स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। Jawan Movie Review: जनवरी में रिलीज पठान में भारतीय जासूस की भूमिका निभाने के बाद शाह रुख खान अब रॉबिनहुड के अंदाज में लौटे हैं। फिल्म जवान में उनका पात्र गरीबों को न्याय दिलवाने के साथ मां से किया वादा पूरा करता है।
दक्षिण भारतीय फिल्ममेकर एटली के साथ शाह रुख की यह पहली फिल्म है। शाह रुख के स्तर के लोकप्रिय सितारे हों तो फिल्म की कहानी उनके किरदार के आसपास ही घूमती है। लेखक और निर्देशक एटली ने नायक के साथ उसके पिता की दोहरी भूमिका में दोनों किरदारों को रोचक और रोमांचक तरीके से गढ़ा है।
क्या है जवान की कहानी?
कहानी का आरंभ देश के बार्डर पर एक जख्मी व्यक्ति के नदी में मिलने से होता है। आदिवासी समुदाय के लोग उसका इलाज करते हैं। वहां पर हमला होता है। यह अनजान शख्स उन लोगों से आदिवासियों की रक्षा करता है। वे उसे मसीहा के तौर पर देखते हैं। वहां से कहानी तीस साल आगे बढ़ती है।
मुंबई मेट्रो ट्रेन का छह लड़कियां अपहरण कर लेती हैं। इस मेट्रो में अरबपति व्यवसायी काली (विजय सेतुपति) की बेटी भी होती है। इन लड़कियों के साथ एक शख्स और होता है। वह अपनी मांग पुलिस अधिकारी नर्मदा (नयनतारा) के सामने रखता है।
वह करीब चालीस हजार करोड़ रुपये काली से अकाउंट में ट्रांसफर करवाता है। यह पैसा उन किसानों के खातों में जाता है, जिन्होंने बैंक से ऋण लिया होता है। काली को उसकी बेटी बताती है कि उस शख्स का नाम विक्रम राठौर (शाह रुख खान) है।
वहां से इन पात्रों की परतें खुलनी आरंभ होती है। यह शख्स महिलाओं की जेल का जेलर होता है, जिसका नाम आजाद होता है। उसके साथ काम करने वाली लड़कियां जेल में ही रहती हैं। अपने अगले मिशन में आजाद स्वास्थ्य मंत्री का अपहरण करके उससे सरकारी अस्पतालों की बदहाल हालत को पांच घंटे में बेहतर करने का समय देता है।
पुलिस की गिरफ्त में आने से पहले ही आजाद और उसकी टीम वहां से भागने में कामयाब हो जाती है। उधर, नाटकीय घटनाक्रम में आजाद की शादी नर्मदा से होती है। नर्मदा की एक बेटी भी होती है। आजाद अपनी राबिनहुड जिंदगी के बारे में नर्मदा को कुछ बताता उससे पहले ही काली के आदमी उसे और नर्मदा को उठा ले जाते हैं।
दोनों को बचाने असली विक्रम राठौर यानी आजाद का पिता आता है, जो अपनी याद्दाश्त खो चुका है। बचाने में काली का भाई (एजाज खान) मारा जाता है। विक्रम का अपना अतीत है। उस पर देशद्रोह का आरोप है। इंटरवल के बाद की कहानी खलनायक और नायक के बीच आपसी रस्साकशी में तब्दील हो जाती है।
कैसे हैं स्क्रीनप्ले, संवाद और अभिनय?
जवान में आजाद के साथ उसके टीम की लड़कियों की कहानियां हैं तो कई टि्वस्ट और टर्न्स के साथ फिल्म रोचक और रोमांचक लगती है। एटली ने अपनी फिल्म में कई समकालीन मुद्दों को उठाया है।
इनमें किसानों की आत्महत्या, स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली, गरीबों के साथ होने वाले अन्याय और शोषण के साथ देशभक्ति का मुद्दा भी जोड़ा है। साथ ही वोट की अहमियत को भी रेखांकित किया है। किसानों की आत्महत्या संवेदनशील मुद्दा है।
ऋण न चुकाने को लेकर किसानों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार, अपमान और बेबसी के दृश्य द्रवित कर जाते हैं। फिल्म में इन दृश्यों के दौरान लिखकर भी आता है कि आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है। एटली ने छह लड़कियों की टीम बनाई है। इन सबका अतीत है।
हालांकि, कहानी तीन की सामने आती है। फिल्म में मनोरंजन के सभी मसाले यानी एक्शन, इमोशन, रोमांस, प्रतिशोध और नाच गाना सब है। एक्शन डायरेक्टर स्पिरो रजाटोस, अनल अरसु और बाकी टीम ने एक्शन दृश्यों को रोमांचक बनाया है।
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खास तौर पर इंटरवल के बाद गाड़ियो के चेजिंग (पीछा करने) सीन रोमांचक है। सुमित अरोड़ा द्वारा लिखित संवाद कहीं-कहीं पर अच्छा कटाक्ष करते हैं। जीके विष्णु की सिनेमोटोग्राफी शानदार है। ‘जवान’ में शाह रुख खान पूरे फार्म में हैं और पात्र के मनोभावों को बखूबी निभाते हैं। शाह रुख खान की प्रचलित छवि में उनका रोमांटिक अंदाज और अक्खड़पन शामिल है। एटली ने उसे बखूबी उभारा है।
फिल्म आरंभ में लड़कियों के साथ हुए अन्याय को लेकर चलती है। हम इसके पीछे की वजहों से परिचित होते हैं। उनके दर्द और प्रतिशोध की भावना को लेखक समुचित तरीके से पर्दे पर लाते हैं। हालांकि, हिंदी फिल्मों में नेक और खल की लड़ाई व्यक्तिगत हो जाती है। ‘जवान’ उस परिपाटी से अलग नहीं हो पाती।
फिर भी एटली को दाद देनी पड़ेगी कि उन्होंने हिंदी फिल्मों के ढांचे में रहते हुए शाह रुख खान के प्रशंसकों का कुछ नया दिया है। यह फिल्म शाह रुख खान की है। उनकी पॉपुलर भाव-भंगिमाओं को निर्देशक ने तरजीह दी है। उनके बोल-वचन का सटीक उपयोग किया है।
शाह रुख खान के लिए यह फिल्म एक स्तर पर चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि उन्होंने पिता के साथ पुत्र की भी भूमिका निभाई है। शाह रुख खान ने उसे अलग तरीके से पेश किया है। गेटअप और मेकअप से आगे की निकलकर उसकी चाल-ढाल, अंदाज और बोलचाल की शैली में भिन्नता लाने के लिए कठिन अभ्यास करना पड़ा होगा।
विजय सेतुपति और शाह रुख खान की मुलाकात और भिड़ंत के सारे दृश्य मजेदार हैं। वहीं, पिता पुत्र के दृश्य भी रोचक हैं। फिल्म में शाह रुख को अपनी अभिनय योग्यता और क्षमता भी दिखाने का अवसर भी मिला है। दक्षिण भारतीय अभिनेत्री नयनतारा को शुरुआत में एक्शन, रोमांस, डांस सब करने का मौका मिला है।
बाद में उनका किरदार उभर नहीं पाया है। विजय सेतुपति मंझे कलाकार हैं। यहां पर भी उनकी प्रतिभा का सदुपयोग हुआ है। हालांकि, उनके चरित्र को और सशक्त बनाने की जरूरत थी। मेहमान भूमिका में दीपिका पादुकोण और संजय दत्त याद रह जाते हैं।
उनके अलावा मेहमान भूमिका में आईं सान्या मल्होत्रा, प्रियामणि और सुनील ग्रोवर अपनी भूमिका में प्रभावित करते हैं। फिल्म में इस्तेमाल रमैया वस्तावैया गाना पहले ही धूम मचा चुका है। बाकी गाने साधारण हैं। मनोरंजन के साथ फिल्म अपने अधिकारों के प्रति भी सचेत करती है। आखिर में सीक्वल का भी संकेत भी है।
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