भारत में क्रिकेट स्टेडियम में ‘जय श्री राम’ भड़काऊ तो वहीं क्रिकेट ग्राउंड में नमाज ‘कूल!’


क्रिकेट के विश्व कप में भारत और पाकिस्तान के मैच में भारत ने पाकिस्तान को एकतरफा मुकाबले में 14 अक्टूबर को पराजित कर दिया। यह जीत बहुत ही विशेष थी क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट का मुकाबला साधारण मुकाबला न होकर एक दूसरी ही भावना के साथ खेला जाने वाला मुकाबला होता है, जिसमें अनेकों भाव होते हैं।

परम्परागत शत्रुता के भाव जैसे भाव इस मुकाबले में आ जाते हैं। इसमें विभाजन की पीड़ा से लेकर कई युद्धों के माध्यम से भारत भूमि को दिए गए घाव ताजा हो जाते हैं क्योंकि कहीं न कहीं उन बातों को खिलाड़ियों और दर्शकों के माध्यम से कुरेदा जाता है। इस मैच से पहले भी यही कुछ हुआ और शोएब अख्तर ने ट्वीट किया कि ठण्ड रख! हालांकि मैच के बाद सचिन तेंदुलकर ने सही जबाव दिया।

हालांकि सबसे बढ़कर जो सेक्युलर्स के बीच चर्चा का विषय रहा वह था दर्शकों द्वारा जय श्री राम का नारा! रिजवान के आउट होने के बाद कुछ लोगों ने “जय श्री राम” का नारा लगाया। जैसे ही यह वीडियो वायरल हुआ वैसे ही सेक्युलर्स के पेट में मरोड़ पैदा होने लगी और भारत की मेजबानी की दुहाई दी जाने लगी कि भारत में अतिथि देवो भव: की परम्परा है और अतिथियों का अपमान नहीं किया जाता। सेक्युलर्स यह भूल गए कि बीसीसीआई द्वारा टीम के आतिथ्य में कोई कमी नहीं छोड़ी गयी थी और अहमदाबाद होटल में जिस प्रकार से स्वागत सत्कार किया गया था, उससे देशभक्त भारतीयों में भी गुस्से की लहर दौड़ गयी थी। लोगों के दिमाग में भारतीय खिलाड़ियों के अपमान की वह कहानियां दौड़ने लगी थीं, जो पाकिस्तान में या पाकिस्तानी लोगों द्वारा किया गया था।

कौन भूल सकेगा कराची में 1989 में पाकिस्तान गयी भारतीय टीम पर पाकिस्तानी दर्शकों ने हमला कर दिया था। कौन वह मैच भूल सका होगा जब तीन मैचों की एक दिवसीय सीरीज में भारतीय टीम पर पत्थरों की बारिश कर दी थी क्योंकि पाकिस्तान के विकट तेजी से गिर रहे थे। जब जावेद मियाँदाद भी दर्शकों को शांत नहीं करा पाए थे तो मैच रद्द हो गया था। वहीं श्रीकांत पर एक व्यक्ति ने हमला कर दिया था। उनकी शर्ट फाड़ दी गयी थी। कहा जाता है कि लोग बाबरी मस्जिद के कारण चल रहे विवाद से नाराज थे। यह ध्यान देने वाली बात है कि पाकिस्तान में खेल में ही नहीं हर चीज में मजहब पहले है क्योंकि भारत भूमि का वह विभाजन हुआ ही मजहब के आधार पर है।

उसके बाद उस मैच को कौन भूल सकता है जो सचिन तेंदुलकर की कप्तानी में वर्ष 1997 में कराची में खेला गया था और उस समय भी भारतीय खिलाड़ियों पर पत्थर फेंके गए थे। पाकिस्तान की पारी को 47-2 ओवर हो गए थे और पाकिस्तान के 265 रन बने थे। भारतीय फील्डर्स पर दर्शकों की ओर पत्थर फेंके जाने लगे थे और सचिन तेंदुलकर अपने सभी खिलाड़ियों को लेकर चले गए थे और उन्होंने खिलाड़ियों की सुरक्षा को देखते हुए वापस आने से इंकार कर दिया था। पाकिस्तान की पारी वहीं समाप्त कर दी गयी थी और भारत को 47 ओवर्स में 266 रन बनाने का लक्ष्य दिया गया था। भारत ने यह लक्ष्य तीन गेंदे शेष रहते हुए हासिल कर लिया था। भारत को अंतिम ओवर में 8 रन चाहिए थे और राजेश चौहान ने एक छक्का मारकर जीत सुनिश्चित की थी।

इतना ही नहीं हाल ही में लंदन में हिन्दुओं के साथ हुई हिंसा भी भारतीयों को याद है जब वर्ष 2022 में एशिया कप में भारत के हाथों पाकिस्तान को हार मिली थी तब लीसेस्टर में हिन्दुओं पर हिंसा हुई थी और टी-20 विश्व कप का वह मैच तो कोई भी नहीं भूल सकता जब भारत को पाकिस्तान ने जब दस विकेट से हराया था तब इसे कुफ्र टूटना, इस्लाम की जीत आदि बताया गया था और उसमें भी सबसे अधिक तारीफ़ उसी रिजवान की हुई थी, क्योंकि रिजवान ने मैच में जीत के बाद मैदान में नमाज पढ़ी थी और वकार यूनुस ने कहा था कि सबसे अच्‍छी बात जो रिजवान ने की कि उसने माशाअल्‍लाह।।। उसने ग्राउंड में खड़े होकर नमाज पढ़ी जो कि हिंदुओं के बीच में खड़े होके।।। तो वह बहुत स्‍पेशल था।

इतना ही नहीं, इसे पाकिस्तान के नेताओं द्वारा इस्लाम की जीत बताया गया था और पाकिस्तान के मंत्री शेख रशीद ने कहा था कि भारत के मुसलमानों सहित दुनिया के सभी मुसलमानों को इस जीत का जश्न मनाना चाहिए। कई उदाहरणों से यह देखा जा सकता है कि पाकिस्तान के खिलाड़ियों के लिए और पाकिस्तान के दर्शकों के लिए यह मैच मैच न होकर कहीं न कहीं मजहबी वर्चस्व को स्थापित करने का माध्यम होते हैं। और ऐसा नहीं हैं कि यह केवल भारतीय खिलाड़ियों के साथ ही होते हैं।

एक उदाहरण पाकिस्तान के अहमद शहजाद का भी है जिसमें वह श्रीलंका के खिलाड़ी तिलकरत्ने दिलशान को यह कहते हुए सुनाई दे रहे हैं कि ‘यदि आप एक गैर-मुस्लिम हैं और आप मुस्लिम हो जाते हैं, चाहे आप अपने जीवन में कुछ भी करें, आप सीधे स्वर्ग में जायेंगे’ इसके बाद दिलशान भी उन्हें कुछ जवाब देते हैं जिसकी आवाज़ सुनाई नहीं देती। लेकिन शहज़ाद उसके जवाब में कहते हैं, ‘फ़िर आग के लिए तैयार रहो।’ न जाने कितने उदाहरण ऐसे हैं जिनसे यह पता चलता है कि पाकिस्तान के कई खिलाड़ियों के लिए खेल का मैदान केवल और केवल अपनी मजहबी उन्माद को प्रदर्शित करने के लिए है। केवल अपनी मजहबी पहचान के लिए है। यदि ऐसा नहीं होता तो पाकिस्तान के खिलाड़ी रिजवान श्रीलंका के खिलाफ लगाया गया शतक गाजा के अपने भाई बहनों के लिए समर्पित न करते! यही वह पहचान का खेल है जो खेलों के माध्यम से खेला जा रहा है, जिसमें क्रिकेट में श्रीलंका के विरुद्ध शतक लगाने वाले रिजवान अपना शतक गाजा के अपने भाई बहनों के नाम तब करते हैं, जब इजरायल खुद पर वर्ष 1947 के बाद हुए सबसे बड़े हमले से उबरते हुए हमास के आतंकियों के विरुद्ध कदम उठा रहा होता है।

यही वह पहचान का खेल है जो 98% मुस्लिमों वाले मोरक्को के फीफा विश्वकप में जीत को उम्माह की जीत बता देता है और यह कहा जाता है कि चूंकि मोरक्को में 98% मुस्लिम है, तो यह उम्मा की जीत हुई। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान ने मोरक्को की टीम की जीत को अरब, अफ्रीकन और मुस्लिम टीम बताया था। मोरक्को की जीत को भी फिलीस्तीन की जीत से जोड़ लिया था, क्योंकि मोरक्को ने अपनी जीत का जश्न फिलिस्तीन का झंडा लहराकर मनाया था और इस पर कई लोगों ने कहा था कि मोरक्को को इस स्टैंड के लिए बधाई! अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर खेल में मजहब कौन लाता है या कौन लाया है? पाकिस्तान की टीम द्वारा किया गया व्यवहार हो, या फिर पाकिस्तान के दर्शकों द्वारा भारत की क्रिकेट टीम के साथ किया गया व्यवहार, इनमें धर्म के आधार पर भेदभाव या घृणा किसने दिखाई? भारत के सेक्युलर्स जो कुछ दर्शकों द्वारा जय श्री राम के नारे को लेकर आपत्ति व्यक्त कर रहे हैं, परन्तु वह सभी यह भूल रहे हैं कि जय श्री राम भड़काऊ कहाँ से हो गया?

यदि कुछ आम दर्शकों ने रिजवान के सामने जय श्री राम का नारा लगा दिया तो उसमे भड़काऊ क्या है क्योंकि रिजवान ने भी तो सभी के सामने नमाज पढ़ी थी। मैदान में नमाज पढ़ना, भारत पर जीत को मुस्लिमों की जीत बताना, अपने शतक को गाजा के लिए समर्पित करना, मोरक्को की जीत को मुस्लिमों की और उम्मा की जीत बताना, फ्रांस के हारने की दुआ करना एवं भारत द्वारा पाकिस्तान पर जीत को लेकर लंदन तक में मजहबी दंगे करना, खेल में मजहब तो इन हरकतों से न जाने कब का आया हुआ है। भारतीयों द्वारा जय श्री राम बोलना किसी का अपमान कैसे हो गया? यह अपमान की परिभाषा का निर्धारण प्रभु श्री राम से घृणा करने वाले या फिर खेल की जीत के माध्यम से मजहबी वर्चस्व का समर्थन करने वाले या उसे स्थापित करने वाले कब से करने लगे?

जब क्रिकेट के मैदान में हिन्दुओं के बीच नमाज पढ़े जाने को सबसे अच्छा क्षण बताया जाने लगे और भारत पर लगातार प्रत्यक्ष एवं परोक्ष युद्ध थोपने वाले पाकिस्तान के पक्ष में हैदराबाद में आम लोग नारे लगाने लगे, तो यह उन लोगों का अहिंसक एवं सत्याग्रही प्रतिकार है, जो भारत की पहचान को अक्षुष्ण रखना चाहते हैं, जो बताते हैं कि यह देश प्रभु श्री राम का है, प्रभु श्री राम के आदर्शों पर चलने वाला है।

अंत में एक प्रश्न कथित सेक्युलरिज्म का झंडा उठाए लोगों से कि यदि मैदान में नमाज कूल है तो फिर जय श्री राम भड़काऊ क्यों है? यह सहिष्णुता की डगर इतनी संकुचित क्यों है “कामरेड?” वहीं गाजा को अपना शतक समर्पित करने वाले रिजवान को लेकर दानिश कनेरिया ने X पर पोस्ट किया कि “अगली बार अपनी जीत इंसानियत को डेडिकेट करना, ऊपरवाला कभी क्रूरता बर्दाश्त नहीं करता!” काश कि कथित सेक्युलरिज्म के झंडाबरदार कम्युनिस्ट भी इस बात को समझते कि खेल इंसानियत की भावना का विस्तार करने के लिए होते हैं, मजहबी वर्चस्व के लिए नहीं!


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