Desi Super Food: कमाल का है ये देसी ‘सुपरफूड’, अच्छी सेहत के लिए वरदान से कम नहीं, खेती भी आसान, कम लागत में बंपर पैदावार


Ragi known as superfood: शहडोल जिले में वैसे तो मोटे अनाज में कोदो-कुटकी की खेती बड़े पैमाने पर होती है. लेकिन आज हम बताने जा रहे हैं एक देसी सुपर फूड के बारे में, जिसकी खेती अब बड़े स्तर पर किसान करने लगे हैं. जिले के ज्यादातर किसानों ने इस बार इस देसी सुपर फ़ूड की फसल लगाई है. आखिर ये देसी सुपर फूड है क्या, क्यों इसे इतना खास कहा जाता है और कैसे यह किसानों को कर रहा मालामाल. आइए जानते हैं.

कमाल का है ये देसी ‘सुपरफूड रागी

शहडोल। रागी मतलब देसी ‘सुपरफूड’. शहडोल जिले में इस बार रागी की खेती को बड़े रकबे में किया गया है. रागी में कई ऐसी खूबियां पाई जाती हैं जो एक सुपर फ़ूड में होती हैं. रागी की फसल को खेतों में उगाना जितना आसान होता है, स्वास्थ्य के लिए इसका सेवन उतना ही फायदेमंद. आदिवासी समाज के बीच आज भी इस अनाज का चलन है. शहडोल जिले की ग्राम पंचायत मंजगवां के किसान भोल्ली सिंह बताते हैं कि वैसे तो वो हर साल घर के खाने के लिए अपने खेतों पर रागी की फसल लगाते हैं. प्रॉपर डाइट में भी इसे शामिल करते हैं. इस साल ज्यादातर किसानों ने रागी की फसल लगाई है, इसे हमारे गांव में मढिया भी बोलते हैं.

भोजन में ऐसे करें शामिल : पहले रागी की खेती लोग बहुत करते थे. बीच में किसानों ने इसे लगाना एक प्रकार से बंद कर दिया. लेकिन इस साल कृषि विभाग से जब बीज मिला तो रागी की फसल बहुत सारे लोगों ने लगाई. उनकी फसल भी अच्छी है. किसान भोल्ली सिंह बताते हैं कि रागी की फसल के लड्डू भी खाते हैं. आटा बनाकर रोटी भी बनाते हैं. रागी की फसल को लेकर कृषि वैज्ञानिक बृजकिशोर प्रजापति बताते हैं कि इसे कई नाम से जाना जाता है. इसे मढिया भी बोलते हैं. अंग्रेजी में फिंगर मिलेट भी बोलते हैं. इसका वैज्ञानिक नाम इलुसेना कोराकाना है. इसकी उत्पत्ति मुख्य रूप से इथियोपिया में हुई. करीब 3 हज़ार से 4 हज़ार वर्ष पहले ये भारत देश में आई.

शहडोल जिले में रागी का रकबा बढ़ा : शहडोल जिले में प्राचीनकाल में रागी की खेती की जाती थी, लेकिन लेकिन धान, गेहूं और आधुनिक फसलों के आने के बाद किसानों ने इसकी खेती छोड़ दी थी. मध्य प्रदेश में रागी फसल की खेती ज्यादा नहीं की जाती. एमपी के शहडोल संभागीय क्षेत्र में पहले रागी की खेती की जाती थी, लेकिन बीच में छोड़ दी गई थी और अब एक बार फिर से किसानों ने इसकी खेती शुरू की है. रागी की फसल मुख्य रूप से भारत में आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक जैसे राज्यों में होती है. शहडोल जिले में भी इस बार कृषि विभाग ने रागी की फसल का रकबा बढ़ाने के लिए किसानों को बीज बांटे थे, जिसके बाद लगभग 800 एकड़ रकबे में रागी की फसल लगाई गई है. शहडोल में ज्यादातर किसानों ने इस बार रागी की खेती की है.

इसकी खेती भी आसान : कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि इस बार मौसम में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है. कभी बारिश हो रही, कभी धूप हो रही है. जिससे धान की फसल को नुकसान हो रहा है. मौसम के इस बदलाव के बीच अगर मोटे अनाज रागी इन विषम परिस्थितियों में भी ये अच्छा उत्पादन देता है. कृषि वैज्ञानिक बृज किशोर प्रजापति बताते हैं कि रागी की फसल को यूं ही देसी सुपर फूड नहीं कहा जाता है, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए यह वरदान है. इसमें प्रोटीन 100 ग्राम दाने में 8 से 9 ग्राम पाया जाता है. इसके अलावा रेशा इसमें 10 से 12 परसेंट होता है. रागी में सभी अनाजों की तुलना में सबसे ज्यादा कैल्शियम पाया जाता है. इसके अलावा इसमें फास्फोरस है, मैग्नीशियम है, जिंक है, आयरन है. इन सभी पोषक तत्वों की प्रचुरता इस सुपर फ़ूड में पाई जाती है.

कई बीमारियों में कारगर : हृदय जैसी गंभीर बीमारियों में भी इसका सेवन काफी अहम माना गया है. मधुमेह जैसी बीमारियों में भी असरदायक साबित होता है. अल्सर जैसी समस्याओं में भी यह फायदेमंद होता है. रागी में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं. कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि रागी को कई तरीके से खाया जाता है. इसको पीसकर आटा बनाकर रोटी के तौर पर सेवन कर सकते हैं. इसका ब्रेड बनाया जा सकता है, केक बनाया जा सकता है, लड्डू बनाते हैं, खीर बनती है. इसकी खिचड़ी बनाकर खा सकते हैं. दलिया बनाकर खा सकते हैं. व्यावसायिक तौर पर देखे तो इससे बिस्किट बना सकते हैं, और कुकीज़ वाले आइटम बना सकते हैं. इस तरह से इससे अच्छी आमदनी भी हम हासिल कर सकते हैं. गेहूं के आटे में मिलाकर भी इसे प्रयोग में लाया जाता है. इसका उपमा सूप डोसा भी बनाया जाता है.

जलवायु परिवर्तन में भी कारगर : जिस तरह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है. कम बारिश हो रही है. कई जगह हल्की मिट्टी भी पाई जाती है. ऐसी जगह पर भी रागी की खेती बंपर पैदावार दे सकती है. ये हल्की मिट्टी में भी अच्छा उत्पादन देने की क्षमता रखती है. ये फसल 80 से 90 दिन में हो जाती है. 10 से 15 किग्रा की दर से इसका प्रति हेक्टेयर में बीज लगता है. अगर इसकी खेती अच्छे से वैज्ञानिक पद्धति के माध्यम से करें तो 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से इसका उत्पादन कर सकते हैं. इसे लगाने के लिए सही समय जून और जुलाई का महीना होता है.


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