
क्रिकेट मैचों में भूगर्भ जल की बर्बादी पर एनजीटी की अंतिम चेतावनी
22 स्टेडियम में से केवल नौ ने ही दिया जवाब
भूगर्भ जल की जगह एसटीपी के शोधित पानी का मैदान में किया जाए उपयोग
अतुल भारद्वाज
नई दिल्ली। आईपीएल और दूसरे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैचों के लिए स्टेडियमों में हजारों लीटर भूगर्भ जल रोजाना मैदान के रखरखाव के नाम पर बर्बाद किया जा रहा है। इस मामले में एनजीटी ने अब देश के 22 स्टेडियमों और बीसीसीआई को अंतिम चेतावनी दी है। एनजीटी का निर्देश है कि भूगर्भ जल की जगह एसटीपी के शोधित पानी का उपयोग मैदान में किया जाए। इसके लिए एक नीति भी बनाने के लिए केंद्रीय जलशक्ति मंत्रायल को आदेश एनजीटी पूर्व में कर चुका है।
एनजीटी के चेयरमैन जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव, सदस्य जस्टिस सुधीर अग्रवाल, डॉ. ए सेंथिल वेल के संयुक्त आदेश में कहा गया है कि यह तथ्य ग्रीन कोर्ट के सामने लाया गया है कि बिना एनओसी लिए क्रिकेट स्टेडियम भूगर्भ जल का अंधाधुंध उपयोग करने में लगे हैं। इसके अलावा स्टेडियमों में वर्षा जल संचयन प्रणाली भी नहीं लगाई गई है। इससे बारिश का पानी भी भूगर्भ जल रीचार्ज करने में उपयोग नहीं होता। वहीं एसटीपी के शोधित पानी के उपयोग के लिए भी काम नहीं हुआ। सुनवाई में 22 स्टेडियम सात दिसंबर 2023 को शामिल हुए। इसके बाद केवल नौ ने ही अपने जवाब एनजीटी में दाखिल किए हैं। एनजीटी ने अब सख्ती दिखाते हुए कहा है कि यह अंतिम मौका है, जिसमें सभी स्टेडियम अपने जबाव दें। तीन सप्ताह में यह जवाब देना होगा। एनजीटी को एक स्टेडियम प्रबंधक ने बताया कि नौ महीने से एनओसी के लिए उनका आवेदन लंबित है। इस पर एनजीटी ने कहा कि यह काम स्टेट ग्राउंड वाटर अथॉरिटी और सेंट्रल ग्राउंड वाटर अथॉरिटी का है। ऐसे में सभी राज्य और केंद्र के ऐसे प्राधिकरण अपने यहां लंबित आवेदनों का निस्तारण कराएं। इसकी रिपोर्ट भी एनजीटी को देनी होगी। अगली सुनवाई 13 अगस्त को है।
बंगलुरू में रोजाना 80 हजार लीटर साफ पानी बर्बाद
बंगलुरू में एक तरफ पानी का क्राइसिस बना हुआ है, वहीं स्टेडियम में रोजाना करीब 80 हजार लीटर साफ पानी मैदान के रखरखाव पर खर्च होता है। एनजीटी को बंगलुरू वाटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड द्वारा दी गई रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी गई है। इस रिपोर्ट में यह दावा भी किया गया है कि 64 हजार लीटर शोधित पानी भी उपयोग किया जाता है। भूगर्भ जल का उपयोग करने के लिए 400 फीट गहराई तक चार बोरिंग किए गए हैं। वहीं कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन ने इन बोरिंग से कितना पानी निकाला जा रहा है कि इसके लिए विस्तृत रिपोर्ट देने के लिए समय मांगा है। इन बोरवेल पर कहीं भी वाटर मीटर लगा हुआ नहीं मिला था।