असीम सेनगुप्ता, अंबिकापुर। आमतौर पर हम रेडियो पर देश-दुनिया के समाचार और मनोरंजन कार्यक्रम सुनते हैं, लेकिन अब छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर, बिलासपुर, रायपुर और रायगढ़ में रेडियो पर एक आवाज प्रत्येक शाम सुनाई देती है…ये आकाशवाणी है…आइए सुनते हैं ‘हाथी समाचार’। दरअसल नवाचार सदैव ही समस्याओं के समाधान की राह खोलते रहे हैं। छत्तीसगढ़ ने इसी सूत्र को चरितार्थ करते हुए जंगली हाथियों से जनहानि रोकने की दिशा में रेडियो समाचार की यह अनूठी पहल की है। इससे ग्रामीणों को काफी लाभ भी हो रहा है। छत्तीसगढ़ इस तरह की पहल करने वाला पहला राज्य है।
हाथी समाचार की खास बातें
छत्तीसगढ़ में वन विभाग और आकाशवाणी के बीच हुए एक अनुबंध के अंर्तगत प्रत्येक शाम 5.05 बजे हाथी समाचार का प्रसारण रेडियो पर किया जाता है। समाचार में जंगली हाथियों के विचरण क्षेत्र की जानकारी दी जाती है। हाथियों की उपस्थिति और विचरण क्षेत्र की जानकारी मिल जाने से लोगों को बचाव का अवसर मिल जाता है। पांच वर्ष पूर्व उत्तर व मध्य छत्तीसगढ़ (सरगुजा, बिलासपुर संभाग) में जंगली हाथियों का आबादी क्षेत्रों के आसपास विचरण बढ़ गया था। जानमाल का व्यापक नुकसान होने के कारण प्रभावित क्षेत्र के लोगों तक जंगली हाथियों के विचरण की जानकारी के लिए रेडियो को सशक्त माध्यम माना गया।
साल 2018 में हमर हाथी, हमर गोठ (बातचीत) नाम से हाथी समाचार की शुरुआत की गई, जो अनवरत जारी है। ग्राम मदननगर प्रतापपुर के निवासी रामप्रसाद पैकरा बताते हैं,
हाथी कहां हैं और किस क्षेत्र में जा सकते हैं, इसकी सटीक जानकारी मिलने से सतर्क होने का अवसर मिल जाता है।
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कई स्रोतों से मिलती जानकारी
हमर हाथी, हमर गोठ कार्यक्रम के माध्यम से हाथियों के विचरण क्षेत्र और उनके संभावित मूवमेंट से आमजन को अवगत कराया जाता है। हाथियों पर लगी सेटेलाइट कॉलर आईडी, पंचायत प्रतिनिधियों, हाथी मित्र दल के सदस्यों और वन विभाग के मैदानी कर्मचारियों से हाथियों की उपस्थिति की जानकारी एकत्रित की जाती है। जंगली हाथियों के व्यवहार अध्ययन की समीक्षा के बाद हाथियों के संभावित विचरण को साझा किया जाता है।
जनहानि नियंत्रण में मिली मदद
छत्तीसगढ़ के दूरस्थ व जंगल, पहाड़ से घिरे क्षेत्रों में संचार सुविधा के नाम पर रेडियो एकमात्र और सुलभ माध्यम है। बिजली की बाधा, नेटवर्क की समस्या के कारण दूसरे संचार साधनों का ग्रामीण प्रयोग नहीं कर पाते, इसलिए हाथियों से बचाव का यह उपाय कारगर साबित हुआ है। जिन क्षेत्रों में मोबाइल नेटवर्क की स्थिति बेहतर हैं, वहां आकाशवाणी से समाचार प्रसारण के बाद उसे हाथी प्रभावित क्षेत्र के वॉट्सएप ग्रुप में भी प्रसारित किया जाता है। न्यूज आन एआईआर तथा एफएम में भी यह सुविधा है, इसलिए यात्रा के दौरान तथा मोबाइल के माध्यम से भी हाथी समाचार को सुना जा सकता है।
कई राज्यों में जंगली हाथियों की समस्या
वन विभाग के अधिकारियों की माने तो साल 2000-01 में राज्य में हाथियों के हमले में दो लोग मारे गए थे। उसके बाद यह संख्या बढ़ती चली गई। 2015-16 में आंकड़ा 53 पहुंच गया तो जनहानि रोकने के उपाय के तहत आकाशवाणी का सहारा लिया गया। 2018-19 में 64, 2019-20 में 69,2020-21 व 2021-22 में 65-65 तथा 2022-23 में 74 लोगों की मौत हुई है।
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सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में दुनिया के जंगली एशियाई हाथियों की 60 प्रतिशत आबादी रहती है। देश के 14 राज्यों में 31 हाथी रिजर्व हैं। छत्तीसगढ़ के अलावा झारखंड में भी जंगली हाथी मानव बस्ती में प्राय: आ जाते हैं। मध्य प्रदेश में बीते कुछ वर्षों में यह समस्या लगभग 11 जिलों को प्रभावित कर रही है। उत्तर प्रदेश के नेपाल से सटे तराई क्षेत्र के गांवों और उत्तराखंड में हरिद्वार के आसपास जंगली हाथियों का विचरण चिंता का विषय रहा है।
आकाशवाणी केंद्र, अंबिकापुर के कार्यक्रम अधिशासी प्रमेंद्र कुमार ने बताया कि वन विभाग से अनुबंध के आधार पर यह कार्यक्रम प्रसारित होता है। इस कार्यक्रम की लोकप्रियता का अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि आकाशवाणी केंद्र में दूर-दूर से श्रोताओं के पत्र भी आते हैं।