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मैं आगरा का रहने वाला हूं। मेरे पापा अशोक त्रिपाठी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में रहे। पापा की पोस्टिंग की वजह से हम लोग काफी जगह घूमते रहे। पापा की आखिरी पोस्टिंग पूना में हुई और हम लोग वहीं शिफ्ट हो गए। पापा चाह रहे थे कि मैं आईआईटी करके इंजीनियर बनूं या फिर आर्मी ज्वॉइन करूं लेकिन मुझे सिनेमैटोग्राफर बनना था। उन्होंने कभी इसका विरोध भी नहीं किया और मैंने मुंबई आकर जीमा इंस्टीट्यूट से सिनेमेटोग्राफी में कोर्स किया।
सबसे पहला मौका मुझे बालाजी टेलिफिल्म्स के सीरियल ‘कहानी घर घर की’ में सहायक निर्देशक के तौर पर साल 2006 में मिला। जीमा इंस्टीट्यूट से सिनेमेटोग्राफी की कोर्स करने के बाद मैं काम ढूंढ रहा था, लेकिन कैमरे का काम नहीं मिला। उस समय आशीष श्रीवास्तव इस धारावाहिक का निर्देशन कर रहे थे। रोज के 100 रुपये आने जाने के खर्चे के लिए मिलने की बात हुई थी, वह कभी मिलते तो कभी नहीं मिलते। मुझे लगा कि ऐसे तो गुजारा नहीं होगा। आठ महीने काम करने के बाद ही मेरा मन वहां से भर गया।
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बहुत जोखिम भरा था लेकिन एक जैसा काम मुझसे रोज नहीं हो पाता था। किसी ने कहा न्यूज चैनल में नौकरी कर लो, तो मैंने एक न्यूज चैनल में 2008 में नौकरी कर ली। लेकिन तीन महीने तक उन लोगों ने वेतन ही नहीं दिया। इसी बीच मेरा अपने बैच के कुछ मित्रों से फिर संपर्क हुआ और उन्होंने क्रूज पर फोटोग्राफी के मौके के बारे में बताया। मैंने आवेदन किया और मुझे चुन लिया गया।