The Hindu हिंदी में: भारत में ‘फूड सिस्टम’ में सुधार करने की जरूरत क्यों महसूस की जा रही है, पढ़िए 20 अक्टूबर का एडिटोरियल


  • Hindi News
  • Career
  • Why Is The Need To Make Changes To Improve India’s ‘food System’, Read The Hindu Editorial Of October 20

14 मिनट पहले

  • कॉपी लिंक

इस हफ्ते हमने वर्ल्ड फूड डे (16 अक्टूबर) सेलिब्रेट किया। भारत से बेहतर, फूड चैलेंज को कोई ओर देश नहीं समझ सकता, क्योंकि भारत, दुनिया की सबसे ज्यादा पॉपुलेशन का पेट भरने वाला देश है, जबकि फूड सिस्टम का मुख्य गोल सभी को न्यूट्रिशन युक्त भोजन देना है।

ये गोल तभी पूरा हो सकता है, जब खाद्य को उगाने वाले उत्पादकों यानी किसानों को, उनके उत्पादन के बदले सही इकोनॉमिक रिटर्न मिल पाए।

ऐसा तभी हो सकता है, जब इसे नेचुरल इकोसिस्टम के साथ जोड़ दिया जाए, क्योंकि एग्रीकल्चर के सबसे बड़े इनपुट, मिट्टी, पानी और क्लाइमेट कंडीशन सभी नेचुरल हैं। फूड सिस्टम को मजबूत बनाने और एनवायरमेंट सिक्युरिटी के लिए इसे रोजगार से जोड़ना जरूरी है।

न्युट्रिशियन, आजीविका और एनवायरमेंट सिक्योरिटी

न्युट्रिशियन के मामले में भारत कुपोषण के दोहरे बोझ का सामना कर रहा है। एक तरफ तो पिछले कुछ सालों में इतनी प्रोग्रेस करने के बाद भी, भारतीयों का एक बड़ा हिस्सा कुपोषण की मार झेल रहा है।

नेशनल फेमली हेल्थ सर्वे 2019-21 के अनुसार 35% बच्चे कुपोषित और 57% महिलाएं और 25% पुरुष खून की कमी से जूझ रहे हैं। और दूसरी तरफ असंतुलित खाना और सुस्त लाइफस्टाइल की वजह से 24 % यंग वूमन और 23% यंग पुरुष मोटे हैं। भारत कुपोषण से लड़ने की कोशिश कर रहा है, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी का आवाहन भी शामिल है, जिसमें कुपोषण खत्म करने की बात की गई है।

यदि हम प्रोडक्शन की तरह से देखें तो, एक छोटे किसान की इनकम उसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी नहीं होती है। ट्रांसफॉर्मिंग रूरल इंडिया फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार 68% एवरेज किसान, खुद की जरूरतों को पूरा करने के लिए नॉन-एग्रीकल्चर काम करते हैं।

महात्मा गांधी नेशनल रूरल इम्प्लॉइमेन्ट गारंटी एक्ट (MGNREGA) और अन्य तरह के लेबर वर्क करने वालों में कमी आ रही है, इसका अर्थ ये है कि आय के साधनों में विविधता आ रही है और स्किल्स में कमी देखी जा रही है।

इसके साथ ही नेचुरल रिसोर्स का दोहन और क्लाइमेट चेंज भी प्रोडक्शन में अंतर की एक बड़ी वजह है। 2023 के मृदा हेल्थ सर्वे से पता चलता है कि आधे से ज्यादा खेती वाली मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की कमी है, जो की मिट्टी की हेल्थ के लिए बेहद जरूरी है।

जमीन में पानी का स्तर भी दिन-ब-दिन गिरता जा रहा है, जिससे सिंचाई की कमी आ गई है। पंजाब में 75% से ज्यादा खेती योग्य जमीन का असेसमेंट किया गया, जिससे पता चलता है कि इनका अत्यधिक दोहन करने से प्रोडक्शन में अंतर आ गया है, जिससे आय में भी अंतर आया है।

इसका तीन लेवल की समझ

एक दूसरे से जुड़े हुए इन चैलेंज से जूझने के लिए, हमें ऐसी अप्रोच की जरूरत है, जो फूड सिस्टम के तीनों दृष्टिकोण को सुलझा पाए, कंज्यूमर, प्रोड्यूसर और मिडिल मेन। सबसे पहले कंज्यूमर की डिमांड है, हेल्दी और टिकाऊ फूड देने की जरूरत है। हमारी प्लेट को ऐसे फूड की जरूरत है, जो पीपल और प्लेनेट दोनों को बचा सके।

प्राइवेट सेक्टर भारत के बिलियन से भी ज्यादा कंज्यूमर के लिए फूड पैटर्न को चलाता है। कॉर्पोरेट ने भारत में जई और क्विनोआ को उपभोग के लिए ज्यादा उपयोगी बनाने के लिए इम्पोर्ट किया गया है, वो भारत में बाजरा के लिए किया जा सकता है।

आम लोग सोशल मीडिया के माध्यम से प्रभावितों के साथ परटर्नशिप कर सकते हैं, जो लाखों लोगों के लिए स्वास्थ्य और टिकाऊ बना सकता है।

इसके अलावा, कृषि सहायता को इनपुट सब्सिडी से आगे बढ़ाकर प्रति हेक्टेयर खेती के लिए किसानों को सीधे नकद सहायता दी जानी चाहिए। यह इनपुट के कुशल उपयोग को बढ़ावा देगा, साथ ही कृषि-पारिस्थितिकी प्रथाओं को फलने-फूलने के लिए समान अवसर प्रदान करेगा। कृषि अनुसंधान और विस्तार सेवाओं को भी अपने संबंधित बजट का एक हिस्सा टिकाऊ कृषि पद्धतियों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए निर्धारित करना चाहिए।

तीसरा, फार्म-टू-फोर्क मूल्य श्रृंखलाओं को अधिक टिकाऊ और समावेशी श्रृंखलाओं की ओर स्थानांतरित करें। ग्रामीण (कृषि) आय बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि उपज के अधिक मूल्यवर्धन को सक्षम करना है।

बिचौलियों, जैसे कि उपभोक्ताओं को कच्चे और प्रसंस्कृत भोजन की आपूर्ति करने वाले निगमों को किसानों से सीधी खरीद को प्राथमिकता देनी चाहिए, स्थायी रूप से काटी गई उपज की खरीद को प्रोत्साहित करना चाहिए, और निष्पक्ष व्यापार जैसे अच्छी तरह से स्थापित दृष्टिकोण लागू करना चाहिए। DeHaat और Ninjacart जैसे विभिन्न युवा कृषि-तकनीकी उद्यम ऐसे फार्म-टू-क्रेता लिंकेज को सक्षम कर रहे हैं।

इसके अलावा, चूंकि किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) में सभी किसान परिवार अन्य कृषि वस्तुओं के उपभोक्ता हैं, इसलिए एफपीओ के बीच उपज के व्यापार को सक्षम करना किसानों के लिए अधिक मूल्य हिस्सेदारी सुनिश्चित करने का एक और तरीका है, जैसा कि ओडिशा में कुछ एफपीओ द्वारा दिखाया गया है।

हालांकि, संपूर्ण खाद्य प्रणाली को स्थानांतरित करना कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। लेकिन चुनौती के पैमाने से हमारी महत्वाकांक्षाओं पर असर नहीं पड़ना चाहिए। यदि हम तेजी से कार्य करते हैं, तो भारत के पास शेष विश्व को यह दिखाने का एक अनूठा अवसर है कि अपनी खाद्य प्रणाली को कैसे सही किया जाए।

लेखक अभिषेक जैन

Source: The Hindu

खबरें और भी हैं…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *