प्रियंका सिंह, मुंबई। इन दिनों पारिवारिक ड्रामा फिल्में बाक्स आफिस पर छाई हुई हैं। विक्की कौशल अभिनीत द ग्रेट इंडियन फैमिली भी पारिवारिक ड्रामा फिल्म है। हालांकि, इसमें कई चीजें और जोड़ दी गई हैं, जो इसके शीर्षक का मतलब बदल देती हैं।
क्या है द ग्रेट इंडियन फैमिली की कहानी?
कहानी शुरू होती है त्रिपाठी परिवार के सुपुत्र वेद व्यास त्रिपाठी उर्फ बिल्लू (विक्की कौशल) के साथ। बलरामपुर का रहने वाला बिल्लू भजन अच्छा गाता है, इसलिए वह भजन कुमार के नाम से भी प्रसिद्ध है। बिल्लू के पिता सियाराम त्रिपाठी (कुमुद मिश्रा) बलरामपुर के पुश्तैनी पंडित हैं।
उनकी डिमांड और इज्जत दोनों है। शहर के अमीर व्यवसायी की बेटी की शादी कराने का जिम्मा सियाराम को सौंपा गया है। हर साल की तरह सियाराम तीर्थयात्रा के लिए निकलते हैं। वह शादी की तैयारियों की पूरी जिम्मेदारी वह अपने बेटे बिल्लू और भाई बालकराम (मनोज पाहवा) को सौंप जाते हैं।
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इसी बीच घर में एक चिठ्ठी आती है, जिससे पता चलता है कि बिल्लू हिंदू नहीं, बल्कि मुसलमान है। यहां से कहानी में ट्विस्ट आता है। अपनी असली पहचान तलाशता वेद व्यास अब क्या करेगा? कहानी इस पर आगे बढ़ती है।
कैसा है फिल्म का लेखन और निर्देशन?
कहानी का लेखन और निर्देशन धूम 3 और टशन फिल्मों के निर्देशक विजय कृष्ण आचार्य ने किया है। उन्होंने अब तक जो भी फिल्में लिखी और बनाई हैं, यह उस जॉनर से बिल्कुल अलग है। शायद यही एक वजह है कि विजय की कहानी कई जगहों पर बेहद कमजोर हो जाती है। सर्व धर्म समभाव का जो संदेश निर्देशक ने देने का प्रयास किया है, वह सराहनीय तो है, लेकिन उसे कहने का तरीका पुरानी हिंदी फिल्मों के सरीखा है।
हालांकि, हिंदू और मुसलमान की वेभभूषा और खाने-पीने के तरीकों को दिखाकर विजय ने दोनों धर्मों में अंतर करने वालों को जो जवाब दिया है, वह कमाल है। वहीं, धर्म की बात करते हुए हास्य दृश्यों को फिल्माते समय खास ख्याल रखने की जरूरत भी होती है।
बिल्लू के चाचा का अपने भतीजे को नींद से उठाने के लिए इस्लामी नारा लगाकार यह जांचना कि क्या वह जागता है या नहीं, बेहद बचकाना लगता है। फिल्म में कई जगहों पर विक्की का वॉइसओवर है, जो यूं तो कहानी को समझाने के लिए है, लेकिन वह खलल डालता है।
जब दृश्यों के जरिए कहानी स्पष्ट हो रही है, तो उसमें वॉइसओवर की क्या जरूरत। क्लाइमैक्स में विक्की का लंबा-चौड़ा संवाद है, जो सुनने योग्य है। मुसलमान रोज मीट खाते हैं, पंडित और सिखणी की शादी नहीं हो सकती है। हम नए भारत की नई जेनेरेशन हैं कि गधे ही बनके रहना है हमको… ऐसे कई संवादों के लिए जरिए आज की पीढ़ी को धर्म के आधार पर भेदभाव न करने का संदेश भी दिया गया है।
फोटोशाप के जरिए वेशभूषा बदलकर पंडित को मुसलमान बनाकर फोटो वायरल करने वाले दृश्य हास्यास्पद हैं। डीएनए की जांच के लिए बलरामपुर के लोगों का सरकारी अस्पताल के बाहर होर्डिंग लेकर जमा होना और सबके बीच खुले में रक्त सैंपल लेना सिनेमाई लिबर्टी का उदाहरण ही प्रस्तुत करता है।
फिल्म की शुरुआत में काफी समय परिवार के सदस्यों के नाम और उनकी खासियत बताने में जाता है, जबकि उनमें से कई किरदारों के हिस्से फिल्म में कुछ खास सीन नहीं आए हैं।
कैसा है भजन कुमार का अभिनय?
कमजोर कहानी में भी विक्की कौशल भजन कुमार के रोल में जंचते हैं। कॉमेडी हो या भावुक दृश्य, वह जब भी स्क्रीन पर होते हैं, वह दृश्य अपने नाम कर लेते हैं। आत्मनिर्भर लड़की जसमीत की भूमिका में जब मानुषी छिल्लर की एंट्री होती है तो लगता है कि उनके हिस्से कई दमदार सीन होंगे, लेकिन वह एक गाने के बाद एकदम से गायब हो जाती हैं।
बीच-बीच में जब नजर भी आती हैं तो उनके पात्र से कोई जुड़ाव महसूस नहीं होता है। कुमुद मिश्रा और मनोज पाहवा अपनी भूमिकाओं में सशक्त लगे हैं। कमजोर दृश्यों को वह अपने अभिनय से संभालते हैं। कहा जाता है कि हीरो तभी बड़ा लगता है, जब विलेन बड़ा हो। ऐसे में ग्रे शेड में यशपाल शर्मा जैसे प्रतिभाशाली कलाकार का सही उपयोग विजय नहीं कर पाए हैं। कन्हैया ट्विटर पे आजा… गाने के अलावा कोई भी गाना फिल्म खत्म होने पर याद नहीं रहता है।
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