सुर्ख़ियाँ और शोहरत सब के हिस्से में बराबर नहीं आती हैं.
कोई एक कारनामे से मशहूर हो जाता है तो किसी की बड़ी उपलब्धियाँ भी उसे प्रसिद्धि नहीं दिला पातीं. क्रिकेट भी इससे अछूता नहीं है. दुनिया में कई ऐसे क्रिकेटर रहे हैं जिनके योगदान को उतने क़द्रदान नहीं मिले जितने के वो हक़दार थे.
वर्ल्ड कप का सीज़न चल रहा है. आइए आज पाँच भारतीय खिलाड़ियों की बात करते हैं जिनका विश्व कप में दमदार प्रदर्शन रहा है, लेकिन उन्हें उतना श्रेय नहीं मिल पाया जितना मिलना चाहिए था.
गौतम गंभीर
12 साल पहले 2011 में भारत 28 साल बाद वर्ल्ड चैंपियन बना था.
उस ऐतिहासिक जीत पर कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का हस्ताक्षर था. फ़ाइनल में धोनी की 91 रन की नाबाद पारी और विजयी छक्के की धमक में दूसरी उपलब्धियाँ धूमिल पड़ गईं.
एक मुखर और बेबाक़ शख़्स हैं गौतम गंभीर. ख़ब्बू बल्लेबाज़ गौतम गंभीर को वो श्रेय नहीं मिला जिसके वो हक़दार थे. गंभीर इस मलाल को छुपाते भी नहीं.
गंभीर अक्सर कहते हैं कि क्रिकेट एक टीम गेम है. किसी एक खिलाड़ के दम पर मैच नहीं जीते जाते. उनकी सपाट बातों का अक्सर मतलब निकाला जाता है कि महेंद्र सिंह धोनी से उनकी बनती नहीं है.
मगर आप उनकी जगह ख़ुद को रख कर देखिए तो आपको भी ऐसा लगेगा कि जितना किया उतना मिला नहीं. क्या आपको याद भी है कि गंभीर दोनों विश्व कप के फाइनल में भारत के लिए सर्वोच्च व्यक्तिगत स्कोरर थे.
उन्होंने 2007 टी20 विश्व कप में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ 75 और श्रीलंका के खिलाफ 2011 वनडे विश्व कप में 97 रन बनाए थे.
गौतम गंभीर 2007 आईसीसी टी20 विश्व कप में भारत की ओर से सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी थे. पूरे टूर्नामेंट में मैथ्यू हेडन के बाद दूसरे नंबर पर थे. उन्होंने टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन करते हुए 7 मैचों की 6 पारियों में 227 रन बनाए. उनका औसत 37.83 और स्ट्राइक रेट 129.71 का था. उन्होंने तीन अर्धशतक भी जमाए थे.
पाकिस्तान के ख़िलाफ़ फाइनल में तो गंभीर ने ऐसी धमाकेदार पारी खेली कि सब दंग रह गए. गंभीर ने पारी की शुरुआत करते हुए 54 गेंदों में 8 चौके और 2 छक्के ठोक 138 से ज़्यादा की स्ट्राइक रेट से 75 रन बनाए थे.
गंभीर ने 2011 वनडे वर्ल्ड कप में नौ मैच की नौ पारियों में 43.66 की औसत और 85.06 की स्ट्राइक रेट से 393 रन बनाए. इसमें 4 अर्धशतक शामिल थे.
फ़ाइनल में श्रीलंका के 278 रन के लक्ष्य का पीछा कर रही भारतीय टीम सातवें ओवर तक वीरेंद्र सहवाग और सचिन तेंदुलकर जैसे दिग्गजों का विकेट गँवा चुकी थी. रन बने थे सिर्फ़ 31.
गंभीर पहले ओवर से 42वें ओवर तक क्रीज़ पर डटे रहे और 122 गेंदों पर 97 रनों की जुझारू और जुनूनी पारी खेलकर टीम को जीत की दहलीज़ तक पहुँचा दिया.
जब वे क्रीज़ पर आए तो स्कोर था एक विकेट पर शून्य रन और जब आउट हुए तो चार विकेट पर 223 रन. भारत को जीत के लिए सिर्फ़ 55 रन चाहिए थे. बाक़ी का काम कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने कर दिया.
वीरेंद्र सहवाग
साल 2011 विश्व कप में सलामी बल्लेबाज़ वीरेंद्र सहवाग ने शानदार बल्लेबाज़ी की. वह पूरे टूर्नामेंट के दौरान बेहतरीन लय में थे. शुरुआत से ही गेंदबाज़ों के ख़िलाफ़ मोर्चा संभाल लेते थे.
उद्घाटन मैच में उन्होंने बांग्लादेश के खिलाफ 175 रनों की ज़बरदस्त पारी खेली थी. सहवाग ने आठ पारियों में 122.58 की स्ट्राइक रेट से 380 रन बनाए. वे कितने आक्रामक थे इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह आठ में से 5 मैचों में पारी की पहली ही गेंद पर बाउंड्री लगाने में सफल रहे.
सहवाग ही वह मुख्य कारण थे जिनकी वजह से टीम इंडिया बड़े स्कोर का पीछा करने या पोस्ट करने में सफल हो सकी. हालांकि, टूर्नामेंट के दौरान उनकी साहसिक बल्लेबाज़ी के लिए उन्हें शायद ही कभी श्रेय दिया गया.
सहवाग ने 2003 के वर्ल्ड कप में 11 पारियों में 299 रन बनाए थे. श्रीलंका के ख़िलाफ़ 62 और फ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जोहानिसबर्ग में 82 रनों की पारी खेली थी. 60 रन के अंदर सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और मोहम्मद कैफ़ पवेलियन लौट चुके थे लेकिन पारी की शुरुआत करने गए सहवाग 24वें ओवर तक डटे रहे. इतने दबाव भरे मैच में सहवाग ने अपनी 82 रनों की पारी में 10 चौके और 3 छक्के जमाए और भारत की ओर से टॉप स्कोरर रहे.
ज़हीर ख़ान
क्रिकेट अब बल्लेबाज़ों का खेल बन कर रह गया है. जीत का श्रेय अक्सर बल्लेबाज़ ले जाते हैं. मगर सुनील गावस्कर कहते हैं कि सही मायनों में जीत आपको गेंदबाज़ ही दिलाते हैं.
वर्ल्ड कप का सबसे बड़ा अनसंग हीरो है ज़हीर ख़ान. 2003 में भारतीय क्रिकेट टीम विश्व कप के फ़ाइनल में पहुँची और 2011 में टीम चैंपियन बनी. दोनों ही बार भारत के सबसे सफल गेंदबाज़ थे ज़हीर ख़ान. लेकिन विश्व कप के हीरो के रूप में ज़हीर का ज़िक्र कम ही होता है.
बाएँ हाथ के तेज़ गेंदबाज़ ज़हीर ख़ान ने 2011 विश्व कप में 9 मैचों में 18.76 की इकॉनमी से 21 विकट लिए. नंबर-1 पर रहे शाहिद अफ़रीदी ने भी 21 विकेट लिए थे मगर 8 मैचों में.
वहीं 2003 में युवा ज़हीर ने भारत की ओर से 11 मैचों में सबसे ज़्यादा 18 विकेट लिए थे और सफल गेंदबाज़ों में चौथे नंबर पर रहे थे. सेंचुरियन में न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ 4 विकेट उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था.
आशीष नेहरा
2003 विश्व कप की बात चली है तो आशीष नेहरा को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. नेहरा ने टूर्नामेंट में 15 विकेट लिए थे.
डरबन में इंग्लैंड के खिलाफ नेहरा ने अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था. दो दिनों तक टखने में सूजन रहने के बावजूद नेहरा सबको हैरान करते हुए इंग्लैंड के खिलाफ डरबन मैच के लिए तैयार थे. नेहरा ने अपने 10 ओवर लगातार डाले.
उनका बॉलिंग फ़िगर था 10-2-23-6. वर्ल्ड कप में आज तक ये भारतीय गेंदबाज़ों का सबसे अच्छा प्रदर्शन है. मैच के बाद कप्तान सौरव गांगुली ने कहा था, ”जब से मैंने खेलना शुरू किया, वनडे में ये सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है.”
2011 के विश्व कप में नेहरा ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सेमीफ़ाइनल मैच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने अपने 10 ओवर के स्पेल में केवल 33 रन देकर दो विकेट हासिल किए. 3.30 की उनकी इकोनॉमी रेट ने 261 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए पाकिस्तान को दबाव में डाल दिया. चोटिल होने के कारण फ़ाइनल में नहीं खेल पाए थे.
मोहिन्दर अमरनाथ
1983 विश्व कप अप्रत्याशित रहा. कपिल देव की कप्तानी में भारत ने वो कर दिखाया जो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था. कपिल देव और उनकी सेना ने 25 जून को लॉर्ड्स में फ़ाइनल में शक्तिशाली वेस्टइंडीज़ को हरा कर विश्व कप पर क़ब्ज़ा कर लिया. भारतीय क्रिकेट में क्रांति आ गई. देश में खेल के इतिहास में यह एक अभूतपूर्व क्षण था, वह जीत एक पीढ़ी और उससे भी आगे को प्रेरित करती रही. अगर भारत आज क्रिकेट का पावरहाउस है, तो इसके बीज 1983 में लॉर्ड्स के उस महत्वपूर्ण दिन को बोए गए थे.
रातोंरात कपिल देव भारतीय क्रिकेट का सबसे बड़ा चेहरा बन गए. ज़िंबाब्वे के ख़िलाफ़ कपिल देव की अविश्वसनीय नाबाद 175 रन की पारी और फ़ाइनल में विवियन रिचर्ड्स को आउट करने के लिए उनके कैच ने उन्हें हर दिल अज़ीज़ बना दिया.
1983 वर्ल्ड कप की जीत में मोहिन्दर अमरनाथ के हरफ़नमौला प्रदर्शन को नहीं भुलाया जा सकता है. फ़ाइनल में अमरनाथ ने 26 रन बनाए और 12 रन देकर 3 विकेट लेकर शक्तिशाली वेस्टइंडीज़ की जीत की हैट-ट्रिक पर पानी फेर दिया. भारतीय गेंदबाज़ 183 के छोटे लक्ष्य की रक्षा करने में कामयाब रहे और भारत 43 रन से विजयी रहा. अमरनाथ फ़ाइनल के पहले सेमीफ़ाइनल में भी ‘मैन ऑफ़ द मैच’ रहे थे. इंग्लैंड के खिलाफ सेमीफ़ाइनल में उन्होंने पहले तो 2 विकेट लिए और फिर 46 रनों की पारी खेली. टूर्नामेंट की 8 पारियों में मोहिन्दर अमरनाथ ने 237 रन बनाए और 8 विकेट लिए थे.
1983 विश्व कप के कुछ और खिलाड़ियों का ज़िक्र करना चाहूँगा. यशपाल शर्मा ने वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ पहले मैच में 89 और सेमीफ़ाइनल में सबसे ज़्यादा 61 रन बनाए थे. वेस्टइंडीज़ के मनोबल पर पहला हमला यशपाल शर्मा ने ही किया था.
बीसीसीआई के मौजूदा अध्यक्ष रोजर बिन्नी ने उस विश्व कप में सबसे ज़्यादा 18 विकेट और मदन लाल ने 17 विकेट चटकाए थे.
एक और अनसंग बॉलर था जिसका नाम था बलविंदर सिंह संधू. फ़ाइनल में गॉर्डन ग्रीनिज का अहम विकेट लेकर वेस्टइंडीज़ के क़िले में पहली सेंध लगाई. उसके बाद की कहानी इतिहास बन गई. संधू ने 1983 विश्व कप में 3.57 की इकॉनमी से 8 शिकार बनाए थे.