भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने चाय कारखाने के कचरे से दवा और फूड प्रोडक्ट्स तैयार किए हैं. इस बात की जानकारी अधिकारियों ने दी. एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि चाय दुनिया भर में सबसे अधिक खपत होने वाले पेय पदार्थों में से एक है. विश्व में चाय की खपत 6.3 मिलियन टन तक पहुंच गई है और 2025 तक इसके 7.4 मिलियन टन तक बढ़ने की उम्मीद है.
आईआईटी गुवाहाटी के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर मिहिर कुमार पुरकैत ने कहा, “चाय की खपत में इस भारी वृद्धि से इंडस्ट्रियल टी वेस्ट जेनरेशन में वृद्धि होती है जिससे मूल्यवान कृषि संसाधनों का उपयोग नहीं हो पाता है और पर्यावरण में गिरावट आती है. इसकी उच्च लिग्निन और कम अकार्बनिक सामग्री के कारण, चाय उद्योग के कचरे का कुशल उपयोग वैज्ञानिक रूप से उन्नत तकनीकों की मांग की मदद से ही किया जा सकता है.” उन्होंने आगे कहा, “इन वेस्ट यूटिलाइजेशन और प्रबंधन के मुद्दों को संबोधित करना सर्वोपरि हो जाता है क्योंकि यह टिकाऊ प्रथाओं और नवीन समाधानों के साथ आते हैं, जिससे इंडस्ट्रियल ग्रोथ और इकोलॉजिकल संरक्षण दोनों सुनिश्चित होते हैं.”
पुरकैत ने कहा कि इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए, उनकी टीम ने विभिन्न फार्मास्युटिकल और खाद्य उत्पादों में चाय कारखाने के कचरे के विविध अनुप्रयोग पर अत्याधुनिक शोध किया है. ये कार्बोनेसियस फार्मास्युटिकल सामग्रियां अनुप्रयोग-आधारित वस्तुओं के व्यापक स्पेक्ट्रम का आधार बनती हैं.
कई जगह हुआ प्रकाशित
इन अध्ययनों के निष्कर्षों को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी प्रकाशित किया गया है, जिनमें इंटरनेशनल जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल मैक्रोमोलेक्यूल्स, केमोस्फीयर, क्रिटिकल रिव्यूज़ इन बायोटेक्नोलॉजी आदि शामिल हैं. यह शोध आईआईटी गुवाहाटी के पर्यावरण केंद्र में थीसिस के तौर पर सोमनाथ चंदा, प्रांगन दुआराह और बनहिसिखा देबनाथ द्वारा उनकी पीएचडी के एक भाग के रूप में किया गया है. कैटेचिन-आधारित कैप्सूल की सुविधा और स्वास्थ्य लाभ एक आशाजनक रास्ता खोलते हैं, जो उपयोगकर्ताओं को कई कप ग्रीन टी की आवश्यकता के बिना कैटेचिन के लाभों तक पहुंच प्रदान करते हैं. यह हमारी दैनिक दिनचर्या में एंटीऑक्सिडेंट युक्त पूरक की बढ़ती मांग को पूरा करता है.
कैसे किया जाता है काम
लिग्निन-समृद्ध चाय की पत्तियों को एक विशेष रिएक्टर के माध्यम से सक्रिय कार्बन में बदल दिया जाता है. इसमें एक दो स्टेप प्रोसेस शामिल है: पहला, कार्बोनाइजेशन, जो लिंगो-सेल्यूलोसिक बायोमास को कार्बन-समृद्ध मैट्रिक्स में परिवर्तित करता है और दूसरा एक्टिवेशन, जो एक पोरस स्ट्रक्चर बनाता है जिससे सोखने की क्षमता बढ़ जाती है. ये वैल्यू-एडेड प्रोडक्ट्स न केवल चाय की खेती की आर्थिक व्यवहार्यता को बढ़ाते हैं बल्कि वेस्ट को कम करके और संसाधन दक्षता को बढ़ावा देकर सस्टेनेबल प्रैक्टिस को भी प्रोत्साहित करते हैं.”
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