स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। अपने वरिष्ठों का आदेश ना मानना, राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ति सर्वोपरि, निर्दोषों की जान बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा देना, एक्शन के महारथी यह पिछले कुछ अर्से से हिंदी फिल्मों के नायक की पहचान बनती जा रही है।
नायक की यह छवि बीते दिनों रिलीज फिल्म पठान, योद्धा, टाइगर 3, फाइटर में देखने को मिली है। अब बड़े मियां छोटे मियां के दोनों नायक भी इन खूबियों से लैस है। कहानी दो फौजियों की दोस्ती के साथ देशप्रेम की चाशनी में लिपटी हुई है।
टाइगर जिंदा है, सुल्तान, जोगी जैसी फिल्मों के लेखक और निर्देशक अली अब्बास जफर ने ‘बड़े मियां छोटे मियां’ (Bade Miyan Chote Miyan Review) में एक्शन, कॉमेडी, देशभक्ति, दुश्मनी के सभी मसालों का भरपूर प्रयोग किया है। पहला भाग तो ठीक है, पर सेकेंड हाफ में स्क्रीनप्ले फिसल गया है, इसलिए फिल्म पूरी तरह स्वादिष्ट नहीं बन पाई है।
क्या है ‘बड़े मियां छोटे मियां’ की कहानी?
फिल्म की कहानी तकनीक के उपयोग-दुरुपयोग को लेकर है। विज्ञान की मदद से हिंदुस्तानी सेना ने अपना सबसे मजबूत यंत्र तैयार किया होता है, जिसे अपने सबसे सुरक्षित बेस पर स्थानांतरित कर रहे थे। यह देश के लिए ढाल था, लेकिन दुश्मन के हाथ लगा तो तलवार बन जाएगा।
यह भी पढ़ें: Box Office Prediction- अक्षय कुमार मारेंगे Maidaan या फिर अजय देवगन बनेंगे बॉक्स ऑफिस के ‘बड़े मियां’, जानिए प्रेडिक्शन
खूबसूरत वादियों के बीच घमासान के बाद दुश्मन उसे अपने कब्जे में लेकर हेलीकॉप्टर से उड़ जाता है। मुखौटा पहना दुश्मन वीडियो संदेश सैन्य आकाओं को देता है कि उनकी एक कीमती चीज लेकर जा रहा है। वह उसके जरिए हिंदुस्तान को नक्शे से मिटाने की बात करता है और तीन दिन का समय देता है।
उधर, कैप्टन मीशा (मानुषी छिल्लर) अपने बॉस कर्नल आजाद (रोनित राय) को बताती है कि वैसे ही मुखौटाधारी से उसकी भिड़ंत शंघाई में हुई थी, लेकिन उसके घाव तुरंत भर गए। आजाद उससे यह बात किसी से साझा ना करने को कहता है। (हालांकि, उसकी वजह अंत तक समझ नहीं आई) पैकेज को वापस लाने के लिए आजाद कोर्ट मार्शल किए गए दो सैन्य अधिकारी फिरोज उर्फ फ्रेडी (अक्षय कुमार) और रॉकी उर्फ राकेश (टाइगर श्राफ) को बुलाता है।
कहानी अतीत में जाकर उनकी जांबाजी को दर्शाती है। वह किस प्रकार अफगानिस्तान में बंधक बनाए गए भारतीय राजदूत और उसके परिवार को सकुशल वापस लाते हैं। वहीं, कंधार हाईजैक के माटरमांइड को देखकर उसे मार गिराते हैं, जिसे अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए मारने की पुष्टि कर चुकी होती है।
कहानी वर्तमान में आती है। फ्रेडी मिशन से जुड़ने से इनकार करता है, लेकिन रॉकी आता है। देश के कीमती सामान को लाने में मीशा के साथ अंडरकवर एजेंट और आइटी एक्सपर्ट डा. परमिंदर बाबा (अलाया एफ) जुड़ती है। वह लंदन में सुंरग में सुरक्षित रखे गए पैकेज को पाने में कामयाब हो जाते हैं।
इस दौरान फ्रेडी भी पहुंच जाता है। फिर खुलता है रहस्य कि फ्रेडी और रॉकी के साथ मुखैटा पहने दुश्मन की असलियत क्या है? उसने विज्ञान की मदद से कौन सी ताकत हासिल कर ली है? वह क्यों कोर्ट मार्शल अधिकारी किए गए दोनों अधिकारियों को साथ लाता है? उसके मंसूबे क्या हैं? फिर वे सब मिलकर कैसे इस दुश्मन का मुकाबला करते हैं?
कैसा है फिल्म का स्क्रीनप्ले और अभिनय?
यह लार्जर दैन लाइफ फिल्म है तो लॉजिक की उम्मीद कतई ना करें। अली अब्बास एक्शन फिल्मों के महारथी हैं। यहां पर भी एक्शन की भरमार है। यह एक्शन बंदूक, हथगोले, हैंड टू हैंड फाइट, हेलीकॉप्टर, आसमान में उछलती गाडियों, विस्फोट और आधुनिक तकनीक की मदद से किया गया है, वह प्रभावी है।
चेज (पीछा करने) सीन हों या दुश्मन के साथ मारधाड़ के दृश्य उसमें रोमांच बना रहता है। उन्होंने एक्शन के साथ ह्यूमर का संतुलन रखा है। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि खलनायक और नायक के बीच संघर्ष का मुख्य बिंदु ठोस नहीं बन पाया है।
हालांकि, एक्शन के दो महारथी बड़े मियां यानी अक्षय कुमार और छोटे मियां टाइगर श्राफ को एक साथ पर्दे पर देखना अच्छा लगता है। दोनों अपने चिरपरिचित अंदाज में हैं। टाइगर के हिस्से में कई वन लाइनर आए हैं, जो बीच-बीच हंसी के पल लाते हैं। मानुषी छिल्लर के हिस्से में कई एक्शन सीन आए हैं। उसमें वह जंची हैं।
परमिंदर आइटी एक्सपर्ट है, जो करमचंद जासूस की किटी की याद दिलाती हैं। फर्स्ट हाफ तक कहानी सुगमता से बढ़ती है। सेंकेड हाफ में फिल्म लड़खड़ाती है। यहां पर दमदार स्क्रीनप्ले और संवाद की कमी खलती है। शुरुआत बेशकीमती यंत्र को वापस लाने की तय सीमा के साथ होती है, लेकिन फिल्म में उस सीमा का एहसास नहीं होता है, जिससे रोमांच का स्तर बना रहे।
जब बेशकीमती पैकेज की असलियत सामने आती है तो ढाक के तीन पात लगता है। उस पैकेज को गाडि़यों में ले जाने का औचित्य समझ नहीं आता। कोर्ट मार्शल की वजह बहुत कमजोर लगती है। फ्रेडी और रॉकी मुखौटाधारी दुश्मन से लड़ते हैं, लेकिन उसकी ताकत लगातार बनी रहती है और घायल नहीं होता, इस बारे में शुरुआत में एक बार भी विचार नहीं करते। वे उसका तोड़ आखिर में ढू़ंढने की कोशिश करते हैं।
यह भी पढ़ें: Maidaan Review- अजय देवगन की ‘चक दे इंडिया’ है ‘मैदान’, फुटबाल कोच के किरदार में यादगार अभिनय
खलनायक को जितना शक्तिशाली बताया है, पर्दे पर उसकी ताकत उतनी प्रभावी तरीके से चित्रित नहीं हो पाई है। खलनायक बने पृथ्वीराज सुकुमारन की आवाज भी बदली है। यह प्रयोग बहुत जमता नहीं है।
असली बड़े मियां छोटे मियां भी आए नजर
फिल्म का शीर्षक साल 1998 में आई अमिताभ बच्चन और गोविंदा अभिनीत बड़े मियां छोटे मियां जोड़ने की वजह कहानी में बताई गई है। मूल फिल्म की झलक देखना अच्छा लगता है। कुछ संवाद घिसे-पिटे हैं। दहाड़ में जाबांज पुलिस अधिकारी बनीं सोनाक्षी सिन्हा यहां पर खास प्रभाव नहीं छोड़ पातीं। फिल्म के विजुअल्स सुंदर हैं। गीत-संगीत थिरकाने वाला है। अंत में सीक्वल का संकेत है।