इस देश में अगर पार्टी करने जा रहे दूसरे के घर, तो साथ ले जाएं अपना खाना, गेस्ट को खिलाने का नहीं है रिवाज!


सोचिए आप अपने दोस्त के घर पार्टी करने जाएं, या फिर किसी रिश्तेदार से मिलने उसके घर जाएं और वो आपको खाने के लिए कुछ भी ना दे. बल्कि आपके होते हुए वो और उसका परिवार खाना खा ले, मगर आपसे खाने के लिए पूछे भी ना तो आपको कैसा लगेगा? अगर आप भारतीय हैं तो बेशक आपको ये बेहद खराब और अशिष्ट व्यवहार लगेगा, लेकिन अगर आप भारतीय हैं और स्वीडन में मौजूद हैं, तो आपको इसकी आदत डाल लेनी पड़ेगी क्योंकि स्वीडन (Swedish tradition of not feeding guests) के लोगों के लिए ये बेहद आम बात है.

guest not feed in sweden

स्वीडन में परंपरा काफी पुरानी है. (फोटो: Canva)

वाइस वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार स्वीडन में ये घर आए मेहमानों को खाना खिलाने का रिवाज नहीं है. यहां वो खाने के लिए पूछते भी नहीं हैं. अगर कोई खुद से खाना मांगे, तभी वो कुछ खाने को देते हैं. पिछले साल ट्विटर पर @SamQari नाम के यूजर ने सोशल मीडिया वेबसाइट रेडिट पर लिखे गए एक पोस्ट का स्क्रीनशॉट शेयर किया था. इस स्क्रीनशॉट में किसी ने स्वीडन से जुड़ी ऐसी ही बात का जिक्र किया था, जिसके बाद उस ट्वीट पर लोगों ने चर्चा शुरू कर दी थी और वो ट्वीट वायरल हो गया था.



ट्विटर पर चर्चा में आया था पोस्ट
स्वीडन के लोग अपने इस रिवाज को डिफेंड करने में लगे हुए थे, वहीं अन्य लोग इस मुद्दे पर उनकी आलोचना कर रहे थे. कुछ स्वीडिश लोगों ने कहा कि अगर उनके घर उनके बच्चे का दोस्त सिर्फ खेलने आता है, तो वो किसी और के बच्चे को आखिर क्यों खाना खिलाएंगे. हां, अगर वो रात रुकने आते हैं, तो खाना जरूर खिलाया जाएगा. कई भारतीयों ने भी इसपर ट्वीट करते हुए कहा था कि भारत में ऐसा बिल्कुल भी नहीं हो सकता, घर पर अगर कोई आया, तो उसे भूखे पेट नहीं जाने देते.

आखिर क्यों खाना नहीं खिलाते स्वीडिश लोग?
तो अब सवाल ये उठता है कि आखिर स्वीडन में ऐसी परंपरा क्यों है? दरअसल, ये सिर्फ स्वीडन का ही नहीं, अन्य नॉर्डिक देशों का हाल है. नॉर्डिक देश यानी वो जो उत्तरी यूरोप और उत्तरी एटलांटिक में स्थित हैं. इमसें स्वीडन, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे जैसे देश शामिल हैं. नॉर्डिक रिवाज के अनुसार पुराने दौर में खातिरदारी करना सिर्फ अमीर लोगों के बस की बात हुआ करती थी. पर वो जिनकी खातिरदारी करते थे, वो जरूरतमंद या गरीब हुआ करते थे. ऐसे में अमीर ही गरीब को खाना खिलाया जाता था. तब देखा जाता था कि अगर किसी को खाना खिलाने की जरूरत पड़ रही है, तो ये उसके लिए शर्म की बात है. बस यही वजह है कि आज भी इस परंपरा का पालन किया जाता है. कोई भी दूसरे को खाना खिलाकर ये नहीं दिखाना चाहता है कि वो उनसे छोटा या गरीब है, या फिर उसके लिए शर्मिंदगी की बात है.

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