राजद सुप्रीमो इसी रथ पर सवार होकर भ्रमण के लिए निकलते हैं।
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23 महीने गुजर गए, लेकिन इस वीआईपी गाड़ी को पटना में सड़क पर चलने के लिए इंश्योरेंस की जरूरत नहीं पड़ी। फिटनेस सर्टिफिकेट 26 जुलाई 2019 के बाद से ‘एक्सपायर’ है। और, शायद नियंत्रित प्रदूषण प्रमाणपत्र (PUC) की इस वीआईपी गाड़ी को जरूरत कभी नहीं पड़ी। और तो और, 100 दिन से ज्यादा गुजर गए जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह विभाग ने वाहनों के चालान की ‘ऑटोमैटिक’ व्यवस्था की। आम आदमी की गाड़ी रोड पर कोई भी नियम तोड़ती निकली कि सीसीटीवी से निगरानी करने वाली टीम ऑनलाइन चालान काटकर भेज देती है। फिर भी इस गाड़ी का चालान नहीं कटता। एक बड़ी वजह यह कि इस गाड़ी से राज्य के वीआईपी घूमते हैं। ऐसे वीआईपी, जिनके पास मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद भी जाते हैं। पिछले हफ्ते भी यह गाड़ी सीएम आवास आयी थी। अंदर हमेशा की तरह थे राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव।
आगे-पीछे चलती है पुलिस, जांचने की हिम्मत नहीं
राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव इस गाड़ी से चलते हैं। इस गाड़ी के आगे-पीछे पुलिस जिप्सी चलती है। इस गाड़ी के निकलते समय आम आदमी की गाड़ियों को जहां-तहां रोक देती है पुलिस। लेकिन, बिहार पुलिस या परिवहन विभाग के किसी अधिकारी की हिम्मत नहीं कि वह इस गाड़ी के बारे में जांच-पड़ताल करें। ऐसा भी नहीं कि यह गाड़ी राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के नाम की है या सरकारी है। फोर्स ट्रेवलर स्कूद गाड़ी (BR01PF4647) राष्ट्रीय जनता दल बिहार के नाम पर 18 जून 2015 से रजिस्टर्ड है। राजद अध्यक्ष जब से रांची की जेल से निकले हैं, तब से अनगिनत बार इसी गाड़ी से पटना में निकले हैं। कभी सीएम आवास तो कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट गंगा पथ की सैर के लिए।
सिर्फ रजिस्ट्रेशन ही वैध, बाकी कुछ भी नहीं
राष्ट्रीय जनता दल बिहार के नाम से इस गाड़ी का रजिस्ट्रेशन है। भारत सरकार के एम परिवहन एप के डाटा के सहारे बिहार सरकार आम लोगों की गाड़ी का चालान कर रही है और इसी के एप पर ऑनलाइन चालान की भी जानकारी अपडेट की जाती है। इस एप पर रजिस्ट्रेशन नंबर BR01PF4647 से निबंधित फोर्स ट्रेवलर स्कूद गाड़ी न तो फिट दिख रही है और न प्रदूषण मुक्त। इस गाड़ी का बीमा भी 28 सितंबर 2021 को ही खत्म हो चुका है। बीमा का डाटा भी इसी साइट से लिया गया है। एकमुश्त पांच साल के कराए बीमा में कई बार तकनीकी गड़बड़ी के कारण एम परिवहन पर एक ही साल बाद यह अवैध दिखाता है, इसलिए संभव है कि ऐसा हो। इस बारे में ‘अमर उजाला’ ने पुलिस और परिवहन विभाग के कई अधिकारियों से मिलकर बात करनी चाही, लेकिन गाड़ी की पहचान जानने के कारण कोई बोलने के लिए तैयार नहीं।