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कई रिसर्च ये बता चुके हैं कि कोई भी ग्राहक फ़ूड आइटम का एक पैकेट ख़रीदने में 6-10 सेकेंड का ही वक़्त लगाता है.
ग्राहक ज़्यादा से ज़्यादा उसकी एक्सपायरी डेट देखते हैं और उसकी क़ीमत.
लेकिन उस पैकेट के पीछे की साइड पर बहुत सी ऐसी ज़रूरी जानकारियां होती हैं जो आपको पढ़ना आ जाए तो शायद आप वो पैकेट ना भी ख़रीदें.
लेकिन वहाँ ये जानकारियां इस तरह लिखी होती हैं कि ग्राहक को समझ नहीं आता कि ये वाक़ई में उसके स्वास्थ्य के लिए ठीक है या नहीं.
आप पैकेट पर दिए गए पोषण संबंधी तथ्यों को देख कर अंदर के खाने की गुणवत्ता का आकलन करना सीख सकते हैं.
किसी चीज़ को ख़रीदने का आधार अगर उसमें विटामिन या मिनरल की कुछ मात्रा का होना है तो वो तभी फ़ायदेमंद है, जब उसके बाक़ी घटकों की मात्रा भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ना हो.
सबसे पहले तो ये जान लीजिए कि भारत में जो फ़ूड लेबलिंग होती है वो ये मान कर होती है कि एक व्यक्ति की डायट 2000 किलो कैलरी है. इसे स्टैंडर्ड मान कर हर फ़ूड पैकेट में रेकमेंडेड डायटरी अलाउंस (आरडीए) भी तय किया गया है.
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रेकमेंडेड डायटरी अलाउंस
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भारत में फ़ूड लेबलिंग की आवश्यकताओं को निर्धारित करने की ज़िम्मेदारी भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण की है, जिसे आमतौर पर एफ़एसएसएआई के रूप में जाना जाता है. ये संस्था ही लेबलिंग के नियमों को तय करती है और उनकी देखरेख करती है.
रेकमेंडेड डाइटरी अलाउंस का मतलब है कि एफएसएसएआई ने वैज्ञानिक जानकारी के आधार पर ये तय किया है कि एक स्वस्थ वयस्क के लिए किसी पोषक तत्व की इतनी मात्रा काफ़ी है.
एफ़एसएसएआई की गाइडलाइन के मुताबिक़ कार्बोहाइड्रेट का रेकमेंडेड डायटरी अलाउंस 130 ग्राम प्रति दिन है.
मान लीजिए आपने 30 ग्राम का कोई प्रोसेस्ड मूंगफ़ली का पैकेट खाया. लेबल के हिसाब से उसमें 24 फ़ीसद कार्बोहाइड्रेट है तो ये रेकमेंडेड डायटरी अलाउंस का लगभग 18 फ़ीसद है.
यानी कि आपको 18 फ़ीसद कार्बोहाइड्रेट तो मुट्ठी भर प्रोसेस्ड मूंगफ़ली के पैकेट से ही मिल गया. अगर आप 100 ग्राम खाते हैं तो दिन का 80 फ़ीसद कार्बोहाइड्रेट खा लिया.
लेकिन पूरे दिन में आप और भी चीज़ें खाएंगे जिसमें कार्बोहाइड्रेट होगा तो आप दिन की कार्बोहाइड्रेट की लिमिट पार कर ही जाएंगे.
सर्विंग साइज़: पैकेट की पीछे आपको ‘सर्विंग साइज़’ का लेबल मिलेगा. अन्य सभी जानकारी उस सर्विंग की मात्रा पर आधारित है. कई पैकेटों में एक से अधिक सर्विंग होती है.
भारत में फ़ूड पैकेट लेबल पर प्रति 100 ग्राम के हिसाब से पोषक तत्व लिखे होते हैं. अगर आप एक बार में 100 ग्राम से ज़्यादा खा रहे हैं तो फिर उसी मात्रा में वो पोषक तत्व आपके शरीर में जाएगा.
इस खाने में जो भी तत्व हैं, लेबल पर उसे अवरोही क्रम में दर्ज किया जाता है यानी जो भी तत्व उसमें सबसे ज़्यादा है वो सबसे पहले आएगा और जो सबसे कम है वो सबसे आखिर में.
घटक क्या हैं?
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सभी फ़ूड पैकेट पर उसके घटकों और उनकी मात्रा की जानकारियां देना आवश्यक है.
आपको चार घटकों पर सबसे ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है – कुल वसा (Total Fat), सेचुरेटेड फ़ैट, नमक/सोडियम और शुगर. ये सभी घटक आपके वज़न और रक्तचाप को में बदलाव ला सकते हैं जिससे दिल से जुड़ी बीमारियों और स्ट्रोक का ख़तरा बढ़ जाता है.
शुगर
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चीनी, चाहे इसे कुछ भी कहा जाए, इसमें सिर्फ़ कार्बोहाइड्रेट के अलावा कोई पोषक तत्व नहीं होता है.
ज़्यादा चीनी का सेवन आपको कैलरी से भर देता है, आपको स्वस्थ भोजन खाने से रोकता है क्योंकि आपकी भूख मर जाती है. शरीर की ब्लड शुगर के स्तर को सही बनाए रखने की क्षमता पर भी असर पड़ता है.
ऐसे खाद्य पदार्थों से सावधान रहें जिनमें ज़्यादा शुगर, शहद, गुड़, कॉर्न सिरप, कॉर्न शुगर, फ्रुक्टोज़ हो. चीनी के अन्य नामों में ब्राउन शुगर, गन्ना चीनी, कॉर्न स्वीटनर, डेक्सट्रोज़, माल्टोज़, फ़्रूट जूस कंसंट्रेट और ग्लूकोज़ शामिल हैं.
इनमें से कोई हेल्दी शुगर नहीं है.
जैसे एक जूस का पैकेट लीजिए. पैकेट तो एक लीटर का है लेकिन लेबल पर जानकारी प्रति 100 मिलिलीटर है.
अगर आप 100 मिलिलीटर जूस पीते हैं तो उसमें आपको कुल शुगर 12.6 ग्राम मिलेगा.
इसमें से अलग से मिलाया गया शुगर 8.3 ग्राम है, जिसकी आपके शरीर को कोई ज़रूरत नहीं है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ किसी स्वस्थ वयस्क के लिए प्रति दिन 25 ग्राम से ज़्यादा अलग से मिलाया गया शुगर नहीं लेना चाहिए. ये लगभग 6 चम्मच के बराबर शुगर होता है.
सोचिए दिन का आधा शुगर तो एक छोटे गिलास जूस से ही मिल गया.
वहीं, इस जूस के पैकेट में 18 मिलिग्राम विटामिन सी है और विटामिन सी की ज़रूरत प्रति दिन 40 मिलीग्राम है. तो अगर इस जूस को विटामिन सी की वजह से भी पी रहे हैं तो शुगर से होने वाला नुकसान सिर्फ़ एक छोटे ग्लास से ही बहुत ज़्यादा हो जाता है.
ये भी गौर करने वाली बात है कि ज़रूरी नहीं है कि जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के सुझाए आंकड़े हों, वही FSSAI भी फॉलो करता हो.
ऐसा हो सकता है कि रेकमेंडेड डाइटरी अलाउंस भारत में अलग हो. उदाहरण के तौर पर, FSSAI ने एडेड शुगर की लिमिट 50 ग्राम रखी है. ये विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुझाई लिमिट से दोगुना है.
नमक
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उच्च रक्तचाप के ख़तरे को कम करने में मदद के लिए ऐसे खाद्य पदार्थों का चयन करें, जिनमें सोडियम की मात्रा सबसे कम हो.
नमक विभिन्न प्रकार के सामान्य भोजनों में मिलाया जाता है, जिनमें कुछ ऐसे भी शामिल हैं जिनकी आप नमकीन होने की उम्मीद नहीं कर सकते, जैसे केक, ब्रेड, बिस्किट, और भी बहुत कुछ.
भारत में एक वयस्क को 5-6 ग्राम प्रतिदिन से ज़्यादा नमक का सेवन नहीं करना चाहिए. ये लगभग एक चम्मच के बराबर है.
ध्यान रखें कि कुछ उत्पादों के लेबल पर नमक की जगह सोडियम होता है. ऐसा लेबल है तो नमक की मात्रा जानने के लिए सोडियम की मात्रा को 2.5 से गुणा करें. सोडियम की मात्रा 2300 मिलिग्राम या 2.3 ग्राम प्रति दिन से कम होनी चाहिए.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट बताती है कि भारत में 18 करोड़ 80 लाख लोगों को हाइपरटेंशन यानी उच्च रक्तचाप की बीमारी है लेकिन सिर्फ़ 37 फ़ीसद लोगों को ही पता चल पाता है. इसमें से 30 फ़ीसद लोग ही इलाज ले रहे हैं.
वसा/फ़ैट
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फ़ूड पैकेट में सेचुरेटेड फ़ैट और ट्रांस फ़ैट की मात्रा देखें. हेल्दी डाइट के लिए सेचुरेटेड फ़ैट और कोलेस्ट्रॉल को कम रखें और ट्रांस फ़ैट से पूरी तरह बचें.
सेचुरेटेड फ़ैट जैसे बटर, मक्खन, नारियल तेल वगैरह. अनसेचुरेटेड फ़ैट जैसे ऑलिव ऑयल, सरसों का तेल.
जैसे एक 100 ग्राम के चिप्स के पैकेट में 555 किलोकैलरी हैं, 51 ग्राम कार्बोहाइड्रेट है, 35 ग्राम फ़ैट है. अगर आप दिनभर 2000 किलोकैलरी डाइट लेते हैं तो उसमें 20-35 फ़ीसद ही फ़ैट होना चाहिए यानी 44-78 ग्राम फ़ैट होना चाहिए. अब देखिए, एक चिप्स के पैकेट से आपको 555 किलोकैलरी मिल गई और 35 ग्राम फ़ैट.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक शरीर में बहुत ज़्यादा फ़ैट का जमा होना कई बीमारियों का ख़तरा बढ़ा देता है. जैसे 13 तरह के कैंसर, डायबीटीज़, दिल और फ़ेफ़ड़ों से जुड़ी बीमारियां और कई बार तो मौत का कारण भी बन जाता है. पिछले साल पूरी दुनिया में 28 लाख मौतें मोटापे के कारण हुई हैं.
फ़ाइबर
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ऐसे खाद्य पदार्थों को खाएं जिनमें प्रति सर्विंग 5 ग्राम फाइबर हो.
भारत में एसएसएआई रेगुलेशन ने पोषक तत्व होने के दावों के लिए कुछ शर्तों और नियमों को परिभाषित किया है.
जैसे कि किसी खाद्य उत्पाद में उच्च फ़ाइबर होने का दावा तभी किया जा सकता है जब 100 ग्राम के उत्पाद में फ़ाइबर सामग्री 6 ग्राम से ज़्यादा हो यानी 6 फ़ीसद से ज़्यादा हो.
इसलिए अब जब भी कोई फ़ूड पैकेट खरीदने जाएं, तो उसके लेबल को पढ़ने में कुछ समय ज़रूर लगाएं ताकि आप अपने और परिवार के लिए सही चुनाव कर सकें.