चंडीगढ़। जिला अदालत ने 29 साल पुराने बूथ आवंटन से जुड़े मामले में चंडीगढ़ के डीसी और वित्त सचिव की सरकारी कार को कुर्क (अटैच) करने का आदेश जारी किया है। यह आदेश सिविल जज ने शहर के तीन बुजुर्गों की ओर से दायर तामील याचिका (एग्जीक्यूशन पिटीशन) की सुनवाई के दौरान दिया।
वर्ष 2007 में बूथ का आवंटन न होने पर पीड़ित राम लाल, जगत राम और फरियाद चंद की ओर से सिविल कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इस पर अदालत ने वर्ष 2018 में तीनों के हक में फैसला सुनाते हुए प्रशासन को इन्हें बूथ आवंटित करने का आदेश दिया था लेकिन इस आदेश का अब तक पालन नहीं हुआ है, जिसे लेकर तीनों ने याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ताओं के वकील अशोक सहगल ने बताया कि इस मामले को लेकर सिविल कोर्ट की ओर से दिए गए आदेश के खिलाफ प्रशासन ने सत्र न्यायालय में अपील दायर की थी लेकिन देरी से अपील दायर करने के चलते न्यायालय ने प्रशासन की अर्जी को खारिज कर दिया था। इसके बाद भी प्रशासन ने अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। इस पर हाईकोर्ट ने मामले को तीन महीने में निपटाने का आदेश जारी किया। इसके बाद प्रशासन ने दोबारा सत्र न्यायालय में अपील दायर की थी लेकिन प्रशासन को स्टे नहीं मिला। प्रशासन की याचिका अभी तक लंबित है।
एडवोकेट अशोक सहगल ने याचिकाकर्ता बुजुर्गों की ओर से सिविल कोर्ट में तामील याचिका दायर कर साल 2018 में जारी सिविल कोर्ट के आदेश का पालन कराने की मांग की। उन्होंने कहा कि प्रशासन ने जानबूझकर वर्ष 2018 में उनके हक में हुए फैसले का पालन नहीं किया। इस पर अदालत ने डीसी और वित्त सचिव की सरकारी गाड़ी को कुर्क करने का आदेश दिया। अगर इसके बाद भी प्रशासन ने याचिकाकर्ताओं को बूथ आवंटित नहीं किए तो इन अफसरों की गाड़ियों की नीलामी भी की जा सकती है।
प्रशासन के फर्जी सर्वे ने किया योजना से बाहर
याचिकाकर्ता पक्ष के वकील अशोक सहगल ने अपनी याचिका में बताया है कि तीनों पीड़ित सेक्टर-22 की बजवाड़ा मार्केट में फल-सब्जी विक्रेता का काम करते थे। प्रशासन की ओर से मार्केट में काम करने वाले अन्य लोगों की तरह उन्हें भी हॉकर लाइसेंस दिए गए थे। प्रशासन ने हॉकर लाइसेंस धारकों को योजना के तहत बूथ आवंटित करने थे लेकिन प्रशासन में बैठे अधिकारियों ने अपने चहेतों को बूथ देने के लिए वर्ष 1994 में एक बार फिर से सर्वे करवाया। आरोपों के तहत प्रशासन की ओर से सर्वे के लिए जानबूझकर सोमवार का दिन रखा गया, जब मार्केट बंद थी। इसके चलते सर्वे के वक्त केवल कुछ ही दुकानदार सब्जियां और फल लगाकर बैठे थे। प्रशासन ने इसी सर्वे को आधार बनाते हुए कुछ लोगों को बूथ आवंटित कर दिए जबकि कई योग्य लोगों को इस योजना से बाहर कर दिया। प्रशासन के इस सर्वे के खिलाफ तीनों याचिकाकर्ताओं ने कई शिकायतें दीं। इस कारण से उन्हें आज तक बूथ नहीं मिला। करीब 29 वर्ष पुराने इस मामले में अब तीनों याचिकाकर्ताओं की उम्र 70-75 साल के करीब हो चुकी है। प्रशासन के इसी रवैये के चलते याचिकाकर्ता अपने हक के लिए भटकते आ रहे हैं।