रायपुर31 मिनट पहले
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प्राचीन काल में भारतीय खान-पान का अहम हिस्सा रहे मिलेट्स हमारी थाली से कब गायब हो गए पता ही नहीं चला। आधुनिक युग में मिलेट्स की पौष्टिकता और उससे होने वाले फायदों को देखते हुए धीरे-धीरे फिर से इसका महत्व बढ़ने लगा है और इसे लोगों तक पहुंचाने की कोशिश सरकारों द्वारा की जा रही है। यही वजह है कि साल 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट ईयर घोषित किया गया है।
सामान्यतः मोटे अनाज वाली फसलों जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कोदो, कुटकी और कुट्टू को मिलेट क्रॉप कहा जाता है। मिलेट्स को सुपर फूड भी माना जाता है, क्योंकि इनमें पोषक तत्व अन्य भोजन की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक होते हैं। छत्तीसगढ़ में मिलेट्स आदिवासी समुदाय के दैनिक आहार का अहम हिस्सा हैं। आज भी बस्तर में रागी का माड़िया पेज बड़े चाव से पीया जाता है। छत्तीसगढ़ के वनांचलों में मिलेट्स की खेती भी भरपूर होती है। इसे देखते हुए मोटे अनाजों के उत्पादन और उपभोग को प्रोत्साहित करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार की पहल पर मिलेट मिशन चलाया जा रहा है। छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जहां मिलेट्स को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में कोदो, कुटकी और रागी का ना सिर्फ समर्थन मूल्य घोषित किया गया है बल्कि इसकी खरीदी भी की जा रही है। छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा इसकी खरीदी की जा रही है। इसका असर यह हुआ कि प्रदेश में मिलेट्स का रकबा डेढ़ गुना बढ़ा है और उत्पादन भी बढ़ा है। सीएसआईडीसी ने मिलेट्स आधारित उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए भूमि, संयंत्र एवं उपकरण पर 50 प्रतिशत सब्सिडी देने की योजना भी तैयार की है।
मिलेट्स कैफे: कोदो से पकौड़ा, कुटकी और रागी से अप्पम और कंगनी का डोसा
दुनियाभर में साल 2023 इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर के रूप में मनाया जा रहा है। इसे यादगार बनाने के लिए अप्रैल में नालंदा परिसर में मिलेट्स कैफे खोला गया है। कैफे में आने वाले लोगों को मिलेट्स का स्वाद भी काफी पसंद आ रहा है। कैफे में कोदो, कुटकी, रागी समेत अन्य लघु धान्य फसलों से तैयार इडली, डोसा, पोहा, उपमा, भजिया, खीर, हलवा, कुकीज, मोल्ड के साथ छत्तीसगढ़ के पारंपरिक व्यंजन उपलब्ध हैं। इससे पहले मिलेट्स कैफे इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में खोला गया था। कैफे में कोदो से पकौड़ा, कुटकी और रागी मिलाकर अप्पम, कंगनी का डोसा भी मिलता है। इसके अलावा रागी, कोदो से बने डोसा, पकौड़ा, रागी माल्ट, कुकीज, पास्ता, नूडल्स, लड्डू और अन्य खाद्य व्यंजन बनाए जा रहे हैं।
मिलेट्स के व्यंजन को भी बढ़ावा
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर छत्तीसगढ़ विधानसभा में मिलेट्स के बने खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देने के लिए दोपहर भोज का भी आयोजन किया जा चुका है। इसी की तर्ज पर प्रदेश के बड़े सितारा होटलों के मेन्यू में भी मिलेट्स के व्यंजन रखे जा रहे हैं। शरीर के लिए फायदेमंद होने के कारण इसकी डिमांड भी बढ़ती जा रही है। इसके साथ प्रदेश के सभी बड़े जिलों में मिलेट्स कैफे की शुरुआत की जा चुकी है।
मिलेट्स का रकबा भी बढ़ा
छत्तीसगढ़ में मिलेट्स को बढ़ावा देने के कारण प्रदेश में इसका रकबा भी बढ़ा है। मिलेट्स की एमएसपी घोषित होने के बाद राज्य में पहले साल 55 हजार क्विंटल मिलेट्स की खरीदी की गई है। राज्य लघु वनोपज संघ द्व्रारा 2021-22 में 5273 टन और 2022-23 में 13005 टन मिलेट्स खरीदा गया है। मिलेट्स की खेती का रकबा 96 हजार हेक्टेयर से बढ़ाकर 1.60 लाख हेक्टेयर करने का लक्ष्य रखा गया है।
कैफे को लाखों की आमदनी
कुछ दिन पहले ही रायगढ़ के खरसिया में प्रदेश के पहले मोबाइल मिलेट कैफे मिलेट ऑन व्हील्स की शुरुआत की गई। इस कैफे का संचालन करने वाले महिला समूह ने सिर्फ 8 महीने में ही कैफे की मासिक आमदनी 3 लाख रुपए तक पहुंचा दी। मिलेट्स कैफे में रागी का चीला, डोसा, मिलेट्स पराठा, इडली, मिलेट्स मंचूरियन, पिज्जा, कोदो की बिरयानी और कुकीज जैसे लजीज व्यंजन परोसे जा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ कोदो-कुटकी और रागी की एमएसपी पर खरीदने वाला पहला राज्य बन गया है। राज्य सरकार द्वारा कोदो को समर्थन मूल्य 3000 रुपए प्रति क्विंटल, कुटकी भी 3000 रुपए प्रति क्विंटल और रागी को 3377 रुपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदी की जा रही है। मिलेट उत्पादक किसानों को राजीव गांधी किसान न्याय योजना का लाभ भी दिया जा रहा है। इस किसानों को भी 9000 रुपए प्रति एकड़ इनपुट सब्सिडी दी जा रही है। कांकेर जिले के नथिया-नवागांव में मिलेट्स का सबसे बड़ा प्रोसेसिंग प्लांट लगाया जा रहा है। इसे एशिया की सबसे बड़ी मिलेट्स प्रसंस्करण इकाई माना जा रहा है। अब तक प्रदेश के 10 जिलों में 12 लघु मिलेट प्रसंस्करण केंद्र स्थापित किए जा चुके हैं। इसी तरह गौठानों के रूरल इंडस्ट्रियल पार्क में भी मिलेट्स प्रोसेसिंग प्लांट लगाए जा रहे हैं।
पोषक तत्वों से भरपूर आहार
मोटे अनाज में प्रचुर पोषक तत्वों के कारण इन्हें सुपरफूड कहा जाता है। इनसे वजन घटाने, उच्च रक्तचाप व कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इनमें हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसे रोगों के प्रतिरोधक गुण होते हैं। इसमें शुगर भी न्यूनतम होता है। इन मोटे अनाजों में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन-बी, कैल्शियम, आयरन, मैंगनीज, मैग्नीशियम, पोटेशियम, कॉपर और सेलेनियम जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं।
कुपोषण दूर करने में काफी अहम रोल
विशेषज्ञों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में शुरू हुए मिलेट मिशन का मुख्य उद्देश्य कोदो, कुटकी, रागी, ज्वार इत्यादि की खेती के साथ मिलेट के प्रसंस्करण को बढ़ावा देना है। इसके अतिरिक्त दैनिक आहार में मिलेट्स के उपयोग को प्रोत्साहित कर कुपोषण दूर करना है। आंगनबाड़ी और मिड-डे मील में भी मिलेट्स को शामिल किया गया है। स्कूलों में भी बच्चों को मिड-डे मील में मिलेट्स के व्यंजन परोसे जा रहे हैं। इनमें मिलेट्स से बनी कुकीज, लड्डू और सोया चिक्की जैसे व्यंजनों को शामिल किया गया है।
राष्ट्रीय स्तर पर मिल चुका है सम्मान
छत्तीसगढ़ में मिलेट्स की खेती के लिए राज्य को राष्ट्रीय स्तर का पोषक अनाज अवार्ड 2022 सम्मान भी मिल चुका है। मिलेट मिशन के चलते राज्य में कोदो, कुटकी और रागी (मिलेट्स) की खेती को लेकर किसानों का रुझान बहुत तेजी से बढ़ा है। पहले औने-पौने दाम में बिकने वाला मिलेट्स अब अच्छे दामों में बिकने लगा है। बीते एक साल में प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों की संख्या में लगभग पांच गुना और इससे होने वाली आय में चार गुना की वृद्धि हुई है।
हैदराबाद के साथ एमओयू भी
छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के प्रयास से आईआईएमआर हैदराबाद के साथ मिलेट मिशन के अंतर्गत त्रिपक्षीय एमओयू भी हो चुका है। छत्तीसगढ़ मिलेट मिशन के तहत मिलेट्स के उत्पादन को दोगुना करने का टारगेट रखा गया है। सीएसआईडीसी मिलेट्स आधारित उद्योगों को प्रोत्साहित देने पर भी विचार कर रहा है।
कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में सबसे कारगर
मिलेट्स देश में कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में सबसे कारगर भूमिका निभा रहा है। देश में 1960 तक भारतीय खाने में मोटे अनाज हमारे आहार का मुख्य घटक थे। इसके बाद हमने गेहूं और चावल को अपनी भोजन की थाली में सजाना शुरू कर दिया। नतीजा मोटे अनाज हमारी थाली से बाहर होते चले गए। आज पूरी दुनिया उसी मोटे अनाज के महत्व को समझते हुए उसकी ओर वापस लौट रही है।
मिलेट्स के व्यंजनों की जबरदस्त रेंज
कोदो, कुटकी, सवां और रागी जैसे अनाजों से कोदो-कुटकी से पास्ता, नूडल्स, केक, रोटी, खुरमी बालूशाही, कोदो के अप्पे, कोदो-कुटकी से बने चिवड़ा और भेल बनाए जाने लगे हैं। मिलेट्स रागी पिज्जा, रागी वेज सैंडविच, रागी गार्लिक ब्रेड, रागी इडली, रागी कुकी, कुटकी खीर, गुलगुला, चैनल खीर, रागी बड़ा, भजिया, रागी चीज डोसा, लेमन ग्रास टी, बस्तरिया कॉफी, बासी भात विथ दही, कुटकी टी, किनवा लस्सी तैयार की जा रही है।
हेल्दी डाइट : एमएसपी पर कोदो-कुटकी-रागी खरीदने वाला पहला राज्य बना छत्तीसगढ़, खेती का रकबा भी बढ़ा
स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है
कोदो, कुटकी, रागी और कंगनी से लड्डू तैयार किया जा रहा है। कुकीज भी बनाई जा रही है। इन सभी प्रोडक्ट की खास बात यह है कि यह स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं। इसमें किसी भी प्रकार से आटे, मैदा, शुगर और चावल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। लड्डू में भी गुड का इस्तेमाल किया गया है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत फायदेमंद है। पब्लिक डिमांड के साथ यहां वैरायटी भी बढ़ती जाएगी।
वैल्यू एडिशन पर भी काम
नालंदा परिसर के मिलेट्स कैफे के संचालक बताते हैं कि हम कोदो, कुटकी और रागी के पारंपरिक व्यंजनों में वैल्यू एडिशन पर काम कर रहे हैं। अलग-अलग व्यंजन बनाकर नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं। कुछ दशक पहले तक मोटा अनाज गरीबों का खाना हुआ करता था। आज कोदो, कुटकी, रागी और कंगनी से बनी चीजें लोग शौक से खाते हैं। कैफे में लगातार नए व्यंजन पेश किए जा रहे हैं।
कुल रकबा 88 हजार हेक्टेयर
खास बातें
एमएसपी: कोदो
3000
कुटकी
3000
रागी
3377 रु. प्रति क्विं.