स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। मस्ती, दोस्ती के साथ अगर गोवा जुड़ा हो तो ड्रग्स का जिक्र बनता ही है। यह ड्रग्स अगर गलती से अनजान लोगों के हाथ लग जाए तो उनकी मुसीबत बढ़ना तय है। उस मुश्किल में एक लड़की मदद को हाथ बढ़ाए फिर वही धोखा दे जाए तो क्या होगा?
गोवा की खुलेपन वाली संस्कृति में बिकिनी पहने लड़कियों का एक आइटम सॉन्ग तो बनता ही है। मडगांव एक्सप्रेस (Madgaon Express Review) से निर्देशन में उतरे अभिनेता कुणाल खेमू ने इसी घिसे-पिटे मिश्रण से ‘मडगांव एक्सप्रेस’ बनाई है। फिल्म का निर्देशन करने के साथ उन्होंने इसकी कहानी, स्क्रीनप्ले और संवाद भी लिखा है। ट्रेलर में तीन दोस्तों की मस्ती देखकर अनुमान था कि फिल्म खूब हंसाएगी, लेकिन हंसी कम खीझ ज्यादा होती है।
क्या है मडगांव एक्सप्रेस की कहानी?
पिंकू उर्फ प्रतीक (प्रतीक गांधी), धनुष उर्फ डोडो (दिव्येंदु शर्मा) और आयुष (अविनाश तिवारी) का सपना बचपन से ही गोवा जाने का होता है। ग्रेजुएशन करने के बाद वह अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाते हैं। आयुष न्यूयार्क और प्रतीक केपटाउन चला जाता है, जबकि डोडो मुंबई में रह जाता है, पर गोवा जाने का उसका सपना कायम रहता है। गोवा का अर्थ उसके लिए चारों तरफ बिकिनी पहने लड़कियां और बीच का खूबसूरत नजारा है।
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खैर, करीब 15 साल बाद डोडो दोनों दोस्तों को गोवा में छुट्टियां मनाने के लिए बुलाता है। इस बीच वह दोस्तों को इंटरनेट मीडिया पर अपनी झूठी दुनिया दिखाता है। खुद को बेहद अमीर बताता है। गोवा पहुंचने पर तीनों अनजाने में कोकेन तस्करों की आपसी रंजिश में फंस जाते हैं।
इसी रंजिश, तीनों दोस्तों की आपसी नोकझोंक, निजी जिंदगी को लेकर रहस्य, ड्रग्स माफिया साथ तीनों की आंख-मिचौली जैसे प्रसंगों से कॉमेडी गढ़ने का प्रयास विफल साबित होता है।
कमजोर स्क्रीनप्ले ने डिरेल की मडगांव एक्सप्रेस
तीन दोस्तों और उनके सफर पर फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी ने फिल्म दिल चाहता है और जिंदगी ना मिलेगी दोबारा बनाई थी। यह फिल्में दोस्ती, सफर और अंदरुनी द्वंद्व को खूबसूरती से पेश करती हैं।
बतौर निर्माता उन्हें उम्मीद रही होगी कि कॉमेडी के महारथी कुणाल अपनी मडगांव एक्सप्रेस से गोलमाल जैसा कुछ मसाला लाएंगे। मगर, कमजोर स्क्रीन प्ले उम्मीदों पर पानी फेर देता है।
दो तस्कर गुटों के बीच रंजिश में पति पत्नी आमने-सामने होते हैं। सुनने में आइडिया दिलचस्प है। हालांकि, उनकी रंजिश दिखाने को लेकर दोनों की गाड़ियों का आमना-सामना होना, फिर अपनी ठसक दिखाना, इसमें कोई नयापन नहीं है। डोडो के जिंदगी में आगे ना बढ़ पाने की वजह, दोस्तों का उसे सहजता से स्वीकार लेना, आयुष की जिंदगी में अकेलापन जैसे कई पहलू में अधूरापन है।
कॉमेडी की पटरी पर हिचकोले खाता अभिनय
कॉमेडी कर पाना सबके बस की बात नहीं होती। यहां पर कास्टिंग में यह नजर आता है। ‘स्कैम: द हर्षद मेहता स्टोरी’ में धीर गंभीर किरदार में नजर आए प्रतीक गांधी स्क्रिप्ट के दायरे में अपनी कॉमेडी क्षमता से परिचित करवाते हैं। दिव्येंदु शर्मा की कॉमिक टाइमिंग अच्छी है, लेकिन यहां पर वह लफ्फाजी और भाषणबाजी करते ज्यादा दिखे हैं।
नोरा फतेही पर उनका फिदा होने जैसे दृश्यों से उबासी होती है। कई डांस आइटम कर चुकीं नोरा को अब अभिनय की बारीकियों को सीखने की सख्त जरूरत है। ‘लैला मजनू’ अभिनेता अविनाश तिवारी कॉमेडी में सहज नजर नहीं आते। तस्कर कंचन कोमड़ी बनीं छाया कदम हों या उनके तस्कर पति मेंडोजा (उपेंद्र लिमये) दोनों अपने पात्र में बहुत लाउड हैं।
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डॉक्टर की भूमिका में रेमो डिसूजा का लुक आकर्षक है, लेकिन अभिनय के मामले में वह पीछे रह गए हैं। फिल्म का गीत-संगीत चलताऊ है। गोवा की खूबसबरती को पहले भी कई फिल्मों में दर्शाया गया है। सिनेमेटोग्राफर आदिल अफसर ने मडगांव एक्सप्रेस के इस सफर में कुछ नया नहीं जोड़ा है।