भारत के फूड इंडस्ट्री पर विश्व की नजर, क्या सुधार का यही सही समय है?


इस स्टडी में कहा गया कि बच्चों को एचएफएसएस फूड मार्केटिंग से बचाने के लिए एक मजबूत रेगुलेटरी ढांचे की आवश्यकता है.

सामान्य गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए भारत की अपनी राष्ट्रीय बहु-क्षेत्रीय कार्य योजना (2017-2022) से पता चलता है कि इन दोनों नीतियों, प्रतिबंध और चेतावनी वाले लेबल, के लिए मंजूरी और सहमति है.

हमें निगरानी के लिए एक मजबूत प्रणाली की आवश्यकता है जो गुणवत्ता की जांच करे और हानिकारक पदार्थों की सीमा पार करने वाले उत्पादों को रीकॉल करे.

फिर इसमें देरी क्यों हो रही है? भारत सरकार से हमारा सवाल है.

सरकार या रेगुलेटर्स को खाद्य उद्योग के साथ साझेदारी करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि इसका हल यह है कि विभिन्न नियमों को लागू करने के लिए उनके साथ साफ-साफ “बातचीत” की जाए. इस बात का कोई तर्क या वैज्ञानिक स्पष्टीकरण नहीं कि रेगुलेशंस बनाते वक्त नीति निर्धारकों के साथ एक ही मेज पर खाद्य उद्योग के लोगों को भी बैठाया जाए.

भारत इजरायल से सबक लेना चाहिए, जिसने एक स्वतंत्र वैज्ञानिक समिति की मदद से पॉजिटिव फ्रंट-ऑफ-पैकेज लेबलिंग (एफओपीएल) के मानदंड बनाए हैं.

या फिर भारत को एक व्यापक कानूनी ढांचे पर विचार करना चाहिए, जैसा कि अमेरिका ने किया है. हाल ही में उसने एक विधेयक पेश किया है. इसके तहत चिंताजनक तत्वों वाले खाद्य और पेय पदार्थों पर चेतावनी वाले लेबल लगाए जाएंगे, साथ ही बच्चों के लिए जंक फूड के विज्ञापनों को भी प्रतिबंधित किया जाएगा.


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