बता दें कि मनोज तिवारी ने साल 2008 में भारत के लिए अपना डेब्यू किया था और 7 साल और आठ अलग-अलग सीरीज में वह 12 वनडे और तीन टी20 मैच खेले। दिसंबर 2011 में, उन्होंने चेन्नई में वेस्टइंडीज के खिलाफ नाबाद 104 रन बनाकर अपना पहला अंतरराष्ट्रीय शतक लगाया था। हालांकि, उन्हें अगला मौका पाने के लिए 7 और महीने इंतजार करना पड़ा।
शतक के बाद टीम से हो गए थे बाहर
संन्यास के बाद मनोज तिवारी ने एक इंटरव्यू में कहा कि वह किसी दिन पूर्व कप्तान धोनी से यह जानना चाहते हैं कि शतक लगाने और प्लेयर ऑफ द मैच का पुरस्कार जीतने के बाद भी उन्हें लगातार 14 मैचों तक क्यों बाहर रखा गया। उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें 2012 में ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए नजरअंदाज कर दिया गया था, जबकि उस सीरीज में विराट कोहली, रोहित शर्मा और सुरेश रैना जैसे कुछ शीर्ष खिलाड़ी रन बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
उन्होंने कहा, ‘मौका मिलने पर मैं उनसे जरूर पूछूंगा। मैं यह सवाल निश्चित रूप से पूछूंगा मुझे शतक लगाने के बाद टीम से क्यों बाहर कर दिया गया, खासकर उस ऑस्ट्रेलिया दौरे में जहां कोई भी रन नहीं बना रहा था, न तो विराट कोहली, न ही रोहित शर्मा और न ही सुरेश रैना। अब मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं है।’
टेस्ट कैप नहीं मिलने पर जताया अफसोस
इसके अलावा मनोज टेस्ट कैप नहीं मिलने पर भी अफसोस जताया। प्रैक्टिस मैचों में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के खिलाफ अपनी पारियों और फर्स्ट क्लास क्रिकेट में अपने आंकड़ों का हवाला देते हुए तिवारी ने कहा कि भारतीय चयनकर्ताओं ने घरेलू क्रिकेट में उनके प्रयासों के बावजूद युवराज सिंह को चुना।
उन्होंने आगे कहा, ‘जब मैंने 65 फर्स्ट क्लास मैच पूरे कर लिए थे, तो मेरा बल्लेबाजी औसत लगभग 65 था। तब ऑस्ट्रेलिया टीम भारत दौरे पर आई थी, और मैंने अभ्यास मैच में 130 रन बनाए थे, फिर इंग्लैंड के खिलाफ अभ्यास मैच में 93 रन बनाए थे। मैं बहुत करीब था, लेकिन उन्होंने युवराज सिंह को चुना। तो टेस्ट कैप और शतक लगाने के बाद प्लेयर ऑफ द मैच का पुरस्कार मिलने के बावजूद मुझे नजरअंदाज कर दिया गया…मुझे लगातार 14 मैचों तक नजरअंदाज किया गया। जब आत्मविश्वास अपने चरम पर होता है और कोई उसे खत्म कर देता है, तो यह उस खिलाड़ी को खत्म कर देता है।’