
रूस का वार्षिक कार उत्पादन लगभग 1.5 मिलियन (15 लाख) यूनिट्स था। फिर यूक्रेन पर उसके आक्रमण के बाद, वैश्विक ब्रांडों को अपनी दुकानें बंद करनी पड़ीं और बाहर निकलना पड़ा। और जबकि इस आक्रमण का देश की अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर पड़ा है, वहीं वाहन उद्योग को खासतौर पर भारी नुकसान हुआ है। अब, चीनी मदद की उम्मीद के साथ वाहन उद्योग का नया जीवन देने की योजना बनाई गई है। लेकिन क्या यह हो पाएगा?
जब ह्यूंदै और मर्सिडीज जैसे वैश्विक ब्रांड रूसी बाजार से बाहर निकले, तो उनके कारखानों और कार्यों को स्थानीय उद्यमियों ने ले लिया। उस समय यह एक बड़ी बात लग सकती थी। क्योंकि फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद ये ब्रांड जल्दी से हट गए थे। देश पर लगाए गए कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध आज भी लागू हैं। लेकिन जहां नई कारों के विकल्पों में भारी गिरावट आई। वहीं चीनी कंपनियों ने इस व्यापक अंतर को पाटने और मुनाफा कमाने के लिए कदम बढ़ाया। और यह रूस में बिकने वाली चीन निर्मित कारों पर ही मुनाफा है, जिस पर ये ब्रांड ध्यान देना चाहेंगे।
स्थानीय रूसी उद्यमियों के लिए इसका क्या मतलब हो सकता है। जो देश के भीतर फिर से कामकाज शुरू करना चाहते हैं। चीनी ऑटोमोबाइल कंपनियों से मदद लेना का मतलब साफ है। लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि ये वही कंपनियां चीन में साझेदारी करने के बजाय चीन से अपने वाहनों को भेजना जारी रखेंगी।
जहां तक सरकारों का सवाल है, चीन और रूस के बीच कोई औपचारिक संधि गठबंधन नहीं है। लेकिन दोनों देश करीबी आर्थिक साझेदार हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, हाल ही में रूस स्थित एक स्वतंत्र सलाहकार के हवाले से कहा कि रूस में मौजूदगी वाली चीनी ऑटो कंपनियां रूस में अपनी कार बनाने की इच्छुक नहीं होंगी। सर्गेई बर्गजलिएव ने समझाया, “चीन से तैयार उत्पाद रूस में बेचे जाने पर ज्यादा लाभदायक होते हैं, बजाय रूस में बनाई गई समान कारों के।”
यूक्रेन पर आक्रमण से पहले रूस में लगभग एक लाख कारों की बिक्री हुई थी। कम आपूर्ति, उच्च कीमतों और कुल मिलाकर मौन उपभोक्ता भावना जैसे कारकों के कारण 2022 के बाद से यह घटकर एक अंश तक हो गया है। जबकि स्थानीय ब्रांडों ने अपने-अपने मॉडलों की मांग में बढ़ोतरी देखी है, जहां विकल्प आपूर्ति जितने ही कम हैं।