Waste to Plate: मिलिए शेफ दविंदर कुमार से, फल-सब्जियों के छिलकों और बीजों से बनाते हैं ऐसी डिशेज कि रह जाएंगे उंगलियां चाटते


हाइलाइट्स

  • शुरू किया Waste to Plate कॉन्सेप्ट 

  • लिखी हैं कई किताबें 

दिल्ली के ली मेरिडियन होटल में एग्जीक्यूटिव शेफ दविंदर कुमार ने फूड इंडस्ट्री में कुछ ऐसा शुरू किया है जो न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा है. शेफ दविंदर ने ‘Waste to Plate’ का कॉन्सेप्ट शुरू किया है. दुनियाभर में होने वाले फूड वेस्ट को देखते हुए उन्होंने यह कॉन्सेप्ट शुरू किया. वह फल-सब्जियों के छिलकों, बीजों और दूसरे कई तरह के बचे हुए फूड स्क्रैप को अपसायकल करके नई-नई डिशेज बनाते हैं. प्रोफेशनल शेफ के रूप में अपने 50 साल पूरे कर चुके दविंदर ने ऐसी 150 रेसिपीज तैयार करके अपनी किताब, ‘Second Meals’ भी पब्लिश की है. 

कैसे हुई होटल इंडस्ट्री में शुरुआत 
दविंदर की वेबसाइट के मुताबिक, युवा दविंदर दिल्ली विश्वविद्यालय से कॉमर्स में ग्रेजुएशन डिग्री पूरी करने के बाद कुछ प्रोफेशनल कोर्स करना चाहते थे. उस समय देश में बहुत ज्यादा प्रोफेशनल कोर्स नहीं थे. ओबेरॉय में कार्यरत अपने एक दोस्त से दविंदर को शेफ के पेशे के बारे में पता चला. उन्होंने 3 साल के किचन मैनेजमेंट डिप्लोमा प्रोग्राम के लिए ओबेरॉय सेंटर ऑफ लर्निंग एंड डेवलपमेंट (ओसीएलडी) में दाखिला ले लिया. हालांकि, उनके इस फैसले से उनका परिवार बहुत खुश नहीं था लेकिन दविंदर को दाखिला लेने से उन्होंने नहीं रोका. 

दविंदर इंडियन कलिनरी फोरम (आईसीएफ) के अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने अपने कई इंटरव्यूज में बताया है कि उस जमाने में शेफ का प्रफेशन एक उभरता हुआ पेशा था जिसे न तो ज्यादा मान्यता मिली और न ही इसका सम्मान था. डिप्लोमा पूरा करने के बाद, उन्हें ओबेरॉय समूह में नौकरी मिली. दविंदर को फ्रेंच भाषा में दिलचस्पी थी और उनके पैशन को देखते हुए उन्हें फ्रेंच क्यूज़ीन में एक्सपर्टीज के लिए पेरिस भेजा गया था. पेरिस में लीसी टेक्नीक डी’होटलियर में दो साल ट्रेनिंग करके वह न सिर्फ कमाल के शेफ बल्कि आर्टिस्ट बन गए. 12 साल तक ओबेरॉय ग्रुप के साथ काम करने के बाद 1985 में वह ली मेरिडियन की शुरुआती टीम में शामिल हो गए और वर्तमान में होटल के उपाध्यक्ष (एफ एंड बी प्रोडक्शन) और कार्यकारी शेफ के रूप में काम कर रहे हैं. 

शुरू किया Waste to Plate कॉन्सेप्ट 
हिस्ट्री टीवी 18 के एक शो, OMG! ये मेरा इंडिया शो में दविंदर कुमार पर दिखाए गए एक एपिसोड में बताया गया कि वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के मुताबिक, हर साल प्रोड्यूस होने वाले खाने का एक तिहाई हिस्सा खाने से पहले ही वेस्ट हो जाता है. दविंदर ने एपिसोड में बताया कि हर एक होटल में सामान्य तौर पर फल-सब्जियों की प्रोसेसिंग के दौरान पांच से दस प्रतिशत हिस्सा वेस्ट में जाता है. जिसे देख उन्हें आइडिया आया कि इस फूड वेस्ट से वह टेस्टी मील्स बना सकते हैं. यहीं से उनका यह अनोखा सफर शुरू हुआ. 

दविंदर का यह अनोखा आइडिया इतना सफल रहा है कि अब वह 12 रेस्तरां और 5-सितारा होटल की रसोई से निकलने वाले फूड वेस्ट के लिए एक मेनू बनाते हैं. इस वेस्ट को अच्छे से धोकर, साफ करके स्वाद, रंग और बनावट के आधार पर अलग किया जाता है और फिर स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजन बनाने के लिए प्रोसेस किया जाता है. वह फल-सब्जियों के छिलके, स्टॉक, स्टेम से लेकर बीज तक डिशेज बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं.

उनकी कुछ रेसिपीज में कटहल के बीजों और बादाम हलवा, अजवाइन और पालक की सलाद और एप्पल पल्प पाई के अलावार ब्रोकली के डंठल से बना सूप और पुदीना के डंठल से बनी चटनी भी शामिल है. वह चुकंदर का जूस निकालने के बाद बचने वाले वेस्ट से रसम बनाते हैं. गाजर के छिलकों को सलाद में परोसते हैं. दविंदर का यह भी कहना है कि ये रेसिपीज सिर्फ टेस्ट में नहीं बल्कि पोषण में भी बेहतर हैं क्योंकि फल-सब्जियों के छिलकों और बीज आदि में भरपूर पोषण होता है. 

लिखी हैं कई किताबें 
शेफ दविंदर ने कई कुकरी किताबें लिखी हैं. उन्होंने  ‘कबाब, चटनी और ब्रेड’, ‘सिर्फ कबाब: 365 कबाब और एक लीप वर्ष के लिए’, ‘सूप्स’ और ‘फॉ सीजनल सलाद’ भी लिखी हैं. उन्हें कई सम्मान भी मिल चुके हैं. ली मेरिडियन नई दिल्ली की 10वीं वर्षगांठ के दौरान उनके और उनकी टीम द्वारा बनाए गए 7500 किलो के केक को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में जगह मिली है. उनकी प्रस्तुति ने 1983 में टोक्यो, जापान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कुकिंग फेस्टिवल में पदक जीता था. उन्हें नेशनल टूरिज्म अवॉर्ड्स में भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने गोल्डन हैट शेफ पुरस्कार और भारत के सर्वश्रेष्ठ शेफ का पुरस्कार भी दिया था. 


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