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- N. Raghuraman’s Column Reducing Margins In Organized Food Market Will Lead To More Profits!
एक घंटा पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
एक ओर, इस सोमवार को विश्व बैंक ने चेतावनी दी कि गाजा में संघर्ष बढ़ने और इसके पश्चिम एशिया तक फैलने से दुनियाभर की कमोडिटीज़, खासकर तेल की कीमतों में उबाल आ सकता है, जिसका खाद्य कीमतों पर असर पड़ेगा।
हमें पता है कि पहले ही घरेलू बाजार में प्याज की कीमतें उसी राह पर हैं, जिस पर कुछ दिनों पहले टमाटर था। हालांकि तुअर व चना दाल की कीमतें 4% गिरी हैं, इसकी वजह आयात बढ़ना व मांग में कमी है। वहीं सब्जियों की कीमतों में अभी भी मौसमी उतार-चढ़ाव दिख रहा है, इसका कारण डिमांड-सप्लाई बेमेल होने के साथ उत्पादन में अनिश्चितता है। इन सब घटनाक्रमों का सीधा असर ये है कि उपभोक्ता अभी भी खर्च को लेकर सतर्क बने रहेंगे कि वे कितना और कहां खर्च कर रहे हैं- रेस्तरां में ग्राहकों की कमी का यह बड़ा कारण है।
वहीं दूसरी ओर उसी सोमवार को मैकडॉनल्ड्स ने अपने तिमाही आंकड़े जारी करते हुए वॉल स्ट्रीट के अनुमानों को पीछे छोड़ दिया है। बाहर खाने के चुस्त बाजार में ज्यादा बेचने की अपनी काबिलियत के कारण इसके शेयर 2% ऊपर रहेे। हां, महंगाई से त्रस्त ग्राहक घर पर ज्यादा खा रहे हैं, ऐसा न सिर्फ भारत में बल्कि अमेरिका जैसे ज्यादातर विकसित देशों में भी है, जिसके चलते रेस्तरां में लोग कम हुए हैं।
बावजूद इसके मैकडॉनल्ड्स में कम आय वाले ग्राहकों की संख्या बढ़ी है। इसका कारण बर्गर और फ्राइज की कीमतों को कम रखने की इसकी काबिलियत है। कंपनी ने जर्मनी और यूरोप के अन्य बाजारों में टेस्ट के बाद अपने मेन मेन्यू में छोटे और अधिक किफायती मील लॉन्च किए।
हाल-फिलहाल में दिवाली की खरीदारी के दौरान यदि आपने अपने-अपने शहरों की गलियों में भीड़भाड़ देखी हो, तो आसानी से नजर आएगा कि यह मैकडॉनल्ड्स के अलावा सड़क किनारे रेहड़ी-पटरी वालों के आसपास लगी भीड़ है। अगर आप ताज्जुब कर रहे हैं कि कैसे मैकडॉनल्ड्स भारत के स्ट्रीट फूड से प्रतिस्पर्धा करने में सफल रहा है, तो उसके पीछ एक सुनियोजित रणनीति है। यहां उसके अंदर की कहानी है।
स्ट्रीट फूड गर्मागर्म और तुरंत मिलता है। मैकडॉनल्ड्स ने इन दोनों ही मामलों में परफेक्शन का अभ्यास किया। फूड सर्व करने में वह इतनी निपुणता लाए हैं कि ज्यों ही आपने बिल पे किया, 30 सेकंड से 1 मिनट के भीतर ऑर्डर मिल जाएगा। स्ट्रीट फूड में चूंकि आप उसके स्टोव के पास खड़े होते हैं, उसकी खुशबू बेसब्र बना देती है।
मैकडॉनल्ड्स में भी पांचों इंद्रियों को रिझाने के लिए ओपन किचन है। उन्होंने एक अन्य तरकीब बहुत प्रभावी ढंग से प्रयोग की है, जो कि एंट्री लेवल आइसक्रीम है, यह उन उपभोक्ताओं में इच्छा जगाती है, जो आमतौर पर नहीं खरीद सकते और ग्राहक नहीं बनते।
यह बिल्कुल स्ट्रीट फूड बेचने वाले की तरह है, जो आपको फालूदा या शिकंजी चखने के लिए कहता है और एक छोटी चम्मच चखाता है। इसके अलावा नुक्कड़ पर खाते हुए आप फूड एक-दूसरे से साझा भी कर सकते हैं, ठीक उसी तरह मैकडॉनल्ड्स में फिंगर चिप्स या दूसरे आइटम एक-दूसरे से शेयर कर सकते हैं और इमसें वह कोई आपत्ति नहीं लेते। और आखिर में बात मूल्य की, तो वे इस मामले में भी स्ट्रीट फूड वाले से बराबरी कर रहे हैं।
बाकी और भी चीजें वे देते हैं, जो स्ट्रीट वेंडर नहीं दे सकते। स्ट्रीट वेंडर साफ टॉयलेट नहीं दे सकते, जिसकी घंटों शॉपिंग के बाद ग्राहक को जरूरत होती है। दूसरी चीज वे साफ-सुथरा माहौल देते हैं और साउंड प्रूफ कांच लगे होते हैं, शोर से भरे बाजार में जहां आप फोन पर बात कर सकते हैं। (वे जानते हैं कि बात करना अधिकांश भारतीयों की कमजोरी है और यह भी जानते हैं कि भारतीय बाजारों में हद से ज्यादा शोर होता है।)
फंडा यह है कि संगठित फूड मार्केट आगे बढ़ने के लिए पूरी तरह तैयार है, लेकिन रेहड़ी वालों की तुलना में कम मार्जिन और बेहतर सुविधाएं देकर बाजार में आपकी हिस्सेदारी बढ़ेगी, जाहिर तौर पर मुनाफा भी।