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- States Need To Learn From Odisha To Protect The Food System From Climate Change, Read The Editorial Of December 12
31 मिनट पहले
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दुनिया के बड़े नेता दुबई, संयुक्त अरब अमीरात में COP28 या 2023 यूनाइटेड नेशन क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस (नवंबर 30 से 12 दिसंबर 2023 तक) में व्यस्त हैं, और ये प्लेनेट, पीस, प्रोस्पेरिटी (ग्रह, शांति और समृद्धि) की गंभीर तस्वीर पेश करता है।
आपदाओं से प्रदूषण प्रति वर्ष 560 तक बढ़ने का अनुमान है, यानी प्रति दिन 1.5 और यदि क्लाइमेट चेंज के प्रभाव को कंट्रोल नहीं किया गया, तो भूख और कुपोषण में 20% की वृद्धि हो सकती है।
इसके साथ ही ग्लोबल वार्मिंग के कारण खाद्य उत्पादकता में 21% की गिरावट आने की उम्मीद है।
जैसा कि दुनिया बढ़ते क्लाइमेट क्राइसेस की वजह से बढ़ते संघर्षों और संकटग्रस्त रोजगार के कारण बिगड़ते वैश्विक खाद्य संकट को देख रही है।
खाद्य सुरक्षा बनाने के लिए ओडिशा का परिवर्तनकारी मॉडल और विचारों को बेहतर ढंग से देखा जा रहा है, जिसमें समानता और स्थिरता देखी जा रही है।
वर्तमान परिदृश्य में ओडिशा की कहानी में तीन मुद्दे हैं: कैसे राज्य ने समुदाय-संचालित दृष्टिकोण के माध्यम से कृषि में परिवर्तन करके खाद्य सुरक्षा को मजबूत किया और जलवायु प्रभाव के प्रति लचीलेपन को अपनाया।
कृषि में बदलाव
पिछले दो दशकों से ओडिशा अन्य राज्यों से चावल आयात करता रहा है और सन 2000 से पहले की जरूरतों को पूरा करने के बजाय 2022 में 13,606 मिलियन टन खाद्यान्न का उत्पादन करने लगा है, जो सबसे बड़ा रिकॉर्ड उत्पादन है।
इसके दो महत्वपूर्ण पहलू हैं, ज्यादातर किसान छोटे/सीमांत हैं, और फसल क्षेत्र उतना ही है लेकिन उत्पादकता में वृद्धि हुई है। ओडिशा की मुख्य फसल चावल है, जो दो दशकों में तीन गुना हो गई है।
2000-01 में औसत उपज 10.41 क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी, लेकिन 2020-21 तक ये बढ़कर 27.30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो गई है।
कालाहांडी जिले को ‘भूख की भूमि’ के रूप में जाना जाता था, लेकिन अब ये ओडिशा के धान के कटोरे में शामिल हो गया है। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इसे संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम मुख्यालय में साझा किया, जहां उन्होंने सतत विकास लक्ष्य (SDG) 2 के ‘जीरो हंगर’ लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ओडिशा की प्रतिबद्धता को बताया।
इसका फोकस छोटे और सीमांत किसानों की आय बढ़ाने पर है। इसने सीधे तौर पर उनकी खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने और आजीविका बढ़ाने में योगदान दिया है।
कृषक सहायता जैसी प्रमुख योजनाओं को आजीविका और आय संवर्धन (कालिया) के लिए लागू करने और पारंपरिक और डिजिटल विस्तार के माध्यम से वैज्ञानिक फसल प्रबंधन प्रथाओं का प्रसार करने से गैर-धान फसल की खेती में वृद्धि हुई है, जबकि धान की खेती में कमी आई है।
ओडिशा बाजरा मिशन जैसी योजनाओं ने भी फसलों में विविधता लाने और जलवायु लचीलेपन को बढ़ावा देने में मदद की है।
लचीलापन और स्थिरता
ओडिशा अपनी भौगोलिक स्थिति और भौतिक स्थितियों के कारण क्लाइमेट चेंज के प्रभावों को लेकर बेहद संवेदनशील है और क्लाइमेट चेंज वर्तमान में जिस तरह से ग्रोथ हुई है, उसको प्रभावित कर सकता है और गरीबी को बढ़ा सकता है, क्योंकि इससे जीवन, आजीविका, संपत्ति और बुनियादी ढांचे का नुकसान हो सकता है।
ओडिशा ने इन चिंताओं को दूर करने के लिए सक्रिय रूप से एक क्लाइमेट प्रोग्राम बनाया है।
इस प्रोग्राम में कृषि, तटीय क्षेत्र संरक्षण, ऊर्जा, मत्स्य पालन और पशु संसाधन, वन, स्वास्थ्य, उद्योग, खनन, परिवहन और शहरी और जल संसाधन सहित विभिन्न क्षेत्र शामिल हैं।
इसे कई विभागों के विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा तैयार किया गया, और इसमें नागरिकों के अनुभवों शामिल थे।
योजना में बताई गई गतिविधियों को क्रियान्वित करने के लिए विभिन्न विभाग एवं एजेंसियां जिम्मेदार हैं, जिनकी निगरानी मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा की जा रही है।
क्लाइमेट को लेकर एक समझ ऊपर से नीचे यानी सभी स्तरों पर विकसित की जा रही है। फसल मौसम निगरानी समूह इसके लिए हर सप्ताह मीटिंग करते हैं, अधिकारी क्षेत्र का दौरा करते हैं, और फसल कार्यक्रम के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंस करते हैं।
इससे अधिकारियों को राज्य में अक्सर आने वाले चक्रवात, बाढ़ और सूखे जैसी स्थितियों के दौरान जरूरी उपाय जुटाने में मदद मिलती है।
क्लाइमेट का फसल पर प्रभाव देखते हुए जिला स्तर पर पर विभागों के अधिकारियों द्वारा फसल की प्लानिंग की जाती है। किसान क्लाइमेट की लचीली विधियों को अपना रहे हैं, जिसमें जीरो इनपुट पर आधारित खेती, एकीकृत खेती, प्राकृतिक खेती, गैर-धान फसलें, बेहतर जल प्रबंधन, पानी की बचत के उपकरण, ई-कीट निगरानी और महिलाओं के साथ बड़े पैमाने पर कृषि मशीनीकरण शामिल हैं।
मेहनत कम करने वाले कृषि उपकरण के साथ एकीकृत पोषक तत्व और कीट प्रबंधन सहित फसल-विशिष्ट तकनीकों में किसानों को प्रशिक्षण देने से खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ावा
सामाजिक सुरक्षा
कृषि क्षेत्र में लगातार सुधार ने ओडिशा को धान उत्पादन के मामले में ज्यादा उत्पादन वाला राज्य बना दिया है। ये भारतीय खाद्य निगम के धान पूल में चौथा सबसे महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है।
2020-21 के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, ओडिशा भारत के कुल चावल का 9% उत्पादन करता है और देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन का 4.22% है।
संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम और ओडिशा सरकार के बीच साझेदारी ने खाद्य और पोषण सुरक्षा योजनाओं में सुधार के लिए नयापन देखा है, जैसे लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बायोमेट्रिक तकनीक का प्रयोग करना और जैसे 2007 में रायगढ़ जिले में किया गया था।
भारत सरकार के खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के लिए 2022 के लिए राज्य रैंकिंग सूचकांक में, ओडिशा पूरे देश में टॉप राज्य बनकर उभरा। WFP अपनी खाद्य सुरक्षा, आजीविका और जलवायु लचीलापन पहल पर ओडिशा सरकार के साथ सहयोग करता है।
ओडिशा की परिवर्तनकारी यात्रा, खाद्यान्न की कमी से लेकर अधिशेष उत्पादन तक, अपनी कृषि प्रणाली को क्लाइमेट- प्रूफिंग करने के निरंतर प्रयास किए और फसल विविधीकरण, छोटे किसानों के हितों की सुरक्षा और कमजोर लोगों के लिए भोजन और पोषण सुरक्षा, अन्य लोगों के लिए एक अद्वितीय विकास मॉडल प्रस्तुत करती है।
जलवायु परिवर्तन से वैश्विक खाद्य उत्पादकता को खतरा होने के कारण, ओडिशा की कृषि प्रणाली को जलवायु-प्रूफ बनाने के प्रयासों का परिणाम सामने आया है।
लेखिका: अनु गर्ग
Source: The Hindu