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- Shekhar Gupta’s Column Pakistan Cricket Team Itself Started The Use Of Religious Slogans In Sports…
13 मिनट पहले
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शेखर गुप्ता एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’
अहमदाबाद में भारत-पाकिस्तान के बीच जो मैच हुआ, उसे क्रिकेट के मामले में तो ‘फुस्स’ ही कहा जा सकता है, लेकिन मैच देखने के लिए इकट्ठा हुई भीड़ ऐसा नहीं मानती थी। उनके लिए तो मैच जितना एकतरफा हो उतना बेहतर, बशर्ते उनकी टीम जीत रही हो। लेकिन अंततः भारतीय टीम नहीं बल्कि मैच देखने वाली भीड़ ही खबर बन गई।
कुछ लोगों ने पैवेलियन लौट रहे पाकिस्तानी खिलाड़ी रिजवान के लिए ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए। इस पर उदारवादी जमात ने नाक-भौं सिकोड़े। इससे यह सवाल उभरता है कि क्या खेल के मैदान में धार्मिक नारों की जगह होनी चाहिए? क्या हम खेलों को सांप्रदायिक रंग नहीं दे रहे हैं?
हम इस बहस की गहराई में जाएं, इससे पहले मैं अपना मत रख दूं। नहीं, खेलों में धर्म का घालमेल कतई अच्छी बात नहीं है। लेकिन पाकिस्तानी टीम के कोच मिकी आर्थर ने क्रिकेट से जुड़ा एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया। मैच खत्म होने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में आर्थर ने अपनी टीम के खराब प्रदर्शन के लिए एकतरफा दर्शकों को भी जिम्मेदार बताया।
उन्होंने कहा, यह काफी दुःखद था कि पाकिस्तानी फैन्स गैर-हाजिर थे, ऐसा लगा मानो यह आईसीसी का टूर्नामेंट न हो बल्कि दो पक्षों के बीच का मैच हो। मैच के दौरान ‘दिल…दिल…पाकिस्तान’ के नारे नहीं सुनाई दिए। महत्वपूर्ण बात यह थी कि आर्थर ने पिच, आउटफील्ड, हवा या रोशनी आदि क्रिकेट संबंधी बातों की शिकायत नहीं की।
अब हम समझ सकते हैं कि पाकिस्तानी क्रिकेट टीम का कोच कितने दबाव में रहता है, खासकर आर्थर के पूर्ववर्ती बॉब वुल्मर की रहस्यमय मौत के बाद। लेकिन भारत में निष्पक्ष दर्शकों की उम्मीद रखना कुछ ज्यादा ही हो गया। और भारत के किसी स्टेडियम में लाउडस्पीकर पर ‘दिल… दिल… पाकिस्तान’ के नारे सुनने की ख्वाहिश रखना तो सपने देखने जैसा ही माना जाएगा।
यह जरूर कहा जा सकता है कि बेहतर होता कुछ पाकिस्तानी फैन्स को मैच देखने के लिए भारत आने का वीजा दिया जाता। भारत-पाकिस्तान के वीजा कठिन मसला है और इस मामले को लेकर आपस में काफी तू-तू, मैं-मैं होती है। लेकिन मेजबान के तौर पर भारत उदारता दिखा सकता था।
बहस का एक और मुद्दा ऑस्ट्रेलियाई लेखक गिडियन हेग ने ही दिया है। वे सम्मानित क्रिकेट लेखक हैं। शेन वॉर्न के जीवनीकार हैं। वे भारतीय क्रिकेट के उत्कर्ष के प्रशंसक रहे हैं। उनकी बातचीत का एक क्लिप वायरल हुआ, जिसमें उन्होंने कुछ बेखयाली में कहा कि अहमदाबाद में नीली कमीजों की बाढ़ को देखकर लगता था मानो न्यूरेमबर्ग रैली हो रही हो।
अब हमें मालूम हो रहा है कि मोदी-शाह की भाजपा, उनकी सरकार और बीसीसीआई का नेतृत्व जय शाह के हाथों में होना- इन सबने क्रिकेट की दुनिया में बेशक कई लोगों को परेशान किया है, लेकिन टिकट खरीदकर मैच देखने वाले, नीली कमीज पहने फैन्स को 21वीं सदी का नाजी कहना कहां तक ठीक है?
1960 के दशक के बाद लंबे अंतराल के बाद 1970 के दशक के मध्य से भारत-पाकिस्तान ने फिर से एक-दूसरे के साथ खेलना शुरू किया था। इन 45 वर्षों में दोनों देशों के आपसी रिश्तों में कई बार उतार-चढ़ाव आए। दर्शकों के व्यवहार में भी बदलाव आता रहा। जनवरी 1999 में पाकिस्तान ने चेन्नई में जब कांटे की टक्कर में टेस्ट मैच जीत लिया था तब वहां के दर्शकों ने जिस तरह रुककर उसका स्वागत किया था, उसकी बहुत चर्चा की जाती है।
यह वह दौर था, जब भारत-पाकिस्तान के रिश्ते बेहतर थे। इसके ठीक बाद अटल बिहारी वाजपेयी बस से लाहौर जा पहुंचे थे। 2003-04 की सीरीज में पाकिस्तान में भारतीय टीम की जीत का गर्मजोशी से स्वागत किया गया था, क्योंकि जनरल मुशर्रफ और वाजपेयी ने शांति समझौते पर दस्तखत किए थे।
दूसरी ओर, मुझे पाकिस्तान में हुई 1989-90 की सीरीज की याद आ रही है जब मैंने देखा कि वहां के दर्शकों का व्यवहार इतना बुरा था, जितना शायद ही कहीं और के दर्शकों का रहा हो। अहमदाबाद वालों को उनकी बराबरी करने में समय लगेगा। और मैं यही उम्मीद करूंगा कि वे इसकी कोशिश नहीं करेंगे।
मेरे दिमाग में आज भी उनके नारे गूंजते हैं- ‘पाकिस्तान का मतलब क्या? ला इलाहा इल्लल्लाह/ हिंदुस्तान का मतलब क्या? भाड़ में जाए, हमको क्या।’ उसी दौरान लाहौर में हॉकी का वर्ल्ड कप भी चल रहा था। जिस भी मैच में भारत खेल रहा होता था, नारे और तीखे हो जाते थे। नारा लगाया जाता था- ‘हिलती हुई दीवार है, एक धक्का और दो।’ 12 टीमों में भारत तब 10वें नंबर पर रहा था। तब हमने नहीं सुना कि दर्शकों को दोषी ठहराया गया हो।
यहां आकर मैं पहली शिकायत की ओर लौटता हूं कि अहमदाबाद में ‘जय श्री राम’ के नारे लगाकर खेलों में धर्म का घालमेल किया गया। यहां हमें एक असुविधाजनक सवाल करने की भी जरूरत है कि किस देश ने इसकी शुरुआत की, और अभी भी यह करता जा रहा है? बांग्लादेश यह नहीं कर रहा है। अफगानिस्तान ने यह नहीं किया।
1999 का चेन्नई टेस्ट जीतने वाली पाकिस्तानी टीम को ‘नारा-ए-तकबीर, अल्लाह-हू-अकबर’ के नारे लगाते देखा जा सकता है। दशकों से यह भी देखा जाता रहा है कि भारत के खिलाफ क्रिकेट में शतक ठोकने वाले पाकिस्तानी खिलाड़ी किस तरह मैदान पर इबादत में झुकते रहे हैं।
रिजवान के सामने जब ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए गए तब आप कह सकते हैं कि दो और दो मिलकर चार ही होते हैं। जो भी हो, भारत और पाकिस्तान आपस में जितना खेलेंगे, ऐसी धार उतनी ही तेज होगी। क्या पता, आगे इसी विश्व कप में भारत-पाकिस्तान फिर एक-दूसरे के आमने-सामने हों।
एक तरफ नारा-ए-तकबीर, दूसरी तरफ जय श्री राम…
दशकों से देखा जा रहा है कि भारत के खिलाफ शतक ठोकने वाले पाकिस्तानी खिलाड़ी मैदान पर इबादत में झुकते रहे हैं। रिजवान के सामने जब ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए गए, तब आप कह सकते हैं कि दो और दो मिलकर चार ही होते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)