में उपभोक्ताओं को झूठी गारंटी देते हों या गुमराह करने की संभावना हो.

FSSAI, CSPA के नियमों का भी उल्‍लंघन

रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से कई विज्ञापन भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) और केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CSPA) जैसी रेगुलेटरी बॉडी की गाइडलाइन्‍स का भी उल्लंघन करते हैं.

NAPI संयोजक अरुण गुप्ता ने कहा, ‘मौजूदा रेगुलेटरी नियम जंक फूड के किसी भी भ्रामक विज्ञापन को रोकने में असमर्थ हैं. लीगल फ्रेमवर्क में भी सैचुरेटेड फैट, नमक और चीनी की अधिक मात्रा वाले भ्रामक दावों पर प्रतिबंध लगाने या लोगों को हेल्‍थ रिस्‍क के बारे में चेतावनी देने की क्षमता नहीं है.’

तेजी से बढ़ रहा जंक फूड का बाजार

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड इंडस्ट्री तेजी से बढ़ रही है. WHO की रिपोर्ट के मुताबिक 2011 और 2021 के बीच कीमत के हिसाब से ये साल दर साल 13.37% की दर से बढ़ी है. आगे भी सामान्य खाने-पीने की चीजों की तुलना में इसके तेजी से बढ़ने की उम्मीद है.

मार्केटिंग डेटा और एनालिटिक्स कंपनी कांतार के अनुसार कोल्‍ड ड्रिंक्‍स, स्क्वैश, पाउडर मिक्स और पैकेज्ड जूस सहित ड्रिंक्‍स खरीदने वाले परिवारों की संख्या 2019 में 38% से बढ़कर 2023 में 47% हो गई.

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय को तत्‍काल कदम उठाने की जरूरत

मोटापे और डायबिटीज जैसी बीमारियों से निपटने के लिए भ्रामक विज्ञापनों पर नियंत्रण बेहद जरूरी है. इसके लिए जंक फूड की बढ़ते बाजार और खपत को रोकने के लिए भी थिंक टैंक ने अपनी रिपोर्ट में कई सिफारिशें की हैं.

रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तत्‍काल कदम उठाए और प्री-पैकेज्ड फूड प्रोडक्‍ट्स में शुगर, साल्‍ट और सैचुरेटेड फैट की सीमा तय करे.

थिंक टैंक ने कहा है कि फूड प्रोडक्ट्स के बारे में ‘सबसे महत्वपूर्ण जानकारी’ क्या है, इसकी स्पष्ट परिभाषा भी तय करनी होगी. साथ ही भ्रामक विज्ञापनों पर तत्काल फैसला लेने के लिए सुझाई गई परिभाषा भी शामिल की जा सकती है.’


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